लालच और भोग-विलासिता की दौड़ में अंधे होकर, मानवीय मूल्यों की परख और पहचान तो खैर हम लोग सदियों पहले ही खो चुके थे, कितुं अपने सांस्कृतिक परिवेश को भी पश्चिमी चकाचौंध और बनावटी श्रृंगार के आगे फीका करके आज जो भयावह स्थिति हमने खुद के लिए पैदा कर दी है, मैं समझता हूँ कि शायद यह उन काल और परिस्थितियों से ज्यादा भिन्न नहीं होगी, जब अतीत में यह देश गुलामी की जंजीरों को को ग्रहण करने की देहलीज पर खडा रहा होगा! आज जिस तरह भ्रष्टाचार की देवी देश के हर कोने से हमारे आगे सुरसा राक्षशी की तरह मुह बाए खड़ी है, वह हमारे लिए नितांत एक चिंता का विषय होना चाहिए !
अधर्मता,चाटुकारिता,नीचता, दुष्टता, क्षुद्रता चटोरापन, हरामीपन, कमीनापन और छिछोरेपन की ये नौ-टंकियां ..... कहने सुनने और देखने में भले ही घिनौनी ही सही, मगर, दुर्भाग्यवश आज ये वो आदर्श स्तम्भ बन गए है, जिन पर हमारे इस भारत देश की मजबूत नीव टिकी होने का हम दावा करते है ! निज-स्वार्थ ने हमें इस कदर अंधा बना दिया है कि हम अच्छे और बुरे का भेद सिर्फ अपनी आकांक्षाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति तक ही देख पाते है, उससे आगे नहीं ! देश के प्रति हमारे क्या कर्तव्य और दायित्व बनते है, उसकी किसे परवाह ? बस अपना काम निकल जाए ! चाहते तो है कि कोई नैतिकता की भी शिक्षा दे, मगर हमें नहीं, हमारे पढ़ोसी को !
शीर्ष स्तर पर बैठे व्यक्ति के भ्रष्टाचार को छुपाने और उसे बचाने में हम सिर्फ इसलिए नहीं मदद करते कि चूँकि हम उसके अधीनस्थ है, अपितु जान-बूझकर उस पर पर्दा डालकर उसके विश्वाश-पात्र बनने की इसलिए कोशिश करते है ताकि जिस भ्रष्टाचार में हम लिप्त हो, उसपर वह भी उंगली उठाने की हिमाकत न कर सके! स्वघोषित युवराज को राजा बनाने की पैरवी करते वक्त वंशवाद की बुराइयों को हम इसलिए नकारते है क्योंकि हमारा गुप्त एजेंडा यह होता है कि हमें अपना वारिश भी तो मंत्री की कुर्सी तक पहुचाना है !
एक प्रधान पब्लिक प्रोसिक्यूटर को हम सिर्फ इसलिए बेइज्जत कर देते है क्योंकि वह हमारे भ्रष्टाचार को खुलकर समर्थन नहीं देता, मगर दूसरे को इसलिए पुरस्कृत भी करते है कि वह हमारा साथ देता है, अब चाहे भले ही उसने अथवा उसके वंशजों ने यूनियन कार्बाइड जैसे जन कातिलों की पैरवी ही क्यों न की हो ! तब हंसी आती है अपने इस देश के उस तथाकथित ईमानदार महंत पर, जब वह न्यायपालिका में गुहार लगाता है कि उसके नाकारेपन से थक-हारकर न्यायपालिका द्वारा नियुक्त की गई, काले धन का पता लगाने के लिए गठित समिति को ही भंग कर दिया जाए ! वाकई में बहुत ही ईमानदार है यह महंत तो !
अंत में अफ़सोसजनक शब्दों में यही उपसंहार दूंगा कि चूँकि अपना यह भारतीय राजनेता समूह अपने माता-पिता के दूषित रक्त के साथ पैदा हुआ प्राणी है , इसलिए इससे स्वच्छता की उम्मीद रखना सरासर बेईमानी है, और अपने को धोखे में रखने जैसा है! जहां तक नौकरशाही का प्रश्न है, इस देश में तब तक अच्छे की उम्मीद रखनी ही नहीं चाहिए, जब तक सरकारी क्षेत्र में आरक्षण जैसा सामाजिक विषमता का खेल खेला जा रहा हो ! क्योंकि सत्ता पर काबिज वर्ग के लिए नैतिकता तो सर्वथा एक गौण विषय है, और यही वजह है कि हर स्तर पर भ्रष्टाचार अपने चरम पर है ! What we lack is political will and honesty not only on the part of politicians but in all spheres of life. Support Anna for strong Janlokpal bill ,otherwise all this noise to curb corruption is useless and wastge of time and effort. In other words, we would continue to witness this sort of drama(Nautanki) unless very drastic and stringent laws are in place and are complied with in letter and spirit.
यह एकदम सही है कि सारे ही राजनैतिक दल एक ही थाली के चट्टे-बट्टे है ! मगर सिर्फ यह कह देने भर से अपने कर्तव्य की इतिश्री तो नहीं हो जाती कि इनमे से ही किसी एक को सत्ता सौंपनी ही है, देश लुटवाने के लिए ! नहीं , यह हमारे आलस्य और निकम्मेपन को पर्दर्शित करता है ! बदलाव लाना है तो उस दिशा में भी प्रयास किये जा सकते है, जहां शुरुआत इस तरह से हो कि चुनकर भेजे गए नुमाइंदे को बीच में ही वापस बुलाकर बर्दी उतारने
जागो देशवासियों जागो ! अभी भी वक्त है !
का हक़ आपको मिले !
जागो देशवासियों जागो ! अभी भी वक्त है !
देख तेरे इस देश की हालत, क्या हो गयी भगवान...
ReplyDeleteयह देश है चोर तुटेरों का इस देश का यारों क्या कहना!
ReplyDeleteभगवान श्रीकृष्ण ने भी तो सौ पाप पूरे होने / पाप का घड़ा भर जाने पर ही शिशुपाल का वध किया था.... शायद अभी हमें और इंतजार करना पड़ेगा भाई.
ReplyDeleteसार्थक व रचनात्मक पोस्ट के लिए आभार.
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जब धन को पूजा जाता है तो देश की यही हालत होती है। आज आदर्श, सत्य और सदाचार को ताक पर रख दिया गया है और धनवान ही देवता बना बैठा है॥
ReplyDeleteहम कभी स्वतन्त्र हुये ही नहीं. आज भी परतन्त्र हैं. राज वही कर रहे हैं, चोला बदल गया है...
ReplyDeleteजब तक लोग आदमी के बजाय पार्टियों को वोट देने से बाज नहीं आएंगे... यही होते ही रहेगा
ReplyDeleteविचारणीय लेख ...सारे राजनैतिक दल एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं ..
ReplyDeleteदेश भ्रष्टाचार में बहुत गहरे तक धंस चुका है . पौलिटिकल विल न होने से सारे हथियार फेल होते जा रहे हैं .
ReplyDeleteऐसे में एक रास्ता तो यह है की हम स्वयं को भ्रष्टाचार से दूर रखें . आखिर बूँद बूँद से ही सागर बनता है .
विचारोत्तेजक लेख
ReplyDeleteआक्रोश टपक रहा है आपकी इस पोस्ट से ... गुस्से की लहर दिखाई दे रही है ... सच कहा है जहां तक संभव हो इस व्यवस्था को उखाड़ने का प्रयत्न करना चाहिए ...
ReplyDeleteयह एकदम सही है कि सारे ही राजनैतिक दल एक ही थाली के चट्टे-बट्टे है ! मगर सिर्फ यह कह देने भर से अपने कर्तव्य की इतिश्री तो नहीं हो जाती कि इनमे से ही किसी एक को सत्ता सौंपनी ही है, देश लुटवाने के लिए ! .....
ReplyDeleteसार्थक व विचारणीय लेख!
आदरणीय गोदियाल जी
ReplyDeleteनमस्कार !
यह एकदम सही है
देश भ्रष्टाचार में बहुत गहरे तक धंस चुका है
..........सार्थक व विचारणीय लेख!