मुरीद ये माह-जबीं मधुशाला में जीवन जी गया,
आब-ऐ-आतिश,आधी बँटी ,बाकी खुद पी गया।
आब-ऐ-आतिश= शराब
हमनशीं को दिल में छुपाया, जाहिरी के खौफ से,
मय, दर्द-ए -जिगर उतरी , साकी लब सी गया।
शामे जो रंगीं हुई, छूकर गुलाबी आतिश-ऐ-तर,
अल्फ़ाजों संग,रंग चेहरे का भी आफताबी गया।
आतिश-ऐ-तर=आशिक के ओंठ आफताबी= सुनहला रंग (सूरज जैसा)
खुद-व-खुद बंद पलकें हुई ,नींद के आने से पहले,
गश्त-ऐ-काएनात को फिर स्वपन में शराबी गया।
गश्त-ऐ-काएनात= दुनिया की सैर
//आब-ऐ-आतिश,आधी खपी बांटने में, बाकी बची खुद पी गया।
ReplyDelete//फिर शाम रंगीं मीना की हुई, छूकर गुलाबी आतिश-ऐ-तर,
मय को दर्द-ऐ-दिल में जन्नत मिली, साकी लब सी गया।
gajab sirji.. gajab :)
palchhin-aditya.blogspot.in
बहुत खूब...जवाब नहीं...
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद तो कुबूल करनी ही होगी ...
ReplyDeleteवाह, वाह, वाह.
ReplyDeletewaah!!!!
ReplyDeletekunwar ji
हमनशीं को रख लिया दिल में छुपाकर, जाहिरी के खौफ से,
ReplyDeleteअल्फ़ाजों ने अपनी चाल बदली,रंग चेहरे का आफताबी गया।
वाह
waah waah kya baat hai sir ji.
ReplyDeletedil khush kar diya is gazal ne. daad kabul kare.
इस पसंदगी के लिए शुक्रिया आप सभी मित्रों का !
ReplyDeleteख्वाइशे जाने कहाँ गुम हो गई फिर, दश्त की वीरानियों में,
ReplyDeleteज़ुल्मत में, दीदार चाँद-तारों का हुआ, हुनर आगाही गया।
waah bahut khub!!!