Friday, November 19, 2010

शायद !

फैसले तमाम अपने कल पर टाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते।
सांप-छुछंदर आस्तीनों में जो पाले न होते, 
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते

परदों, मुखौटों में छुपकर के शठ-मक्कार,
कर न पाते इसतरह हमारी ही पीठ पर वार,
सिंहासन, गांधारी-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

जन उभय-निष्ठ, उलझा हुआ है अपने में,
मुल्ले,पण्डे, पादरी लगे है स्वार्थ जपने में,
अगर आवाम के मुँह पर पड़े ताले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

समाज, जाति-धर्म में इतना बँटा न होता,
हिंदोस्तां अपना जयचंदों से पटा न होता,
गर नेता-नौकरशाहों के दिल काले न होते,
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

सियासत के पंकमय हमाम में सब नंगे है,
कोयले की दलाली में सबके सब बदरंगे है,   
ओंछे पंक में धसे नीचे से ऊपर वाले न होते, 
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते। 

अमुल्य वोट अपने अविवेकित डाले न होते, 
मुमकिन था, देश में इतने घोटाले न होते

22 comments:

  1. देश के हालत हम आम जनता ने ही ऐसी की है !

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  2. बहुत अच्छी रचना ... राम त्यागी जी से सहमत हूँ ... हम ही ज़म्मेदार है ...

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  3. ये तो हमेशा ही चलता रहेगा... बहुत खूब...

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  4. आज के हालात का चित्रण …………बढिया प्रस्तुति।

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  5. तो आज देश में इतने घोटाले न होते ॥

    वाह! बेहतरीन कटाक्ष!


    प्रेमरस

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  6. बेहतरीन रचना...
    गर नेता-शाहों के दिल काले न होते, तो आज देश में इतने घोटाले न होते ॥

    मेरे नए ब्लॉग.
    दादा का चश्मा....दादी का संदूक ..पर एक नज़र इनायत हो तो ख़ुशी होगी..
    dadikasanduk.blogspot.com

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  7. बहुत ही तीखा व्यंग्य है
    अच्छा लगा पढ़कर

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  8. बहुत सही कहा आपने...

    सार्थक और सुन्दर रचना...

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  9. AAPKA VYANGAATMAK ANDAAZ HAMESHA HI BHAATA HAI GOUDIYAAL JI ... BAHUT HI LAJAWAAB LIKHA HAI ... SATEEK ... YATHAARTH HAI SAB ...

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  10. कविता के मध्यम से एक ज्वलन्त समस्या पर प्रकाश डाला है.

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  11. सिंहासन, कैकई-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
    तो आज देश में इतने घोटाले न होते ॥
    सटीक अभिव्यक्ति!

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  12. घोटालों की गजब कहानी ,नेता हँस कर घूम रहे, जनता हो रही शर्म से पानी

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  13. राजनीति के खेल अजब निरालेहें ,
    कोयले की दलाली में हाथ काले हें -------
    बहुत सही लिखा है बधाई |आशा

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  14. समाज यहाँ इस कदर बँटा न होता,

    देश अपना जयचंदों से पटा न होता।

    गर नेता-शाहों के दिल काले न होते,

    तो आज देश में इतने घोटाले न होते...

    yahi sab jimmedaar hain desh ke patan ke liye aur badhte aatankwaad ke liye.

    .

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  15. बढ़िया है गोदियाल साहब ।

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  16. मक्कार खुद छुपे रहकर परदे के पीछे,
    सिंहासन, (कैकई)-धृतराष्ट्र संभाले न होते,
    (गांधारी)
    बड़ी तीखी बातें लिखीं हैं आपने
    पर बेशर्मों को शर्म नहीं आएगी

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  17. बहुत ही तीखा व्यंग्य है
    ......बहुत खूब...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।