२० दिन पूर्व इस माह की ६ तारीख को टीवी पर ख़बरों में सुन रहा था कि रावण मर गया है ! वैसे तो मरते-मरते भी कम्वख्त दिल्ली के रामलीला मैदान में एक ११ साल की बच्ची को भी लील गया था, मगर एक तरफ जहां इस बात का दुःख था कि एक निरपराध मासूम को इस कम्वख्त प्राणि की वजह से अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, वहीं इस बात की संतुष्ठी भी थी कि चलो एक राक्षश का बोझ तो कम हुआ इस धरती पर से ! लेकिन ये क्या, बाद में पता चला कि वह तो महज एक नाटक था रावण के खात्मे का, असली रावण तो अभी भी जीवित है, अपने पूरे राक्षशी दल-बल के साथ ! यह मूर्ख और भोली-भाली प्रजा झूठमूठ में अपने को खुश करने के लिए सदियों से इसी तरह के नाटक रच अपने को मुगालते में रखती चली आ रही है, जबकि रावण महाशय और उनके नाते-रिश्तेदार , चमचे इत्यादि फुल ऐश कर रहे है!
अभी कुछ दिनों पहले उसके भाई कुम्भकरण की ससुराल के दूर के रिश्ते का एक भाईबंद लम्बे रक्तपात के बाद लीबिया में एक सीवर लाइन के अन्दर से पकड़ा गया तो नाली के उस कीड़े राक्षश को सीवर पाइप से बाहर खीचने के बाद गुस्से में उसे पकड़ने वालों ने उसका वहीं पर मार-मार कर कचूमर निकाल दिया ! सही भी था, क्योंकि जिसने अपने ४०-४२ साल के एक क्षत्र राक्षशी राज में हजारों बेगुनाहों का क़त्ल करवाया और किया हो, उसे इससे बेहतर और क्या सजा दी जा सकती थी, मगर यह क्या दुनिया में शान्ति का ठेका लेने वाली एक संस्था ने उस पर भी ऐतराज उठा दिया कि जब पकड़ लिया था तो उसे मारा क्यों ? हो सकता है कि वे उसे जिन्दा ही कहीं किसी म्यूजियम में रखना चाह रहे हों ! मगर इन भले मानुसों को ऐतराज उठाने से पहले यह भी तो सोचना चाहिए था कि जब वह अपने शासन काल के दौरान निरंकुश होकर बेगुनाहों को मार रहा था तब ये ठेकेदार महाशय कहाँ थे ? अभी भी अगर प्रजा इस दानवतंत्र के खिलाफ खुले विद्रोह पर न उतरती तो ये महाशय तो सोये ही बैठे थे! खैर, बहती गंगा में हर कोई हाथ धोने में माहिर है क्योंकि जेब से ढेला भी नहीं जाता!
और जो वाकई कुछ ईमानदारी से करने का जज्बा रखता है, सच को सामने लाने का प्रयास करता है उसे आखिरकार अपनी दूकान ही बंद करनी पड़ती है ! असांजे को ही देख लीजिये, बेचारा हार गया आखिरकार कुटिल तंत्र के दांव-पेंचों के आगे ! अपने देश के हालात भी ख़ास भिन्न नहीं हैं इससे, देख लीजिये कि किस तरह इस देश की रंगमंच की माहिर नाटक कलाकार जनता बिना पर्दा गिराए और बत्ती बुझाए ही वस्त्र पर वस्त्र बदल लेती है, माहौल और मौसम के हिसाब से ! एक अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम क्या छेड़ी, इनके कुछ रंगकर्मी तबसे शो पर शो दिखाए जा रहे है, अन्ना को गलत साबित करने हेतु ! वैसे हम लोग दशहरा मनाते है बुराई पर अच्छाई की जीत का नाटक खेलकर, दिवाली पर प्रकाश का खेल खेला जाता है ताकि घर का कोई भी कोना अंधकारमय न रहे! रामचन्द्रजी के रावण को मार अयोध्या लौट आने की खुशी के जश्न में मिठाइयां बांटी जाती है ! मगर इन गली-नुक्कड़ के ड्रामेबाजों से कोई ये पूछे कि अरे बेशर्मों, अगर रामचद्र जी के वापस आने की इतनी ही खुशी है तुम्हे तो क्या तुमने ये सोचा कि वापस अयोध्या आकर वो रहेंगे कहाँ? वो बेचारा चौदह साल तक वन-वन फिरता रहा, दानवों से लड़ता था, अपनी धर्मपत्नी को छुड़ाने लंका में रावण से भिड़ता रहा और जो उनके बाप-दादाओं की जमीन-जायजाद थी, वो यहाँ तुमने पहले तो मूक-दर्शक बनकर विदेशी डाकुओं के हाथों लुट जाने दी और अब वर्षों से कोर्ट-कचहरी के चक्करों में तालाबंद पडी है! जमीन इतनी महंगी हो गई है कि गाँवों में भी उसके भाव आसमान छूं रहे है ! दिल्ली जैंसे शहरों में तो उसके जैसे शरीफ और ईमानदार इंसान के लिए ख्वाब देखना ही आसमान से तारे तोड़ लाना जैसा है! सरकारी जमीन पर लोकतंत्र की आड़ में भ्रष्ट और चोर-मवाली कब्जा किये बैठे है! रावण के खिलाफ तो वो तीर और भालों से लड़ गए, मगर इन मोटी चमड़ी वालों पर तो तीर और भालों का भी असर नहीं होने वाला !
खैर, छोडिये ये सब बातें ! कुछ भी बदलने से तो रहा यहाँ , जैसा आज तक चला आया था आगे भी चल लेगा ! क्योंकि न तो हम लोग अपने गोरख-धंधे और रंग-मंच से परहेज रखेंगे और न ही दर्शकगण अपना कीमती वक्त गवाने से बाज आने से रहेंगे,क्योंकि तमाशबीन ज्यादा हो गए है इस देश में ! न अपने स्वार्थ के लिए सरकारी बाबुओं की अपने ऊपर कृपा-दृष्ठि बने रहने हेतु हम उन्हें दिवाली का बहाना करके महंगे तोहफों से नवाजने की परम्परा छोड़ने वाले और न ही ये सरकारी बाबू लोग चाहकर भी अन्य दिनों की अपेक्षा दिवाली के आस-पास के इन ४-५ दिनों में दफ्तर में पूरे दिन अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से बाज आने वाले ठहरे ! बस, खूब खाइए खिलाईये, नकली मावे की जहरीली मिठाइयां क्योंकि अपने देश के इन रंग-कर्मियों ने खासकर पश्चमी उत्तरप्रदेश की बेल्ट के कलाकारों ने सालभर नकली और जहरीला माल बनाने में इतनी मेहनत जो कर रखी है !
मरियल सा माली है,
बगिया में बदहाली है,
दस्यु सुन्दरी नचा रही,
अभ्यागत मवाली है।
अनुज खपाता देह,मन ,
दनुज द्रव्य से भरे निकेतन ,
गेह निष्कपट पसरा तम है ,
कपटी के घर दीवाली है।
शठता की चकाचौंध में,
नेक नैन-दृष्ठि खो बैठा ,
सावन के अंधे की मति में,
हरयाली ही हरियाली है।
सबल बेख़ौफ़ बने इतराए,
दुर्बल को है क़ानून डराए,
वही भैंस हांक ले जा रहा,
जो यहाँ पर बलशाली है।
न्याय नित पैंतरे बदलता,
छानबीन का नाटक चलता,
दाल में काला क्या ढूढेंगे ,
जब पूरी दाल ही काली है।
आपको दीपावली की हार्दिक शुभ-कामनाएं !
दाल में काला क्या ढूढें , जब पूरी दाल ही काली है !!
ReplyDeleteआपको भी दीपावली की हार्दिक शुभ-कामनाएं !!
godiyal ji namskar acchi post behatr sandesh
ReplyDeleteजब तक रहेंगें तमाशबीन
ReplyDeleteतब तक बजेगी यह बीन ???
दीपावली की मुबारक और शुभकामनाएँ!
Bahut hi sundar lekh. Awaj dabni nahi chahiye.
ReplyDeleteदिग्भ्रमित हो कर ही जीवन जीने के आदी हो चुके हैं ..तीक्ष्ण कटाक्ष ...
ReplyDeleteदीपावली की शुभकामनायें
जोरदार , असरदार गद्ध और पद्ध .
ReplyDeleteदीवाली की हार्दिक शुभकामनायें गोदियाल जी .
संगीता पूरी जी, विकास मेहता जी, आदरणीय सलूजा जी, संगीता स्वरुप जी, गिरीजी और आपको भी दीपावाले की हार्दिक शुभकामनाये डा० सहाब !
ReplyDeleteजोरदार कटाक्ष सुन्दर प्रस्तुति...गोदियाल जी
ReplyDeleteआपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
इस दिग्भ्रमित दुनिया को आज तो उजास मिले। दीपावली की शुभकामनाएं॥
ReplyDeleteशुभ दिवाली !
ReplyDeleteगोदियाल जी नमस्ते
ReplyDeleteवैसे आपकी पोस्ट हमेसा ही अच्छी रहती है लेकिन ये पोस्ट तो बहुत ही प्रभावित करने वाली है ,लेकिन क्या किया जाय सोता हिन्दू -सोता देश कुम्भकरण की नीद सोया है रावण अट्टहास कर रहा है कह रहा है की देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यको का है ,देश का धन ईटली जा रहा है हम चुप-चाप देख रहे है देखिये न हमारी स्थिति कैसी हो गयी है---?
दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाये.
yah hamari fitrat men shamil hai ,achha aalekh
ReplyDeletehappy diwali sir
दीपावली के पावन पर्व पर हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ |
ReplyDeleteway4host
rajputs-parinay
बच्ची की दुखद मृत्यु की बात से मुझे भी बहुत चोट पहुँची है।
ReplyDeleteआपको, आपके मित्रों और परिजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
न्याय का काम ही पैंतरे बदलना है। वर्गीय समाज मैं न्याय की कमान सत्ता के पास होती है। सत्ता कभी न्याय नहीं करती केवल उस का भ्रम उत्पन्न करती है।
ReplyDeleteआप को दीपावली पर अनन्त शुभकामनाएँ।
जबरदस्त कटाक्ष है पूरी व्यबस्था और हालात पे ...
ReplyDeleteआपको दीपावली की मंगल कामनाएं ...