Friday, November 18, 2011

इन्होने निर्माण का सपना बुना और खूब लगाया चूना !

अभी दो दिन पहले सुबह दफ्तर जाते हुए जाम में डूबी सड़क पर झख मार रहा था कि तभी कुछ दूर तक तेलगाडी को हांकने के बाद देखा कि बड़ी तादात में यूपीए की कामयावियों ( कारगुजारियों कहना ज्यादा उचित होगा ) और श्रीमती सोनिया गांधी और श्री मनमोहन सिंह के मनमोहक चित्रों से सजे ट्रक सड़क की अन्दुरूनी लेन में खड़े थे ! उन पर एक आकर्षक शैली में नारा लिखा था 'भारत निर्माण का सपना बुना, प्रगति हुई कई गुना" ! मैंने एक नजर उधर डाली, मुस्कुराया और चल दिया ! ये बात और थी कि दिल की गहराइयों में कहीं कुछ अस्पष्ट भद्दे से तारीफ़ के शब्द भी अंकुरित हो रहे  थे कि ये भ्रष्ट शायद अपनी प्रगति की बात कर रहे है ! सड़क पर चलते हुए बस यही सोचने लग गया कि नेता और लालफीताशाह आम इंसानों को कितना बेवकूफ समझता है, जो हरवक्त उन्हें भ्रमित करने के हथकंडे खोजता रहता है! साथ ही मैं यह सोचकर खुद की पीट थपथपाने में भी तनिक देरी नहीं करता कि आज के इस युग में जबकि इस भ्रष्ट प्रजाति के प्राणि पर कुछ लिखना दिन-प्रतिदिन इतना कष्ठ्दायक होता जा रहा है, मैं तब भी अपनी स्याह तलवार का रुख इनकी और करने से नहीं हिचकता !



इन्होने भारत निर्माण का सपना बुना इसमें कोई दो राय नहीं है ! वैसे भी इन्हें सपने बुनने और ख्याली पुलाव पकाकर जनता को खिलाने की महारत हासिल है ! लेकिन प्रगति हुई कई गुना पर आकर साँस अटक सी जाती है ! रूह की कोशिकाए फडकने लगती है, रौंगटे माउंट एवरेस्ट की तरह खड़े हो जाते है ! अभी मैं लाल बत्ती पर खड़े-खड़े अपने इर्दगिर्द के तापमान को सामान्य स्तर पर लाने की जुगत में ही था कि तभी खिड़की के शीशे पर ठक-ठक की आवाज ने मेरी उस अवांछनीय तंद्रा को तोड़ते हुए मुझे खिड़की के उसपार खड़ी नजर आ रही आकृति की तरफ अपने चश्मे का फोकस सेट करने के लिए मजबूर कर दिया ! फटेहाल एक महिला गोद में ८-१० महीने के एक शिशु को लिए खड़ी थी, जिसके माथे पर उसने एक सफ़ेद पट्टी बांध रखी थी ! बिना खिड़की का शीशा उतारे ही उस पर से आने वाली उसकी करुणामई आवाज को मैं सुन पाने में समर्थ था ! वह एक हाथ से गोद में पकडे बच्चे की तरह इशारे से इंगित करते हुए लम्बी तर्ज निकाल फिर हाथ को मेरी तरफ फैला गुहार लगा रही थी.....बाबूजीईईईईईईईईई, भगवान आपका भला करेगा....................बाबूजीईईईईए........ !



अभी थोड़ी देर पहले मैंने वो ट्रकों की कतार और उनपर सजी-धजी फोटुए व स्लोगन ( नारे ) न देखे होते, तो शायद था कि डैश-बोर्ड में पडी खरीज (खुले सिक्के) में से एक सिक्का उठाकर उसकी तरफ उछाल ही देता किन्तु ये क्या, उसवक्त उसके हावभावों, बच्चे के माथे पर रखी सफ़ेद पट्टी और उस भिखारन की मुख मुद्रा-शैली में मुझे तो वोट मांगते अपने देश के नेताओं की छवि नजर आ रही थी, अत: मैं गुर्राया ; अबे मेरा तो भला ही होगा, चाहे मैं तुझे पैंसे दूं या न दूं......मैं जब किसी का बुरा ही नहीं करता तो मेरा बुरा क्यों होगा?.... यहाँ काहे को झक मार रही है, सीधे जनपथ अथवा रेसकोर्स रोड क्यों नहीं चली जाती....सुना है वहाँ कई गुना प्रगति हो रही है और बोरे भर-भरके नोट बांटे जा रहे है........" मैं बस इसीतरह मन की भड़ांस निकालने में लगा था कि वह महिला भिखारन कब ऐसे मेरी नजरों के आगे से गायब हो गई, जैसे चुनाव संपन्न होने के बाद नेता लोग तुरंत गाँव,मुहल्लों से गायब हो जाते है, मुझे पता ही न चला !



कल ही एक खबर पढी थी कि मथुरा की एक अदालत ने आनर किलिंग के एक मामले में २० साल बाद मुकदमा सुनाकर पंद्रह दोषियों को मौत की सजा और बीस को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है ! इसपर अनेक लोगो की प्रतिक्रियाएं भी पढी और सुनी! लोगों ने न्याय की प्रक्रिया में देरी का खूब रोना रोया और कुछ ने हमारे न्याय-तंत्र पर उँगलियाँ भी उठाई ! आज फिर एक खबर पर नजर गई कि हमारे राज्य सभा के अनेकों सांसदों जिनमे से अधिकांश अधिवक्ता है उनकी प्रतिदिन की प्रतिव्यक्ति " घोषित आय " दस से २५ लाख के बीच में है ! वाह रे मेरे देश ! एक वह तथाकथित "धनी आम-आदमी" भी तेरी ही भूमि पर पल रहा है जो ३२ रूपये रोज कमाता है और एक ये भी हैं ! अभी कुछ समय पहले पढ़ा था कि इस देश के कुछ नामी वकील सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में किसी का मुकदमा लड़ने की एक दिन की फीस २० लाख से ४० लाख के बीच में लेते है ! तो अब भला आपलोग उस ईमानदार जज (If any ) , से क्या अपेक्षाए रखते है जो साल के सात-आठ लाख रुपये मात्र अपने वेतन से कमाता है ? वह फैसला देने में २० साल नहीं लगाएगा तो क्या करेगा ? उसे भी तो अपने बीबी-बच्चे पालने है भले मानुषों !



हाँ, कुछ सुधार की गुंजाईश अगर है तो वह है नजरिये में सुधार ! दुर्भाग्यबश, असमानताओं (disparities )ने इस देश का पीछा कभी भी नहीं छोड़ा! अभी जब हमारे महामहिम सर्वोच्च न्यायलय ने  आनर किलिंग पर अपना रुख सख्त करते हुए दोषियों को मौत की सजा की पैरवी की तो अब निचली अदालतें धडाधड दोषियों को मौत की सजा सुनाने में लगी है ! लेकिन मैं अपने न्यायतंत्र से सवाल करना चाहूँगा कि झूठी शान के लिए किसी निर्दोष को मारने की सजा यदि सजाये मौत है तो वह सिर्फ गाँव-चौपाल और जाति-धर्म तक ही सीमित क्यों ? अभी जिस भिखारन का जिक्र मैंने इस लेख में ऊपर किया, क्या वह आनर किलिंग नहीं है ? इन्सान भ्रष्टाचार में लिप्त क्यों होता है? सीधा सा जबाब है कि समाज में अपनी झूठी शान, दिखावे और अपने ऐशो आराम के लिए वह इसे अंजाम देता है ! मगर ऐसा करते वक्त जब इस देश का एक भ्रष्ट नेता अथवा नौकरशाह सरकारी खजाने को लूटकर लूटे गए धन को अपने घर अथवा विदेशों में जमा करता है तो देश-समाज में उस धन से मिलने वाले लाभों से कई लोग वंचित रह जाते है! धन के अभाव में रोजगार नहीं पनपते और देश के अनेकों शिक्षित युवा खिन्नता और अवसाद की वजह से आत्महत्या करने पर विवश हो जाते है ! भ्रष्टाचार की नीव में घटिया सामग्री के इस्तेमाल से अनेकों दुर्घटनाये होती हैं, उस धन का उपयोग समाजविरोधी गतिविधियों में होता है और परिणिति स्वरुप अनेकों बेक़सूर लोग मारे जाते है, तो क्या वह आनर किलिंग नहीं है ? यदि है तो फिर इस देश में भ्रष्टाचारियों के लिए मौत की सजा का प्रावधान क्यों नहीं ?

8 comments:

  1. 'Bharat' Nirman ka sapna 'Buna'... 'Tarakki' hui kai 'Guna'... Sahi to keh rahe hain...

    Kisi ki tarakki hui ho ya na hui ho, lekin Netaon ki tarakki to vakai kai guna hui hai... Pehle Lakho ke ghotaley hote the, fir Karodo ke hone lage aur kai Hazaar Karod ke hote hain... :-)

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  2. कम से कम बातों में तो उत्साह झलक रहा है।

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  3. आप इस बात को समझिए कि कोई सरकारी खज़ाना लूट रहा है तो एक परिवार अमीर बन गया ना :)... तेल गाडी रखने लायक हो गया ना:)

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  4. सच बात कहता सारगर्भित आलेख एक बात सबसे अच्छी और बड़ी मज़ेदार लगी। "मैं बस इसीतरह मन की भड़ांस निकालने में लगा था कि वह महिला भिखारन कब ऐसे मेरी नजरों के आगे से गायब हो गई, जैसे चुनाव संपन्न होने के बाद नेता लोग तुरंत गाँव,मुहल्लों से गायब हो जाते है, मुझे पता ही न चला"! पढ़कर मज़ा आगया वैसे शाहनवाज़ जी की बातों से भी में पूरी तरह सहमत हूँ। समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  5. मेरा भारत महान :):)

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  6. आपकी पोस्ट सोचने को बाध्य करती है.

    नीरज

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  7. नज़रिय्व में सुधार न आ सके तभी तो इतने लुभावने नारों से बहलाते रहते हैं ये नेता लोग ... कभी कभी तो मन विषाद से भर जाता है ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।