Friday, November 26, 2010

'कर' खा गए !

भूखे-नंगे,लालची,हरामखोर 
परजीवी, 'पेट-भर' खा गए,
जो 
मेहनत की आय का  
भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

टूजी, सीडब्ल्युजी, बैंक,एलआइसी,

आदर्श 'हर' खा गए,
जो मेहनत की आय का  

भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

कोड़ा, कोयला,क्वात्रोची,

आइपीएल,चारा और हवाला,
तेलगी, हर्षद, केतन, सत्यम, 

दामाद जमीन घोटाला,

और तो और ये 

कारगिल शहीदों के भी 'घर' खा गए,
जो मेहनत की आय का  
भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

कुल २० हजार खरब खा चुके, 

वुभुक्षित कितना खाते है,
कर्म से तो हैं ही, 

शक्ल से भी चोर नजर आते है,

घोटाले-कर करके 

जुगाली में ही देश  चबा गए,
जो मेहनत की आय का  

भरा था मैने, वो 'कर' खा गए।  

Thursday, November 25, 2010

स्वतंत्र होना शेष है!


THURSDAY, MARCH 26, 2015

अग्नि-पथ !

लुंठक-बटमारों के हाथ में, आज सारा देश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है !
सरगना साधू बना है, प्रकट धवल देह-भेष है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

भ्रष्ट-कुटिल कृत्य से, न्यायपालिका मैली हुई,
हर गाँव-देश  दरिद्रता व भुखमरी फैली हुई !
अविद्या व अस्मिता, अभिनिवेश, राग, द्वेष है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

राज और समाज-व्यवस्था दासता से ग्रस्त है,
जन-सेवक जागीरदार बना,आम-जन त्रस्त है !
प्रत्यक्ष न सही परोक्ष ही,फिरंगी औपनिवेश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

शिक्षित समझता श्रेष्ठतर है,विलायती बोलकर,
बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां नीर भी, बेचती तोलकर,
देश-संस्कृति दूषित कर रहा,पश्चमी परिवेश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

Friday, November 19, 2010

शायद !

फैसले तमाम अपने कल पर टाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
सांप-छुछंदर आस्तीनों में जो पाले न होते, 
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते

परदों, मुखौटों में छुपकर के शठ-मक्कार,
कर न पाते इसतरह हमारी ही पीठ पर वार,
सिंहासन, गांधारी-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

जन उभय-निष्ठ, उलझा हुआ है अपने में,
मुल्ले,पण्डे, पादरी लगे है स्वार्थ जपने में,
अगर आवाम के मुँह पर पड़े ताले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

समाज, जाति-धर्म में इतना बँटा न होता,
हिंदोस्तां अपना जयचंदों से पटा न होता,
गर नेता-नौकरशाहों के दिल काले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

सियासत के पंकमय हमाम में सब नंगे है,
कोयले की दलाली में सबके सब बदरंगे है,   
ओंछे पंक में धसे नीचे से ऊपर वाले न होते, 
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

अमुल्य वोट अपने अविवेकित डाले न होते, 
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते

Thursday, November 4, 2010

दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये !

आप सभी ब्लोगर मित्रों, पाठकों और शुभचिंतको से क्षमा चाहता हूँ कि पिछले १५ दिनों से चिकनगुनिया से गर्सित होने की वजह से इस तरफ जिन्दगी की जद्दोजहद जारी है, खैर,शायद इसी का नाम जिन्दगी है !
सहनशीलता का गुण चराग से सीखने की कोशिश में लगा हूँ !

दीपावली के इस पावन अवसर पर आप सभी को और आपके समस्त पारिवारिकजनों को अपने और अपने परिवार की तरफ से दीपावली की ढेरों शुभकामनाये प्रेषित करता हूँ !

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...