Thursday, March 1, 2012

बादह-कश !











मुरीद ये माह-जबीं मधुशाला में जीवन जी गया,
आब-ऐ-आतिश,आधी बँटी ,बाकी खुद पी गया।
आब-ऐ-आतिश= शराब
हमनशीं को दिल में छुपाया, जाहिरी के खौफ से,
मय, दर्द-ए -जिगर  उतरी , साकी लब सी गया।

शामे जो रंगीं हुई, छूकर गुलाबी आतिश-ऐ-तर,
अल्फ़ाजों संग,रंग चेहरे का भी आफताबी गया।
आतिश-ऐ-तर=आशिक के ओंठ      आफताबी= सुनहला रंग (सूरज जैसा)
खुद-व-खुद बंद पलकें हुई ,नींद के आने से पहले,
गश्त-ऐ-काएनात को फिर स्वपन में शराबी गया।  
गश्त-ऐ-काएनात= दुनिया की सैर

9 comments:

  1. //आब-ऐ-आतिश,आधी खपी बांटने में, बाकी बची खुद पी गया।

    //फिर शाम रंगीं मीना की हुई, छूकर गुलाबी आतिश-ऐ-तर,
    मय को दर्द-ऐ-दिल में जन्नत मिली, साकी लब सी गया।

    gajab sirji.. gajab :)

    palchhin-aditya.blogspot.in

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  2. बहुत खूब...जवाब नहीं...

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  3. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल दाद तो कुबूल करनी ही होगी ...

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  4. हमनशीं को रख लिया दिल में छुपाकर, जाहिरी के खौफ से,
    अल्फ़ाजों ने अपनी चाल बदली,रंग चेहरे का आफताबी गया।
    वाह

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  5. waah waah kya baat hai sir ji.
    dil khush kar diya is gazal ne. daad kabul kare.

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  6. इस पसंदगी के लिए शुक्रिया आप सभी मित्रों का !

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  7. ख्वाइशे जाने कहाँ गुम हो गई फिर, दश्त की वीरानियों में,
    ज़ुल्मत में, दीदार चाँद-तारों का हुआ, हुनर आगाही गया।

    waah bahut khub!!!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।