फैसले तमाम अपने कल पर टाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
सांप-छुछंदर आस्तीनों में जो पाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते॥
परदों, मुखौटों में छुपकर के शठ-मक्कार,
कर न पाते इसतरह हमारी ही पीठ पर वार,
सिंहासन, गांधारी-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
जन उभय-निष्ठ, उलझा हुआ है अपने में,
मुल्ले,पण्डे, पादरी लगे है स्वार्थ जपने में,
अगर आवाम के मुँह पर पड़े ताले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
समाज, जाति-धर्म में इतना बँटा न होता,
हिंदोस्तां अपना जयचंदों से पटा न होता,
गर नेता-नौकरशाहों के दिल काले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
सियासत के पंकमय हमाम में सब नंगे है,
कोयले की दलाली में सबके सब बदरंगे है,
ओंछे पंक में धसे नीचे से ऊपर वाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
अमुल्य वोट अपने अविवेकित डाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते॥
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
सांप-छुछंदर आस्तीनों में जो पाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते॥
परदों, मुखौटों में छुपकर के शठ-मक्कार,
कर न पाते इसतरह हमारी ही पीठ पर वार,
सिंहासन, गांधारी-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
जन उभय-निष्ठ, उलझा हुआ है अपने में,
मुल्ले,पण्डे, पादरी लगे है स्वार्थ जपने में,
अगर आवाम के मुँह पर पड़े ताले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
समाज, जाति-धर्म में इतना बँटा न होता,
हिंदोस्तां अपना जयचंदों से पटा न होता,
गर नेता-नौकरशाहों के दिल काले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
सियासत के पंकमय हमाम में सब नंगे है,
कोयले की दलाली में सबके सब बदरंगे है,
ओंछे पंक में धसे नीचे से ऊपर वाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
अमुल्य वोट अपने अविवेकित डाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते॥
सबकामेज़॥ A stitch in time saves nine :)
ReplyDeleteदेश के हालत हम आम जनता ने ही ऐसी की है !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ... राम त्यागी जी से सहमत हूँ ... हम ही ज़म्मेदार है ...
ReplyDeleteये तो हमेशा ही चलता रहेगा... बहुत खूब...
ReplyDeleteआज के हालात का चित्रण …………बढिया प्रस्तुति।
ReplyDeleteजबरजस्त तमाचा।
ReplyDeleteतो आज देश में इतने घोटाले न होते ॥
ReplyDeleteवाह! बेहतरीन कटाक्ष!
प्रेमरस
बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteगर नेता-शाहों के दिल काले न होते, तो आज देश में इतने घोटाले न होते ॥
मेरे नए ब्लॉग.
दादा का चश्मा....दादी का संदूक ..पर एक नज़र इनायत हो तो ख़ुशी होगी..
dadikasanduk.blogspot.com
बहुत ही तीखा व्यंग्य है
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर
बहुत सही कहा आपने...
ReplyDeleteसार्थक और सुन्दर रचना...
AAPKA VYANGAATMAK ANDAAZ HAMESHA HI BHAATA HAI GOUDIYAAL JI ... BAHUT HI LAJAWAAB LIKHA HAI ... SATEEK ... YATHAARTH HAI SAB ...
ReplyDeleteरबड़ी कूकरों मे..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग
ReplyDeletebahut khoob sahi kataaksh..uttam rachna
ReplyDeleteकविता के मध्यम से एक ज्वलन्त समस्या पर प्रकाश डाला है.
ReplyDeleteसिंहासन, कैकई-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
ReplyDeleteतो आज देश में इतने घोटाले न होते ॥
सटीक अभिव्यक्ति!
घोटालों की गजब कहानी ,नेता हँस कर घूम रहे, जनता हो रही शर्म से पानी
ReplyDeleteराजनीति के खेल अजब निरालेहें ,
ReplyDeleteकोयले की दलाली में हाथ काले हें -------
बहुत सही लिखा है बधाई |आशा
समाज यहाँ इस कदर बँटा न होता,
ReplyDeleteदेश अपना जयचंदों से पटा न होता।
गर नेता-शाहों के दिल काले न होते,
तो आज देश में इतने घोटाले न होते...
yahi sab jimmedaar hain desh ke patan ke liye aur badhte aatankwaad ke liye.
.
बढ़िया है गोदियाल साहब ।
ReplyDeleteमक्कार खुद छुपे रहकर परदे के पीछे,
ReplyDeleteसिंहासन, (कैकई)-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
(गांधारी)
बड़ी तीखी बातें लिखीं हैं आपने
पर बेशर्मों को शर्म नहीं आएगी
बहुत ही तीखा व्यंग्य है
ReplyDelete......बहुत खूब...