खबर : "पेट्रोल की कीमतों में इजाफे से परेशान आम आदमी को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राहत देने की बजाय और अधिक जख्म दे दिया है। फ्रांस में मीडिया से बात करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि पेट्रोल की कीमतों में कमी नहीं होगी। हमें समझना होगा कि पैसा पेड़ पर नहीं उगता। हम अपने संसाधनों से परे नहीं जा सकते। हमें कीमतों पर नियंत्रण हटाने की तरफ आगे बढऩा है। मुझे कहते हुए कोई झिझक नहीं है कि इस मामले (कीमतों के संदर्भ में) पर बाजार खुद फैसला करेगा।"
प्रतिक्रियास्वरूप मैं बस इतना ही कहूंगा कि यह एक बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना वक्तव्य है, इन माननीय का ! काश कि ये अर्थशास्त्री महोदय अपने इस उपदेश का ख़याल उस वक्त भी रखते, जब इनके अधीनस्थों द्वारा चारों दिशाओं में दोनों हाथों से इस देश का खजाना लूटा जा रहा था ! आज तक इन्होने जो झूठे आश्वाशनो से देशवासियों को बरगलाया कि फलां-फलां वक्त के अन्दर महंगाई ख़त्म हो जायेगी, उसका क्या ?
खैर, कुछ लोग होते है जो न तो हद-ए-मुश्किल से गुजर पाते है, और न ही कश्ती से उतर पाते है !
खैर, कुछ लोग होते है जो न तो हद-ए-मुश्किल से गुजर पाते है, और न ही कश्ती से उतर पाते है !
करनी भ्रष्ट की क्यों जन-जन भुगते,
काश, अगर दरख़्त पर पैसे उगते !
पूछता ही क्यों फिर श्वान भी कोई,
नेक क्यों फिर शठ समक्ष झुकते !
काश, अगर दरख़्त पर पैसे उगते !!
मेहनतकश ढेरों वृक्ष भी उगा लेता,
मगर क्या करता भ्रष्ट-निठल्ला नेता,
मुफ़लिस-दरिद्र न दाना-दाना चुगते !
काश, अगर दरख़्त पर पैसे उगते !!
छवि गूगल से साभार !
सुन्दर सारगर्भित कविता...बधाई
ReplyDeleteनीरज
बिल्कुल सही कह रहे है आप्।
ReplyDeleteकरनी भ्रष्ट की क्यों जन-जन भुगते,
ReplyDeleteकाश, अगर दरख़्त पर पैसे उगते !
सटीक !!
काश .. होता ऐसा ... समसामयिक अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसरकार के पास तो पैसे का पेड़ नहीं लगा पर इन माननीय प्रधान मंत्री जी को लगता है कि जनता के घर पैसे का पेड़ लगा है जो उनकी बढाई मंहगाई के बाद भी पेट्रोल खरीदती रहेगी |
ReplyDeleteGyan Darpan
अब तो घर में बैठकर धूनी रमायी जायेगी।
ReplyDeleteमेरे घर पर भी पैसों का पेड़ नहीं है :(
ReplyDeleteपैसों के पेड केवल नेताओं के घर में ही उगा करते है क्योंकि निर्लज्जता की खाद केवल वहीं उपलब्ध होती है॥
ReplyDeleteबहुत सुन्दर दर्शाया आप ने मेहनत कश सच में जी लेते ...लेकिन काश ये काश ......
ReplyDeleteभ्रमर ५
मेहनतकश ढेरों वृक्ष भी उगा लेता,
मगर क्या करता भ्रष्ट-निठल्ला नेता,
मुफ़लिस-दरिद्र न दाना-दाना चुगते !
काश, अगर दरख़्त पर पैसे उगते !!
सही रचना गढ़ी है ।
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।">चर्चा
यह सूचना टिप्पणी बटोरने हेतु नही है बस यह जरूरी लगा की आपको ज्ञात हो आपकी किसी पोस्ट का जिक्र यहाँ किया गया है कृपया अवश्य पढ़े आज की ताज़ा रंगों से सजीनई पुरानी हलचल
ReplyDeleteक्या बात कही है जनाब ......यथार्थ समीचीन सन्दर्भ..... सुक्रिया जी /
ReplyDeleteकाश, अगर दरख़्त पर पैसे उगते !
ReplyDeleteBahut khub vichar hain,,,Umda vyang..
www.poeticprakash.com
bahut achchi lagi.....
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार और प्रस्तुति.
ReplyDeleteबधाई.
राजनीतिक विडंबना.
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा माननीय ने... पैसे पेड़ पर थोड़े उगते हैं वो तो इनके आकाओं ने स्विस और अन्य देश के बैंकों में जमा कर रखे हैं....
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