...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
Friday, November 18, 2016
Tuesday, November 15, 2016
कशमकश !
दिन-दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी,
सब 'फेंकू' की सर्जिकळ स्ट्राइक के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
इस पार भी, उस पार भी,
सब 'फेंकू' की सर्जिकळ स्ट्राइक के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
तंग-ए-हाल, छटपटा रहे आज हर तरफ,
जीव चोडे जबडों और मोटी चमडी वाले,
क्रेडिटकार्ड से घर चलाना पड रहा, और
भरी तिजोरियों में लगे हैं मकड़ी के जाले।
क्रेडिटकार्ड से घर चलाना पड रहा, और
भरी तिजोरियों में लगे हैं मकड़ी के जाले।
खारे जल में घड़ियाली आंसू बहाने को
जहाँ -तहाँ ,मगरमच्छ भी बहुत सारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी,
दिन-दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
चबाया करते थे जो कलतक कुक्कुट टंगड़ी,
अचरज में अल्लाह के दुलारे, राम के प्यारे है,
इस पार भी, उस पार भी,
सब 'फेंकू' की "सर्जिकळ स्ट्राइक" के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
दिन-दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
थूक दिया करते थे जो कलतक इधर-उधर,
पांच सौ - हजार रूपये का पान चबाकर,
आज वो घंटों लाइन मे लगकर एटीएम की,
आज वो घंटों लाइन मे लगकर एटीएम की,
खुश हो रहे हैं , पांच सौ- दो हजार पाकर।
इनकी घूल-धुलसित शक्ळें बता रही है
कि दुनिया में इनके जैसे भी वक्त के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी,
दिन दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
इस पार भी, उस पार भी,
दिन दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
दुनिया तो दाल में काला ढूढ़ रही, मगर,
इनकी तो पूरी की पूरी दाल ही काली है,
किसे पता था कि वक्त ऐसी मार मरेगा,
बोर-बिस्तर नोटों से ठसे पड़े, जेब खाली है।
अधोलोक के विचरणकर्ता, लगे बेचारे है,
.इस पार भी, उस पार भी,
दिन दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
चबाया करते थे जो कलतक कुक्कुट टंगड़ी,
अपने ही घर की दाल समझकर,
उड़ा देते थे महफ़िलों, गणिकागृहों में नोट,
अपने ही बाप का माल समझकर। .
अचरज में अल्लाह के दुलारे, राम के प्यारे है,
इस पार भी, उस पार भी,
सब 'फेंकू' की "सर्जिकळ स्ट्राइक" के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
Wednesday, November 9, 2016
लघु व्यंग्य : हर पति के दिन फिरते हैं।
८ नवम्बर, 2016 की देर शाम को जब थका हारा दिल्ली के दमघोटू यातायात से जूझता हुआ दफ्तर से घर पंहुचा तो बैठक मे मेज पर तुडे-मुडे ५०० और १००० रुपये के नोटों का अम्बार देख एक पल को चौंक सा गया। लगा कि दुनियां का सबसे ईमानदार कहा जाने वाला तबका यानि आयकर विभाग के हरीशचन्दों की मंडली आज मेरे घर मे भी आ धमकी है, कि तभी किचन से हाथ मे पानी का गिलास लेकर धर्मपत्नी कुछ बडबडाती हुई मेरी ओर बढी। मैने अंदर से अशान्त होते हुए भी शान्त स्वर मे पूछा, क्या माजरा है ये सब, भाग्यवान ?
मेरा इतना पूछना था कि यूं लगा मानों टिहरी डैम के कर्मचारियों ने डैम के सारे कपाट खोल दिये हों और डैम का सारा रूका पानी अपने पूरे बेग से देवप्रयाग की तरफ निकल पडा हो। बोली, अरे, ये तो सचमुच का फेंकू निकला यार। कहता था, स्विस बैंक से ब्लैकमनी लाऊगा और १५-१५ ,लाख दूंगा सबको । कुछ देना लेना तो दूर, मैने तुम्हारी जेब से टपा-टपाके जो १०-१५ हजार रुपये बटोर कर रखे थे, उन पर भी कम्वक्त ने आज सर्जिकल स्ट्राइक कर दी।
मैं अभी भी दुविधा मे था, अत: मैने अपने धैर्य के बचे खुचे भन्डार का इस्तेमाल करते हुए सहज भाव से पूछा, जानेमन, बहुत नाराज हो क्या ,क्यों इतना अत्याचार कर रही हो मुझपर ? मैने तो परसों रविवार के दिन सिर्फ एक पव्वे के पैसे मांगे थे तुमसे, और तुमने तो आज खजाना ही खोल दिया। वो स्वभाव को नरम करते हुए टीवी पर न्यूज चैनल लगाते हुए बोली, वो देखो और सुन लो , अपने अजीज फेंकू महाराज को, भक्तों को क्या भगवद्गीता का पाठ पढ़कर सुना रहे हैं। खैर , चाय वाले को ....... बोलते, बोलते वह रुक सी गई , फिर बोली, जाओ ,टेबल पर से १००० का नोट ले जाओ और पब्वे की जगह बोतल ही ले आना तुम्हारा हफ्ते भर का गुजारा हो जायेगा। और हाँ, साथ मे तंदूरी चिकन भी ले आना अपने लिए।
पतियों के इससे अच्छे भला क्या दिन आते, मै, हजार का एक नॉट मुट्ठी में दबा ,झटपट मोदी जी की जय बोलकर, नजदीकी मन्दिर के लिए निकल पडा।
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