यकायक ख़याल आते हैं मन में अनेक,
मोबाईल फोन से चिपका आज का तारुण्य देख,
बस,सोशल मीडिया पे बेसुद, बेखबर,
आगे, पीछे कुछ आता न उसको नजर,
उसे देख मन में आते है तुलनात्मक भाव,
कौन सही, मेरा शैशव या फिर उसका लगाव ?
लड़कपन में हम तो कुछ इसतरह
वक्त अपना जाया करते थे,
हर दिन अपना, दोस्तों संग,
घर से बाहर ही बिताया करते थे,
कभी गुलशन की अटखेलियां,
कभी माली से शरारत,
तो कभी दबे पाँव गुल से लिपटी हुई
तितली को पकड़ने जाया करते थे।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-11-2017) को
ReplyDelete"भरा हुआ है दोष हमारे ग्वालों में" (चर्चा अंक 2777)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एक नई बीमारी की तरह पनपा है ये मोबालिया रोग
ReplyDeleteबहुत सही
बहुत सही
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