Wednesday, March 28, 2012

सुरक्षा खोखली,देश खोखला !

कुछ साल पहले मैंने अपने इस ब्लॉग पर एक लेख में बताया था कि किस तरह हमारी सेनायें हथियारों की कमी से जूझ रही है, उनके पास उन्नत किस्म के हथियार और यंत्र-उपकरण की भारी कमी महसूस की जा रही  है ! सेना में कुशल अधिकारियों की निरंतर कमी बनी हुई है, शिक्षित और कुशल युवाओं का नित इस पेशे से मोह भंग हो रहा है ! आज आख़िरकार सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह की प्रधानमंत्री को लिखी चिट्ठी ने उन बातों को एक बार फिर से उजागर कर दिया है ! यही लगता है कि सत्ता में बैठे लोग देशवासियों को बेवकूफ बनाने के लिए रक्षा जरूरतों के नाम पर बड़े-बड़े प्रावधान बजटों में दिखाकर उस राशि को कहीं अन्यत्र खर्च कर रहे है ! मंत्री से लेकर संतरी तक सारे ईमानदार लोग सरकार में बैठे बुढापे के मजे लूट रहे है ! लेकिन कोई यह पूछने और बताने वाला नहीं है कि जब देश आज दुनिया के तमाम देशों के मुकाबले सबसे बड़े हथियार आयातकों की श्रेणी में शीर्ष पर खडा है, तो आखिरकार वे हथियार हैं कहा जिनका आयात हो रहा है ?



साथ ही पिछले कुछ सालों में समय-समय पर यह आशंका भी व्यक्त की जाती रही है कि बाहरी ताकतों की देश के अन्दर देश के दुश्मनों से किसी बड़ी साजिश और सांठगाँठ के तहत सुनियोजित ढंग से हमारी सेनाओ को कमजोर किया जा रहा है ! आखिर, देश रक्षा से जुड़े गंभीर मसलों पर समय पर निर्णय लेने में कोताही क्यों बरती गई ? चीनी खतरे को एक लाब्मे अरसे से भांपा जा रहा था, क्यों यह सरकार पिछले चंद सालों तक भी इस खतरे को नकारती रही ? आज जो स्थिति है, हम ही उसके लिए ज़िम्मेदार है! हमारी ही ग़लती है कि हम ऐसी सरकारों को पिछले ६५ सालों से बना रखे है! हम ही अपने दुश्मन खुद है. जो ऐसी सरकारों को बनाते है! जब वोट देना होता है तो जात-पात और धर्मों मे बंट जाते है, क्षेत्र और रिश्ते देखते है! और अपने ये नेता धर्म और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में सिर्फ़ स्वार्थ और भ्रष्टाचार के लिए एक होकर सरकार बनाकर अपना उल्लू सीधा करते है! उस समय न इन्हे जनभावना की फ़िक्र होती है, और न ही देश की ! वहाँ पहुंचकर इन्हें उच्च तकनीकी वाले लैपटॉप और आईपॉड चाहिए, विधानसभाओं के अन्दर अश्लील फिल्मे देखने के लिए ! भले ही जनता के हाथ से दिल्ली जैसे शहरों में भी लुटेरे दिन-दहाड़े पर्स और गहने लूट रहे हो, मगर इन्हें अपने लिए एक पूरे ब्लैक कमांडो फ़ौज चाहिए ! इम्पोर्टेड कार चाहिए घूमने के लिए, बिजनेस क्लास का टिकट चाहिए यात्रा के लिए, साथ में नाते-रिश्तेदार भी ले जाने होते है इनको, करदाताओं की कीमत पर विदेश सैर के लिए! देश महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी से त्रस्त है और एक अकेले राष्ट्रपति महोदय का ही विदेश का खर्चा २०५ करोड़ के पार चला गया! सरकार में बैठे इन महामहिमों ने अपनी विदेश यात्रा पर पिछले साल ही ५०० करोड़ रूपये खर्च कर डाले, जबकि बजट में प्रावधान सिर्फ ४५ करोड़ रुपये का था! कौन पूछे कि बाकी के ४५० करोड़ रूपये की आपूर्ति कहाँ से और किस बजट के प्रावधानों से धन हस्तांतरित कर की गई ? क्योंकि ये जानते है कि यह इन्हें रोकने वाला कोई नहीं है, जो इनसे सवाल करेगा और जो सच्चाई बयान करेगा, उसे ये संसद और लोकतंत्र की मर्यादा के उल्लंघन की दुहाई देकर संसद के कठघरे में खडा करने की धमकी देंगे ! और आज इन सभी बातों की ही परिणिति है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था खोखली पड़ी है! क्या यही वो चमकते भारत का निर्माण है जिसका नारा यह सरकार देती है? रामदेव और उनके समर्थकों की पिटाई में ये अपनी बहादुरी समझते है ! संसद मे सारे भरष्ट एक हो जाते है कि अन्ना, रामदेव और तमाम जनता ने उनकी गरिमा कम कर दी है! आज जो देश की स्थिति है, उसके लिए जिम्मेदार कौन है ? भ्रष्टाचार कहाँ से शुरू होता है ? इन्हें सता किसलिए सौंपी गई, इन्हें जनता ने अपना नुमाइंदा क्यों चुनकर संसद भेजा ? क्या सिर्फ यही देखने के लिए कि देश दुर्दशा के कगार पर पहुँच जाए ? देश की स्थिति आज हाथी के दांत खाने के और तथा दिखाने के और जैसी हो गई है, इस स्थिति तक आखिर इस देश को पहुंचाया किसने? क्या सरकार में बैठे लोग यह मनन करते है कि सरकार जो आज यह कदम-कदम पर उलझनों का सामना कर रही है , उसके लिए आखिरकार जिम्मेदार है कौन ?  चिठ्ठी लीक होना, अथवा परस्पर विवाद एक अलग मुद्दा हो सकता है, किन्तु  अहम् सवाल यह है कि अगर सेनाध्यक्ष प्रधानमंत्री को लिख रहे है तो उसमे  कुछ तो  सच्चाई है, फिर उससे देशवासियों को क्यों अँधेरे में रखा जा रहा है ? 

अभी-अभी :The government owes over Rs 574 crore to cash-strapped Air India with Prime Minister's Office having an outstanding of more than Rs 200 crore, Civil Aviation Minister Ajit Singh today said.
Source : rediff.com


Thursday, March 22, 2012

धन-शोहरत की चकाचौंध को शहर कहते है लोग !

इस माह के द्वितीय सप्ताह में, किसी काम से दक्षिण को जाते हुए एक दिन के लिए मुंबई में रुका था ! मुंबई में गंतव्य की ओर बढ़ते हुए टैक्सी की पिछली सीट पर खामोश बैठा उस शहर को बस यूँ ही बारीकी से निहार रहा था, तो सहसा उर्दू के मशहूर शायर अखलाक़ मौहम्मद खान 'शहरयार' , जिनका गत माह ७६ साल की उम्र में निधन हो गया था, और जिन्होंने आम आदमी के जीवन से जुड़ी तल्ख हकीकत को बड़ी सादगी से अपने गीतों में शब्द दिए, उनकी वे पंक्तियाँ " ...इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है..." बरबस याद आ गई! उनकी इन पंक्तियों को ही गुनगुना रहा था कि अचानक अपने शहर के लिए भी बस यूं ही गजल की दो लाइने बन पडी और मैंने उन्हें उसी वक्त अपने मोबाइल फोन में टाईप कर संचित कर लिया था! कल जब उस पर फिर से नजर गई तो जो चंद और लाइने बन पडी, आपकी खिदमत में पेश है ;


उजले हैं वसन, सुनहरे बदन, दिल काला क्यों है,
यहाँ हर शख्स के मुंह पे पडा ये ताला क्यों है।


धन-शोहरत की चकाचौंध को शहर कहते है लोग,
शठ-शैतानो के ही महलों में मगर उजाला क्यों है।


सीने में कपट, निगाहों में हवस लिए फिरते हैं,
चोरी के माल पे रौब जमाता हरेक लाला क्यों है।


दहशत जीते लम्हों के साए में सभी खामोश हैं,
अपनी ही विपदा रोती मगर ये खाला क्यों है।


नाम साफ़-सुथराई के जो झगड़ने का बहाना ढूंढें,
देहरी से निकलता उसी के ये गंदा नाला क्यों है।


सुत संग सुल्तानों ने भी जाम छलकाया हैं जबसे,
यहाँ अकुलाई सी नजर आती ये हाला क्यों है।


शरीफों के लिए अब कोई ठिकाना न रहा 'परचेत'
देखकर कुछ ऐसा ही यकीं, होता ये साला क्यों है।
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छवि गुगुल से साभार !

Wednesday, March 21, 2012

कार्टून कुछ बोलता है- गरीबी रेखा !

नए मानक गरीबी के :


शहरों में : रु० २८.६५ प्रतिदिन

गाँवों में:   रु० २२.४४ प्रतिदिन


 चित्र संकलन नेट से साभार !

Friday, March 16, 2012

Good Bye Falak !




You have chosen sacred silence,
no one will miss you,
no one will hear your cries.
No one will come to put roses on your grave

with choked voice and flood in eyes.


Butcher's door will remain open,
for your such a fiendish bastard dad.
There's nothing more depressing
than having it all and still feeling sad.


You got a helpless and cruel mom,
don't know, why do you have so much bad luck.
Now you have left for a better world,
may your soul rest in eternal peace, good bye Falak !!



Wednesday, March 7, 2012

कार्टून कुछ बोलता है- आगाज ऐसा तो अंजाम कैसा ?





खैर, रुत्तड गर्देश की सलामती की दुआओं संग
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाये !
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Friday, March 2, 2012

घीया खरीदा था, लौंकी बन गई !

काफी दिनों से बहुत से समसामयिक ज्वलंत मुद्दे मेरे मानस पटल पर उथल-पुथल मचाये हुए थे, जैसे हमारे राजनैतिक दलों के लुभावने विज्ञापन, खबरिया चैनलों की दुकानदारी, जस्टिस काटजू और संपादक मंडली की तनातनी, देश खासकर केरल और तमिलनाडु में बढ़ता पादरियों और इसाई मिशनरियों का हस्तक्षेप और उस पर पूर्वाग्रह से गर्सित हमारे मीडिया की उदासीनता, कुडनकुलम परमाणु बिजली सयंत्र और एनजीओ, चुनाव आयोग की भूमिका  इत्यादि- इत्यादि और सोचता था कि इन पर अपने मन के भावों को आलेखों में उजागर करू ! यूं भी मुझे पद्य के बजाये गद्य में अधिक रुचि है, मगर फिर एक अदृश्य सा ख्याल उस गर्मजोशी को यह कहकर शीतल कर जाता कि जहां तीन-तीन प्रत्यक्ष और एक परोक्ष गुलामी देशवासियों की मानसिकता बदल पाने में असमर्थ रही, वहाँ भला तेरे चंद आलेखों के लिखने-पढने से क्या हो जाएगा?कुछ नहीं होने वाला, जैसा चलता आया है, आगे भी वैसे ही चलेगा!मेरे जैसे चंद लोग जितना मर्जी अपना रक्तचाप बढायें, बर्फीले रेगिस्तानो में माना कि गरम पानी के भी कुछ चश्मे, तालाब (कुंड ) मिलते है, मगर यह भी हकीकत है कि उनका दायरा बहुत सीमित होता है, और बर्फ की शीतल परत उनके उष्मावान चरित्र को निष्क्रिय कर देती है!



अब देखिये न, दौलत रूपी हिमस्खलन(एवालांचे) भ्रष्टाचार रूपी मलीन बस्तियों को किस प्रकार ढककर चला जाता है, उसका अहसास आपने भी खबरिया चैनलों की दुकानों पर विश्रामकाल के वक्त खबरों के बीचों-बीच में और प्रात:काल के दौरान अखबारों के पन्नो में सतरंगी विज्ञापनों को देखने के बाद किया होगा! आज नेताओं की तो परिभाषा ही बदल गई है किन्तु देश,जीवन और काल, हर क्षेत्र में लोगों को उच्च मानवीय मूल्यों की दुहाई देने वाली ये दुकाने जब सिर्फ और सिर्फ अपने तथा किसी भ्रष्ट राजनैतिक पार्टी अथवा नेता के फायदे के लिए भ्रामक और गुमराह करने वाले विज्ञापन और पेड़-न्यूज प्रसारित करती है, तब लगता है कि शायद हम ही गलत है! जब मैं ये विज्ञापन देखता हूँ , जिनमे यह कहा जाता है कि हमने आपको बढ़िया राज दिया और आप सुशासन, अपराधमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त और प्रदेश की प्रगति के लिए फलां-फलां पार्टी के चुनाव चिन्ह पर मुहर लगाइए तो मैं तो यह सोच-सोचकर ही हैरान होता रहता हूँ कि हमने (जनता ने ) पिछले ५ सालों के दरमियाँ जो देखा, अगर इन नेतावों और खबरिया माध्यमों की नजरों में वह एक सुशासन, अपराधमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त और प्रगतिशील शासन था तो फिर कुशासन, भययुक्त,  अपराधपूर्ण और भ्रष्टाचारयुक्त शासन कैसा होता होगा? आप भी ठन्डे दिमाग से सोचिये, दावे के साथ कह सकता हूँ कि मेरी ही तरह आपके भी रौंगटे खड़े हो जायेंगे ! 



खैर छोडिये, आपको अब घीया बनाम लौंकी की कहानी सुनाता हूँ! यूं तो आज ऑर्गेनिक फसलों और सब्जियों, फलों को जल्दी पकाने, उन्हें बड़े आकार में करके अधिक लाभ कमाने हेतु रसायन छिड़कने, इंजेक्शन लगाने जैसे अनुचित और गैर-जरूरी तरीकों को अपनाने की बात आम हो चुकी है, और हर कोई इससे वाकिफ है किन्तु कुछ सालों पहले जब लोगो को इस बात का पता न था, तो क्या-क्या किस्से हुए, ऐसा ही एक छोटा सा मजेदार किस्सा आपको सुनाता हूँ ; २८ फरवरी जिस दिन मेरठ, गाजियाबाद, नौएडा इलाकों में मतदान था, तडके कहीं से लौट रहा था! इस आशंका के चलते कि कहीं फिर इन क्षेत्रों में रास्ते बंद न हो जाए, मैंने सीधे ही दफ्तर का रुख किया था! उस समय सड़कों पर ट्रैफिक भी कम था, तभी मैंने देखा कि एक बर्दीवाला मुझे रुकने के लिए हाथ दे रहा था! मैंने गाडी किनारे पर रोकी तो वह दौड़ता हुआ मेरी गाडी की तरफ आया, गाडी का शीशा मैंने पहले ही नीचे कर लिया था! ४०-४५ साल के वे श्रीमान उत्तरप्रदेश पुलिस के कोई सब-इन्स्पेक्टर थे, वे बोले ;सर जी, आप कहाँ जा रहे है ! मैंने प्रतिसवाल किया, आपको कहाँ जाना है ? वे बोले, सरजी मुझे जाना तो नौएडा सेक्टर ३७ है, मेरी चुनाव ड्यूटी है और मैं लेट हो रहा था, आप कहीं ऐसी जगह मुझे छोड़ दे......... मैंने कहा, आप बैठिये मैं आपको ३७ सेक्टर ही छोड़ दूंगा... ! उनकी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गई हो, मैंने जल्दी ही यह भी भांप लिया कि सरकार कुछ शरीफ किस्म के इन्सान है, जो इस तरह लिफ्ट लेकर गुजारा कर रहे है, वरना तो आजकल सिपाही भी बाइक-कार से चलते है!



२५ मिनट के इस सफ़र में बाते शुरू भी हुई तो भ्रष्टाचार से और फिर बात पहुँच गई, देहरादून में उत्तराखंड और हिमांचल के बोर्डर के समीप हर्बर्टपुर की एक कहानी पर ! उनके कोई रिश्तेदार वहां रहते है, और कुछ साल पहले एक दिन वे सपरिवार जब अपने उन सम्बन्धियों के यहाँ गए तो देखा कि आँगन में भीड़ लगी थी! घर पर धुंए का भी अम्बार लगा था, अत: उन्होंने सहज ये अंदाजा लगा लिया था कि घर में कोई अग्निकांड हो गया है! ज्यों ही घर के एकदम निकट पहुंचे तो देखा कि तमाशबीन लोग कपडे से मुह ढापे खड़े थे! थोड़ा और निकट पहुचे तो इनकी भी सांस  फूलने लगी और खांसी आने लगी! अब इन्हें समझते देर न लगी कि यह जो धुँआ है वह मिर्च जलने की वजह से है! रिश्तेदारों से मिले और जानकारी ली तो उनकी बात सुन इनकी जोर से हँसी छूट गई ! माजरा यह था कि इनके रिश्तेदार मंडी से पिछले दिन जो सब्जी खरीदकर लाये थे, उसमे करीब एक फुट  का घीया भी था, जो उन्होंने लाकर टोकरी में रख दिया था! अगले दिन जब सब्जी बनाने का वक्त आया और वे लोग उस घीये को लेने गए तो तब तक वह एक फुट  का घीया ढाई फुट  की लौंकी बन चुका था! बस खबर फैलते ही आस-पास कोहराम मच गया कि इस घर में भूत आ गया है, और उसे भगाने के लिए मिर्च का धुँआ लगाया गया था! एक नेपाली किरायेदार भी था वह भी तुरंत घर खाली कर चलता बना था! इन सब-इन्स्पेक्टर महोदय ने फिर उन लोगो को बड़ी मुश्किल से यह समझाया कि इसमें भूत-वूत कुछ नहीं है, आप इंजेक्शन लगी तरकारी खरीद लाये !



इतिश्री !

Thursday, March 1, 2012

बादह-कश !











मुरीद ये माह-जबीं मधुशाला में जीवन जी गया,
आब-ऐ-आतिश,आधी बँटी ,बाकी खुद पी गया।
आब-ऐ-आतिश= शराब
हमनशीं को दिल में छुपाया, जाहिरी के खौफ से,
मय, दर्द-ए -जिगर  उतरी , साकी लब सी गया।

शामे जो रंगीं हुई, छूकर गुलाबी आतिश-ऐ-तर,
अल्फ़ाजों संग,रंग चेहरे का भी आफताबी गया।
आतिश-ऐ-तर=आशिक के ओंठ      आफताबी= सुनहला रंग (सूरज जैसा)
खुद-व-खुद बंद पलकें हुई ,नींद के आने से पहले,
गश्त-ऐ-काएनात को फिर स्वपन में शराबी गया।  
गश्त-ऐ-काएनात= दुनिया की सैर

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...