दिन-दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी,
सब 'फेंकू' की सर्जिकळ स्ट्राइक के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
इस पार भी, उस पार भी,
सब 'फेंकू' की सर्जिकळ स्ट्राइक के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
तंग-ए-हाल, छटपटा रहे आज हर तरफ,
जीव चोडे जबडों और मोटी चमडी वाले,
क्रेडिटकार्ड से घर चलाना पड रहा, और
भरी तिजोरियों में लगे हैं मकड़ी के जाले।
क्रेडिटकार्ड से घर चलाना पड रहा, और
भरी तिजोरियों में लगे हैं मकड़ी के जाले।
खारे जल में घड़ियाली आंसू बहाने को
जहाँ -तहाँ ,मगरमच्छ भी बहुत सारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी,
दिन-दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
चबाया करते थे जो कलतक कुक्कुट टंगड़ी,
अचरज में अल्लाह के दुलारे, राम के प्यारे है,
इस पार भी, उस पार भी,
सब 'फेंकू' की "सर्जिकळ स्ट्राइक" के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
दिन-दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
थूक दिया करते थे जो कलतक इधर-उधर,
पांच सौ - हजार रूपये का पान चबाकर,
आज वो घंटों लाइन मे लगकर एटीएम की,
आज वो घंटों लाइन मे लगकर एटीएम की,
खुश हो रहे हैं , पांच सौ- दो हजार पाकर।
इनकी घूल-धुलसित शक्ळें बता रही है
कि दुनिया में इनके जैसे भी वक्त के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी,
दिन दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
इस पार भी, उस पार भी,
दिन दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
दुनिया तो दाल में काला ढूढ़ रही, मगर,
इनकी तो पूरी की पूरी दाल ही काली है,
किसे पता था कि वक्त ऐसी मार मरेगा,
बोर-बिस्तर नोटों से ठसे पड़े, जेब खाली है।
अधोलोक के विचरणकर्ता, लगे बेचारे है,
.इस पार भी, उस पार भी,
दिन दोपहर मे नजर आ रहे इनको तारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
चबाया करते थे जो कलतक कुक्कुट टंगड़ी,
अपने ही घर की दाल समझकर,
उड़ा देते थे महफ़िलों, गणिकागृहों में नोट,
अपने ही बाप का माल समझकर। .
अचरज में अल्लाह के दुलारे, राम के प्यारे है,
इस पार भी, उस पार भी,
सब 'फेंकू' की "सर्जिकळ स्ट्राइक" के मारे हैं,
इस पार भी, उस पार भी।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 16 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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