Friday, March 2, 2012

घीया खरीदा था, लौंकी बन गई !

काफी दिनों से बहुत से समसामयिक ज्वलंत मुद्दे मेरे मानस पटल पर उथल-पुथल मचाये हुए थे, जैसे हमारे राजनैतिक दलों के लुभावने विज्ञापन, खबरिया चैनलों की दुकानदारी, जस्टिस काटजू और संपादक मंडली की तनातनी, देश खासकर केरल और तमिलनाडु में बढ़ता पादरियों और इसाई मिशनरियों का हस्तक्षेप और उस पर पूर्वाग्रह से गर्सित हमारे मीडिया की उदासीनता, कुडनकुलम परमाणु बिजली सयंत्र और एनजीओ, चुनाव आयोग की भूमिका  इत्यादि- इत्यादि और सोचता था कि इन पर अपने मन के भावों को आलेखों में उजागर करू ! यूं भी मुझे पद्य के बजाये गद्य में अधिक रुचि है, मगर फिर एक अदृश्य सा ख्याल उस गर्मजोशी को यह कहकर शीतल कर जाता कि जहां तीन-तीन प्रत्यक्ष और एक परोक्ष गुलामी देशवासियों की मानसिकता बदल पाने में असमर्थ रही, वहाँ भला तेरे चंद आलेखों के लिखने-पढने से क्या हो जाएगा?कुछ नहीं होने वाला, जैसा चलता आया है, आगे भी वैसे ही चलेगा!मेरे जैसे चंद लोग जितना मर्जी अपना रक्तचाप बढायें, बर्फीले रेगिस्तानो में माना कि गरम पानी के भी कुछ चश्मे, तालाब (कुंड ) मिलते है, मगर यह भी हकीकत है कि उनका दायरा बहुत सीमित होता है, और बर्फ की शीतल परत उनके उष्मावान चरित्र को निष्क्रिय कर देती है!



अब देखिये न, दौलत रूपी हिमस्खलन(एवालांचे) भ्रष्टाचार रूपी मलीन बस्तियों को किस प्रकार ढककर चला जाता है, उसका अहसास आपने भी खबरिया चैनलों की दुकानों पर विश्रामकाल के वक्त खबरों के बीचों-बीच में और प्रात:काल के दौरान अखबारों के पन्नो में सतरंगी विज्ञापनों को देखने के बाद किया होगा! आज नेताओं की तो परिभाषा ही बदल गई है किन्तु देश,जीवन और काल, हर क्षेत्र में लोगों को उच्च मानवीय मूल्यों की दुहाई देने वाली ये दुकाने जब सिर्फ और सिर्फ अपने तथा किसी भ्रष्ट राजनैतिक पार्टी अथवा नेता के फायदे के लिए भ्रामक और गुमराह करने वाले विज्ञापन और पेड़-न्यूज प्रसारित करती है, तब लगता है कि शायद हम ही गलत है! जब मैं ये विज्ञापन देखता हूँ , जिनमे यह कहा जाता है कि हमने आपको बढ़िया राज दिया और आप सुशासन, अपराधमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त और प्रदेश की प्रगति के लिए फलां-फलां पार्टी के चुनाव चिन्ह पर मुहर लगाइए तो मैं तो यह सोच-सोचकर ही हैरान होता रहता हूँ कि हमने (जनता ने ) पिछले ५ सालों के दरमियाँ जो देखा, अगर इन नेतावों और खबरिया माध्यमों की नजरों में वह एक सुशासन, अपराधमुक्त, भ्रष्टाचारमुक्त और प्रगतिशील शासन था तो फिर कुशासन, भययुक्त,  अपराधपूर्ण और भ्रष्टाचारयुक्त शासन कैसा होता होगा? आप भी ठन्डे दिमाग से सोचिये, दावे के साथ कह सकता हूँ कि मेरी ही तरह आपके भी रौंगटे खड़े हो जायेंगे ! 



खैर छोडिये, आपको अब घीया बनाम लौंकी की कहानी सुनाता हूँ! यूं तो आज ऑर्गेनिक फसलों और सब्जियों, फलों को जल्दी पकाने, उन्हें बड़े आकार में करके अधिक लाभ कमाने हेतु रसायन छिड़कने, इंजेक्शन लगाने जैसे अनुचित और गैर-जरूरी तरीकों को अपनाने की बात आम हो चुकी है, और हर कोई इससे वाकिफ है किन्तु कुछ सालों पहले जब लोगो को इस बात का पता न था, तो क्या-क्या किस्से हुए, ऐसा ही एक छोटा सा मजेदार किस्सा आपको सुनाता हूँ ; २८ फरवरी जिस दिन मेरठ, गाजियाबाद, नौएडा इलाकों में मतदान था, तडके कहीं से लौट रहा था! इस आशंका के चलते कि कहीं फिर इन क्षेत्रों में रास्ते बंद न हो जाए, मैंने सीधे ही दफ्तर का रुख किया था! उस समय सड़कों पर ट्रैफिक भी कम था, तभी मैंने देखा कि एक बर्दीवाला मुझे रुकने के लिए हाथ दे रहा था! मैंने गाडी किनारे पर रोकी तो वह दौड़ता हुआ मेरी गाडी की तरफ आया, गाडी का शीशा मैंने पहले ही नीचे कर लिया था! ४०-४५ साल के वे श्रीमान उत्तरप्रदेश पुलिस के कोई सब-इन्स्पेक्टर थे, वे बोले ;सर जी, आप कहाँ जा रहे है ! मैंने प्रतिसवाल किया, आपको कहाँ जाना है ? वे बोले, सरजी मुझे जाना तो नौएडा सेक्टर ३७ है, मेरी चुनाव ड्यूटी है और मैं लेट हो रहा था, आप कहीं ऐसी जगह मुझे छोड़ दे......... मैंने कहा, आप बैठिये मैं आपको ३७ सेक्टर ही छोड़ दूंगा... ! उनकी तो मानो मन की मुराद ही पूरी हो गई हो, मैंने जल्दी ही यह भी भांप लिया कि सरकार कुछ शरीफ किस्म के इन्सान है, जो इस तरह लिफ्ट लेकर गुजारा कर रहे है, वरना तो आजकल सिपाही भी बाइक-कार से चलते है!



२५ मिनट के इस सफ़र में बाते शुरू भी हुई तो भ्रष्टाचार से और फिर बात पहुँच गई, देहरादून में उत्तराखंड और हिमांचल के बोर्डर के समीप हर्बर्टपुर की एक कहानी पर ! उनके कोई रिश्तेदार वहां रहते है, और कुछ साल पहले एक दिन वे सपरिवार जब अपने उन सम्बन्धियों के यहाँ गए तो देखा कि आँगन में भीड़ लगी थी! घर पर धुंए का भी अम्बार लगा था, अत: उन्होंने सहज ये अंदाजा लगा लिया था कि घर में कोई अग्निकांड हो गया है! ज्यों ही घर के एकदम निकट पहुंचे तो देखा कि तमाशबीन लोग कपडे से मुह ढापे खड़े थे! थोड़ा और निकट पहुचे तो इनकी भी सांस  फूलने लगी और खांसी आने लगी! अब इन्हें समझते देर न लगी कि यह जो धुँआ है वह मिर्च जलने की वजह से है! रिश्तेदारों से मिले और जानकारी ली तो उनकी बात सुन इनकी जोर से हँसी छूट गई ! माजरा यह था कि इनके रिश्तेदार मंडी से पिछले दिन जो सब्जी खरीदकर लाये थे, उसमे करीब एक फुट  का घीया भी था, जो उन्होंने लाकर टोकरी में रख दिया था! अगले दिन जब सब्जी बनाने का वक्त आया और वे लोग उस घीये को लेने गए तो तब तक वह एक फुट  का घीया ढाई फुट  की लौंकी बन चुका था! बस खबर फैलते ही आस-पास कोहराम मच गया कि इस घर में भूत आ गया है, और उसे भगाने के लिए मिर्च का धुँआ लगाया गया था! एक नेपाली किरायेदार भी था वह भी तुरंत घर खाली कर चलता बना था! इन सब-इन्स्पेक्टर महोदय ने फिर उन लोगो को बड़ी मुश्किल से यह समझाया कि इसमें भूत-वूत कुछ नहीं है, आप इंजेक्शन लगी तरकारी खरीद लाये !



इतिश्री !

10 comments:

  1. घीया और लौकी के बहाने बहुत कुछ कह गए आप ...... सुंदर प्रस्तुति. हेतु आभार.

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  2. आजकल तो यही हो रहा है।

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  3. ये करामाती इंजेक्शन एक दिन मे करामात दिखाता है भैया...:)

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  4. यह भी एक प्रकार के केमिकल शस्त्र है जिनका प्रयोग आदमियों पर होता हैं :)

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  5. यही तो है, नेताओं, बड़े अफसरों और व्यापारियों की समृद्धि का रहस्य.

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  6. हा हा हा... किराएदार तो घर खाली कर चलता बना। क्या करता बेचारा।
    भले ही आप गद्य में अधिक रुचि रखते हैं लेकिन आपकी कविताएं भी बड़ी शानदार रहती हैं।

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  7. अब तो सारे ख्वाब इन्जेक्शन लगे मिल रहे हैं, केवल फूलते हैं, फलते नहीं।

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  8. कास वो करामाती इंजेक्सन मुझे मिल जाता तो..

    भूले सब सब शिकवे गिले,भूले सभी मलाल
    होली पर हम सब मिले खेले खूब गुलाल,
    खेले खूब गुलाल, रंग की हो बरसातें
    नफरत को बिसराय, प्यार की दे सौगाते,

    सुंदर अभिव्यक्ति की भावपुर्ण बेहतरीन रचना,..
    NEW POST...फिर से आई होली...

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  9. कास वो करामाती इंजेक्सन मुझे मिल जाता तो..

    भूले सब सब शिकवे गिले,भूले सभी मलाल
    होली पर हम सब मिले खेले खूब गुलाल,
    खेले खूब गुलाल, रंग की हो बरसातें
    नफरत को बिसराय, प्यार की दे सौगाते,

    सुंदर अभिव्यक्ति की भावपुर्ण बेहतरीन रचना,..
    NEW POST...फिर से आई होली...

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  10. अर्थपूर्ण ... जहर परोसने का आसान तरीका निकाला है कमाने वालों ने ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।