कुछ लिखूंगा नहीं, क्योंकि फ़ायदा नहीं ! फ़ायदा इसलिए नहीं कि जो इसतरह की नीच और घृणित मानसिकता के लोग होते है, वे न तो ब्लॉग लिखते है और नही पढने में रूचि रखते है ! हाँ, इतना जरूर लिखूंगा कि बिना जाने, जांचे, और किन्ही ठोस निष्कर्षों पर पहुंचे किसी को दोषी मत ठहराइए !
ऐसे घृणित कृत्यों को करने वाले का कोई धर्म नहीं होता ! दोषारोपण करने से पहले खुद के गिरेबान में झांकना समझदारी कहलाती है ! किसी के ख़ास वर्ग को निशाना बनाने की जब हम कोशिश करते है तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उनमे और हममे ख़ास फर्क नहीं है ! फर्क सिर्फ इतना है कि वे पेड़ को काट डालते है, और हम जड़े खोदते है ! अभी उत्तरप्रदेश में हुई रेल दुर्घटना के बाद का दृश्य हर किसी ने नहीं देखा होगा, जैसे कि आरोप लगे कि पुलिस वाले बचाव कार्यों की बजाये घायलों और मृतकों के बटुवे और जेबे टटोलने में ज्यादा इंटेरेस्टेड थे ! तो वो हमारे ही भाई-बंद है, और उनका यह काम इन ब्लोस्टों से अधिक घृणित कृत्य भी ! यहाँ दो चित्र लगा रहा हूँ , एक अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के सौतेले भाई वली करजई के हत्यारे का है जिसे अफगानियों ने चौराहे पर लटका दिया और दूसरा कसाब का ! बस आप इन चित्रों को देखिये और मनन कीजिये, मगर अभी दोष किसी और को मत देना !
चित्र मेंल ऑनलाइन और गूगल से साभार !
यहां ऐसा नहीं होगा क्योंकि यहां किसी राजनीतिबाज और अफसर के सम्बन्धी इन धमाकों में नहीं मारे जाते. कोई आम आदमी टपका देगा तो उसे जरूर सूली चढ़ा दिया जायेगा.. युवराज कह ही चुके हैं कि ये सब तो चलता रहता है.
ReplyDeleteऐसे लटकाने के लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए
ReplyDeleteदेश के दुश्मनों के लिए काम करने वाले ग़द्दारों को चुन चुन कर ढूंढने की ज़रूरत है और उन्हें सरेआम चैराहे पर फांसी दे दी जाए। चुन चुन कर ढूंढना इसलिए ज़रूरी है कि आज ये हरेक वर्ग में मौजूद हैं। इनका नाम और संस्कृति कुछ भी हो सकती है, ये किसी भी प्रतिष्ठित परिवार के सदस्य हो सकते हैं। पिछले दिनों ऐसे कई आतंकवादी भी पकड़े गए हैं जो ख़ुद को राष्ट्रवादी बताते हैं और देश की जनता का धार्मिक और राजनैतिक मार्गदर्शन भी कर रहे थे। सक्रिय आतंकवादियों के अलावा एक बड़ी तादाद उन लोगों की है जो कि उन्हें मदद मुहैया कराते हैं। मदद मुहैया कराने वालों में वे लोग भी हैं जिन पर ग़द्दारी का शक आम तौर पर नहीं किया जाता।
‘लिमटी खरे‘ का लेख इसी संगीन सूरते-हाल की तरफ़ एक हल्का सा इशारा कर रहा है.
ग़द्दारों से पट गया हिंदुस्तान Ghaddar
हम अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं .
ReplyDeleteजाने यह बात कब समझ आएगी .
जिनको समझना चाहिए वो आँख और कान बंद किये बैठे हैं ...
ReplyDeleteयह सब देख कर मन तो दुखी हो गया, करें तो क्या करें।
ReplyDeleteभाई जी,कहीं न कहीं हम सब दोषी हैं ... किसी न किसी रूप में ..?
ReplyDeleteआतंक का भी कोई धर्म, कोई मजहब या कोई चेहरा होता है?
ReplyDelete.गोदियाल जी इस विषय पर बहस करके हम अपना समय नष्ट कर रहे हैं |मुझे तो लगता है अब खून का रंग सफ़ेद हो गया है |
ReplyDelete‘ऐसे घृणित कृत्यों को करने वाले का कोई धर्म नहीं होता ! ’
ReplyDeleteजब तक जेहाद के नाम पर यह घृणित कृत्य होते रहे, हमारे नेता लोग भी यही कहते रहे, परंतु कुछ भगवा कृत्य मिलते ही [जो अभी प्रमाणित भी नहीं हुए] भगवा आतंकवाद का नाम चस्पा कर दिया!!!!!!
सोच रहा हूं कि मैं भी कसाब वाला काम ही शुरू कर दूं। कम से कम बैठे बिठाये खाना-पीना, सारे ऐश और सबसे बडी चीज सुरक्षा मिलेगी। आजकल भारतीय सुरक्षित हैं ही नहीं। कसाब बनकर अगर सुरक्षा मिलती है तो कसाब बनने में क्या हरज है?
ReplyDeleteजिस देश के नेता यह कहते हो की ऐसी घटनाएं तो होती रहती है... उनसे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती....
ReplyDeleteआतंक का कोई धर्म नहीं होता... लेकिन उसका समर्थन जो भी करता है.. वो भी उसी आतंकी सोच का है...
मनन करने से क्या होगा!
ReplyDeleteकार्यवाही भी तो होनी चाहिए!
अच्छे सवालों का कोई जवाब क्यों नहीं देता? आपकी राय मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है| जरुर पधारें | www.akashsingh307.blogspot.com
ReplyDeleteजो हुआ वह दुखद है। जिन पर जन-सुरक्षा की ज़िम्मेदारी है उनके काम में कमी तो है ही।
ReplyDeleteइस समय जो विचार इन नेताओं और सिस्टम के लिये उतपन्न हो रहे हैं ,यहां नहीं लिख सकता----
ReplyDeleteजिनको समझना चाहिए उनको न जाने कब समझ आएगी
ReplyDeleteजब तक ये भ्रष्ट नेताओं का तंत्र है तब तक तो कुछ संभव नहीं होने वाला .. पहले इने उखाडना होगा ...
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