Saturday, October 29, 2011

निर्विग्न !

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में लोगो के बीच अनुशासन की भावना पैदा की जानी चाहिए, और खासकर हम हिन्दुस्तानियों को तो आज इसकी शख्त जरुरत है! मगर हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हमने जो आजादी की लम्बी लड़ाई लड़ी उसकी एक मुख्य वजह थी, भेदभाव ! मगर क्या आजादी के बाद हमने इसे मिटाने की ईमानदारी से कोशिश की ? ऐसा नहीं कि आजादी से पहले अंग्रेज यहाँ की सड़कों पर पेशाब न करते हों, मगर जिन सड़कों पर पर वे कुत्तों और हिन्दुस्तानियों को ऐसा करने से वर्जित कर देते थे, वे खुद भी नहीं करते थे! लेकिन आजादी के उपरान्त क्या यह डिस्क्रिमिनेशन हमने ख़त्म किया? नहीं बल्कि चंद रसूकदार और स्वार्थी लोगो ने उसका भरपूर दुरुपयोग ही किया! अब यहाँ देखिये कि इन रसूकदारों को न सिर्फ बचाया जाता है बल्कि कैसे फायदा पहुंचाया जाता है! इसे भेदभाव न कहें तो और क्या है? एक वाकया उदाहरण के तौर पर पेश है; एक साथी की दिल्ली से चेन्नई होते हुए कोयम्बटूर की फ्लाईट थी, कुछ समय से एक नया नियम एयर पोर्टों पर यात्रियों के लिए लागू किया गया है कि फ्लाईट के प्रस्थान के समय से ४५ मिनट पहले यदि कोई यात्री काउंटर पर नहीं पहुंचता है तो काउंटर उसके लिए बंद कर दिया जाएगा ! यानि कि 'नो शो' और गई भैस पानी में टिकट की कीमत के साथ! उक्त व्यक्ति उड़ान के निर्धारित समय से ३५ मिनट पहले इसलिए एअरपोर्ट क्योंकि रस्ते में जाम लगा हुआ था, निकलने का रास्ता नहीं था! ऊपर से उड़ान कंपनी की मौकापरस्ती देखिये कि आप दो हजार रुपये अतिरिक्त दीजिये, हम अगली फ्लाईट से आपको चिन्नई तक भेज देंगे! हमारे जज लोगो का फैसला है कि यदि आपको जाम में फंसे होने की वजह से कहीं पहुँचने में कठिनाई और नुकशान होता है तो उसका हर्जाना नगरपालिका से मांगिये ! मगर क्या इस देश में यह इतना आसान काम है ?





5 comments:

  1. निश्चय ही चिन्तनीय स्थिति, सबके लिये न्याय बराबर रहे।

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  2. यह तो धींगा मस्ती है ।

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  3. अंग्रेजों व राजाओं ज़माने में जनता कितनी लुटती थी उसकी तो सिर्फ कहानियां ही सुनते है वो भी इन नेताओं के मुँह से!
    जिन बुजुर्गों ने वो राज देखा था उनके मुँह से कभी कोई शोषण व अत्याचार वाली कहानियां नहीं सुनी पर अब इन देशी अंग्रेजों के राज में देख रहें है कि -कैसे कोर्पोरेट घराने देश की जनता और संसाधनों को खुलेआम बड़ी बेशर्मी से लुट रहे है और ये सारी लुट राजनेताओं व प्रशासन की सांठगांठ से चल रही है|

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।