Thursday, November 25, 2010

स्वतंत्र होना शेष है!


THURSDAY, MARCH 26, 2015

अग्नि-पथ !

लुंठक-बटमारों के हाथ में, आज सारा देश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है !
सरगना साधू बना है, प्रकट धवल देह-भेष है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

भ्रष्ट-कुटिल कृत्य से, न्यायपालिका मैली हुई,
हर गाँव-देश  दरिद्रता व भुखमरी फैली हुई !
अविद्या व अस्मिता, अभिनिवेश, राग, द्वेष है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

राज और समाज-व्यवस्था दासता से ग्रस्त है,
जन-सेवक जागीरदार बना,आम-जन त्रस्त है !
प्रत्यक्ष न सही परोक्ष ही,फिरंगी औपनिवेश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

शिक्षित समझता श्रेष्ठतर है,विलायती बोलकर,
बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां नीर भी, बेचती तोलकर,
देश-संस्कृति दूषित कर रहा,पश्चमी परिवेश है,
गणतंत्र बेशक बन गया, स्वतंत्र होना शेष है!!

18 comments:

  1. २०१४ में बाबा से उम्मीद है...

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  2. @ भारतीय नागरिक - Indian Citizenजी, काश !

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  3. आदरणीय गोदियाल जी
    नमस्कार !
    कटाक्ष करती प्रशंसनीय रचना - बधाई

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  4. काश! काश!! काश!!!

    प्रणाम

    रामराम.

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  5. या खुदा ! बद-इन्तजामियों का यह सूरज कब तक ढलेगा ?
    तू ही बता, अपना देश और कितना भगवान् भरोसे चलेगा
    kathhin prashn , uttar ki tlash hai

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  6. भगवान भरोसे देश चल रहा है पर धर्म निरपेक्षता अपनाते हैं।

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  7. अभी तो भगवान भरोसे ही चला जा रहा है..कोई मत छेड़ो!!

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  8. सच है ..भगवान का ही आसरा है ...

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  9. उम्मीद पर दुनिया कायम है ।

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  10. भगवान भी गोदियाल जी लगता है सो रहे हैं,लम्बी तान कर... हाँ देवोत्थान के बाद बिहार में कुछ भरोसा दिलाया है उन्होंने...लगता है नींद टूट गई है!!

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  11. .

    बद-इन्तजामियों का यह सूरज कब तक ढलेगा ?

    ---

    समय-समय पर लोग अवतरित होते ही रहते हैं , नैय्या पार लगाने के लिए।

    शायद भगवान् कुछ इन्तेजाम करें।

    .

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  12. सटीक कटाक्ष ..... सच को समेटे

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  13. बढ़िया प्रस्तुति !

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  14. व्यवस्था और भ्रष्टाचार पर कटाक्ष करती हुई बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  15. बहुत ही सही ।

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  16. या खुदा ! बद-इन्तजामियों का यह सूरज कब तक ढलेगा ?
    तू ही बता, अपना देश और कितना भगवान् भरोसे चलेगा ..

    ये तो shaayad bhagwaan भी नहीं jaanta hoga ... vo भी ये geet gata higa ... kya से kya ho gaya ...

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  17. या खुदा ! बद-इन्तजामियों का यह सूरज कब तक ढलेगा ?
    तू ही बता, अपना देश और कितना भगवान् भरोसे चलेगा ?

    जब आम जनता अपना उत्तरदायित्व समझ जायेगी ..
    सुन्दर रचना !

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।