Saturday, November 26, 2011

यदि होता किन्नर नरेश मैं !

नहीं मालूम कि महाकवि स्वर्गीय द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी, जिनकी आगामी १ दिसंबर को पुण्य-तिथि है, ने किन परिस्थितियों के मध्य नजर अपनी बाल-मन को ओत-प्रोत करने वाली यह जानदार कविता लिखी थी;



यदि होता किन्नर नरेश,

मै शाही वस्त्र पहनकर,

हीरे पन्ने मोती माणिक,

मणियों से सजधज कर.......!



मेरे वन में सिंह घूमते,

मोर नाचते आँगन में ............!



.............राजमार्ग पर ,

धीरे-धीरे आती देख सवारी,

रुक जाते पथ दर्शन करने,

उमड़ती प्रजा सारी,.............!!



क्या कल्पना की थी माहेश्वरी जी ने, बस मुह से एक ही शब्द निकलता है .. वाह ! लेकिन मैं ठहरा, खडी-बोली,लठमार भाषा और मोटी-बुद्धि से सोचने वाला इंसान, तो भला इधर-उधर की कैसे सोच पाऊँगा ? वैसे भी जब ठीक सामने सोचने और देखने के लिए इतना कुछ हो तो इधर-उधर जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता ! अभी कुछ दिन पहले जब किन्नरों के देश में कुछ किन्नर लाक्ष्या-गृह की भेंट चढ़ गए थे तो तभी से अनेकों तरह के प्रश्न इस कबाड़ी दिमाग में घूम रहे थे ! क्या आग लगना महज एक संयोग था ? कहीं आग लगने के पीछे कोई खुरापाती शकुनी और दुर्योधनी दिमाग तो नहीं काम कर रहा था? यदि हां, तो क्या ये किन्नर प्राणि-मात्र की कैटेगिरी में नहीं आते ?



इन्हीं कुछ सवालों के इर्द-गिर्द घूमते हुए आखिरकार मैं पहुँच ही गया ख्यालों की अपनी एक अलग ही मद-मस्त रंगीन दुनिया में! जहां हर चीज को मैं अपने मोल-भाव के बल पर तोल पाने में  हमेशा सक्षम रहता हूँ ! वहाँ तो मैं सिर्फ किन्नरों के एक तबके की ही बात कर रहा था, मगर यहाँ तो मुझे एक-आद भगतसिंह के अलावा अपने इर्द-गिर्द सारे ही किन्नर नजर आ रहे थे! वो किन्नर तो पेट के खातिर एक ख़ास मौके पर ही अपने कस्टमर को लूटने जाते है, मगर यहाँ तो जिस भी किन्नर को जब मौक़ा मिल रहा था, सामने वाले को नोच खा रहा था! और खा ही नहीं रखा था बल्कि नैतिकता की दुहाई भी साथ-साथ दिए जा रहा था!



खुद जब इन किन्नरों को मौका मिला तो अपने किन्नर नरेश की सुरक्षा की दुहाई देकर इन्होने उस एक युवा नौजवान को जो अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का इस्तेमाल कर रहा था, उसे लात-घूंसों से न सिर्फ मारा बल्कि अंधे-कानून से भी अपने को साफ़ बचा लिया, और जब एक दुसरे बहादुर नौजवान ने इन्हें इनकी ही भाषा में जबाब दिया, तो ये लगे लोकतांत्रिक मूल्यों और नैतिकता की दुहाई देने ! बहादुर नौजवान जो पेट के खातिर देश की सुरक्षा-व्यवस्था को संभाले हुए है, वे जब एक किन्नर कामरेड को मारते है तो ये वहा भी नैतिकता का पाठ पढ़ाने पहुँचकर बजाये उन नौजवानों की हौंसला अफजाई करने के, जो जंगलों में इनके बुने जालों को ध्वस्त करने में दिन-रात अपनी जान की बाजी लगाए हुए है, उस किन्नर के प्रति सहानुभूति बरतने पहुँच जाते है, जिसने पिछले ३० सालों में राज्य के विरुद्ध लड़ाई का बहाना बना अपने हित-साधना के लिए अनेकों निर्दोषों का नृशंस क़त्ल किया! इन दुर्बुद्धिजीवी किन्नरों से कोई पूछे कि राज्य किसका है ? आम जनता का ! फिर जनता के विरुद्ध लड़कर आप क्या साबित करना चाहते है ? खैर, बड़ी लम्बी लिस्ट है इन इन किन्नरों की ........................!



हाँ, अब विषय पर लौटते हुए मैं यह कहूंगा कि यदि मैं किन्नर नरेश होता तो और कुछ नहीं तो इन किन्नरों के लिए जो सामाजिक भेदभाव को झेलने के लिए मजबूर है, उनके लिए भी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान अवश्य करता ! हर वह प्राइवेट कम्पनी जो अपने देनदारों से बकाया वसूलने के लिए हमेशा छटपटाती रहती है उनके लिए यह अनिवार्य करता कि वे अपनी संस्था में ४ किन्नर वसूली विभाग में अवश्य नियुक्त करेंगे ! सोचो, जब चार किन्नर किसी मोटे आसामी के घर अथवा सरकारी दफ्तर में वसूली के लिए पहुंचेंगे तो ले के दिखाए कोई माई का लाल सरकारी बाबू उनसे घूस, कम्पनी का बिल पास करने के लिए................!

Thursday, November 24, 2011

जय हिंद - भगत सिंह !


कौन कहता है कि हमारे देश में बहादुर नहीं रहे ?





Friday, November 18, 2011

इन्होने निर्माण का सपना बुना और खूब लगाया चूना !

अभी दो दिन पहले सुबह दफ्तर जाते हुए जाम में डूबी सड़क पर झख मार रहा था कि तभी कुछ दूर तक तेलगाडी को हांकने के बाद देखा कि बड़ी तादात में यूपीए की कामयावियों ( कारगुजारियों कहना ज्यादा उचित होगा ) और श्रीमती सोनिया गांधी और श्री मनमोहन सिंह के मनमोहक चित्रों से सजे ट्रक सड़क की अन्दुरूनी लेन में खड़े थे ! उन पर एक आकर्षक शैली में नारा लिखा था 'भारत निर्माण का सपना बुना, प्रगति हुई कई गुना" ! मैंने एक नजर उधर डाली, मुस्कुराया और चल दिया ! ये बात और थी कि दिल की गहराइयों में कहीं कुछ अस्पष्ट भद्दे से तारीफ़ के शब्द भी अंकुरित हो रहे  थे कि ये भ्रष्ट शायद अपनी प्रगति की बात कर रहे है ! सड़क पर चलते हुए बस यही सोचने लग गया कि नेता और लालफीताशाह आम इंसानों को कितना बेवकूफ समझता है, जो हरवक्त उन्हें भ्रमित करने के हथकंडे खोजता रहता है! साथ ही मैं यह सोचकर खुद की पीट थपथपाने में भी तनिक देरी नहीं करता कि आज के इस युग में जबकि इस भ्रष्ट प्रजाति के प्राणि पर कुछ लिखना दिन-प्रतिदिन इतना कष्ठ्दायक होता जा रहा है, मैं तब भी अपनी स्याह तलवार का रुख इनकी और करने से नहीं हिचकता !



इन्होने भारत निर्माण का सपना बुना इसमें कोई दो राय नहीं है ! वैसे भी इन्हें सपने बुनने और ख्याली पुलाव पकाकर जनता को खिलाने की महारत हासिल है ! लेकिन प्रगति हुई कई गुना पर आकर साँस अटक सी जाती है ! रूह की कोशिकाए फडकने लगती है, रौंगटे माउंट एवरेस्ट की तरह खड़े हो जाते है ! अभी मैं लाल बत्ती पर खड़े-खड़े अपने इर्दगिर्द के तापमान को सामान्य स्तर पर लाने की जुगत में ही था कि तभी खिड़की के शीशे पर ठक-ठक की आवाज ने मेरी उस अवांछनीय तंद्रा को तोड़ते हुए मुझे खिड़की के उसपार खड़ी नजर आ रही आकृति की तरफ अपने चश्मे का फोकस सेट करने के लिए मजबूर कर दिया ! फटेहाल एक महिला गोद में ८-१० महीने के एक शिशु को लिए खड़ी थी, जिसके माथे पर उसने एक सफ़ेद पट्टी बांध रखी थी ! बिना खिड़की का शीशा उतारे ही उस पर से आने वाली उसकी करुणामई आवाज को मैं सुन पाने में समर्थ था ! वह एक हाथ से गोद में पकडे बच्चे की तरह इशारे से इंगित करते हुए लम्बी तर्ज निकाल फिर हाथ को मेरी तरफ फैला गुहार लगा रही थी.....बाबूजीईईईईईईईईई, भगवान आपका भला करेगा....................बाबूजीईईईईए........ !



अभी थोड़ी देर पहले मैंने वो ट्रकों की कतार और उनपर सजी-धजी फोटुए व स्लोगन ( नारे ) न देखे होते, तो शायद था कि डैश-बोर्ड में पडी खरीज (खुले सिक्के) में से एक सिक्का उठाकर उसकी तरफ उछाल ही देता किन्तु ये क्या, उसवक्त उसके हावभावों, बच्चे के माथे पर रखी सफ़ेद पट्टी और उस भिखारन की मुख मुद्रा-शैली में मुझे तो वोट मांगते अपने देश के नेताओं की छवि नजर आ रही थी, अत: मैं गुर्राया ; अबे मेरा तो भला ही होगा, चाहे मैं तुझे पैंसे दूं या न दूं......मैं जब किसी का बुरा ही नहीं करता तो मेरा बुरा क्यों होगा?.... यहाँ काहे को झक मार रही है, सीधे जनपथ अथवा रेसकोर्स रोड क्यों नहीं चली जाती....सुना है वहाँ कई गुना प्रगति हो रही है और बोरे भर-भरके नोट बांटे जा रहे है........" मैं बस इसीतरह मन की भड़ांस निकालने में लगा था कि वह महिला भिखारन कब ऐसे मेरी नजरों के आगे से गायब हो गई, जैसे चुनाव संपन्न होने के बाद नेता लोग तुरंत गाँव,मुहल्लों से गायब हो जाते है, मुझे पता ही न चला !



कल ही एक खबर पढी थी कि मथुरा की एक अदालत ने आनर किलिंग के एक मामले में २० साल बाद मुकदमा सुनाकर पंद्रह दोषियों को मौत की सजा और बीस को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है ! इसपर अनेक लोगो की प्रतिक्रियाएं भी पढी और सुनी! लोगों ने न्याय की प्रक्रिया में देरी का खूब रोना रोया और कुछ ने हमारे न्याय-तंत्र पर उँगलियाँ भी उठाई ! आज फिर एक खबर पर नजर गई कि हमारे राज्य सभा के अनेकों सांसदों जिनमे से अधिकांश अधिवक्ता है उनकी प्रतिदिन की प्रतिव्यक्ति " घोषित आय " दस से २५ लाख के बीच में है ! वाह रे मेरे देश ! एक वह तथाकथित "धनी आम-आदमी" भी तेरी ही भूमि पर पल रहा है जो ३२ रूपये रोज कमाता है और एक ये भी हैं ! अभी कुछ समय पहले पढ़ा था कि इस देश के कुछ नामी वकील सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में किसी का मुकदमा लड़ने की एक दिन की फीस २० लाख से ४० लाख के बीच में लेते है ! तो अब भला आपलोग उस ईमानदार जज (If any ) , से क्या अपेक्षाए रखते है जो साल के सात-आठ लाख रुपये मात्र अपने वेतन से कमाता है ? वह फैसला देने में २० साल नहीं लगाएगा तो क्या करेगा ? उसे भी तो अपने बीबी-बच्चे पालने है भले मानुषों !



हाँ, कुछ सुधार की गुंजाईश अगर है तो वह है नजरिये में सुधार ! दुर्भाग्यबश, असमानताओं (disparities )ने इस देश का पीछा कभी भी नहीं छोड़ा! अभी जब हमारे महामहिम सर्वोच्च न्यायलय ने  आनर किलिंग पर अपना रुख सख्त करते हुए दोषियों को मौत की सजा की पैरवी की तो अब निचली अदालतें धडाधड दोषियों को मौत की सजा सुनाने में लगी है ! लेकिन मैं अपने न्यायतंत्र से सवाल करना चाहूँगा कि झूठी शान के लिए किसी निर्दोष को मारने की सजा यदि सजाये मौत है तो वह सिर्फ गाँव-चौपाल और जाति-धर्म तक ही सीमित क्यों ? अभी जिस भिखारन का जिक्र मैंने इस लेख में ऊपर किया, क्या वह आनर किलिंग नहीं है ? इन्सान भ्रष्टाचार में लिप्त क्यों होता है? सीधा सा जबाब है कि समाज में अपनी झूठी शान, दिखावे और अपने ऐशो आराम के लिए वह इसे अंजाम देता है ! मगर ऐसा करते वक्त जब इस देश का एक भ्रष्ट नेता अथवा नौकरशाह सरकारी खजाने को लूटकर लूटे गए धन को अपने घर अथवा विदेशों में जमा करता है तो देश-समाज में उस धन से मिलने वाले लाभों से कई लोग वंचित रह जाते है! धन के अभाव में रोजगार नहीं पनपते और देश के अनेकों शिक्षित युवा खिन्नता और अवसाद की वजह से आत्महत्या करने पर विवश हो जाते है ! भ्रष्टाचार की नीव में घटिया सामग्री के इस्तेमाल से अनेकों दुर्घटनाये होती हैं, उस धन का उपयोग समाजविरोधी गतिविधियों में होता है और परिणिति स्वरुप अनेकों बेक़सूर लोग मारे जाते है, तो क्या वह आनर किलिंग नहीं है ? यदि है तो फिर इस देश में भ्रष्टाचारियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान क्यों नहीं ?

Saturday, November 5, 2011

पैसे पेड़ पर नहीं उगते !


खबर : "पेट्रोल की कीमतों में इजाफे से परेशान आम आदमी को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राहत देने की बजाय और अधिक जख्म दे दिया है। फ्रांस में मीडिया से बात करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पेट्रोल की कीमतों में कमी नहीं होगी। हमें समझना होगा कि पैसा पेड़ पर नहीं उगता। हम अपने संसाधनों से परे नहीं जा सकते। हमें कीमतों पर नियंत्रण हटाने की तरफ आगे बढऩा है। मुझे कहते हुए कोई झिझक नहीं है कि इस मामले (कीमतों के संदर्भ में) पर बाजार खुद फैसला करेगा।"




प्रतिक्रियास्वरूप मैं बस इतना ही कहूंगा कि यह एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना वक्तव्य है, इन माननीय का ! काश कि ये अर्थशास्त्री महोदय अपने इस उपदेश का ख़याल उस वक्त भी रखते, जब इनके अधीनस्थों द्वारा चारों दिशाओं में दोनों हाथों से इस देश का खजाना लूटा जा रहा था !  आज तक इन्होने जो झूठे आश्वाशनो से देशवासियों को बरगलाया कि फलां-फलां वक्त के अन्दर महंगाई ख़त्म हो जायेगी, उसका क्या ?

खैर, कुछ लोग होते है जो न तो हद-ए-मुश्किल से गुजर पाते है, और न ही कश्ती से उतर पाते है !


करनी भ्रष्ट की क्यों जन-जन भुगते,
काश, अगर दरख़्त पर पैसे उगते !
पूछता ही क्यों फिर श्वान भी कोई,
नेक क्यों फिर शठ समक्ष झुकते !
काश, अगर दरख़्त पर पैसे उगते !!
मेहनतकश ढेरों वृक्ष भी उगा लेता,
मगर क्या करता भ्रष्ट-निठल्ला  नेता,
मुफ़लिस-दरिद्र न दाना-दाना चुगते !
काश, अगर दरख़्त पर पैसे उगते !!



छवि गूगल से साभार !

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...