"इनक्रेडिबल इंडिया" (अतुल्य भारत), हमारे पर्यटन विभाग का यह पर्यटन संवर्धन नारा ऐसा नहीं कि देशभर में कहीं फिट न बैठता हो ! नि:संदेह हाल के दशकों में कुछ तथ्यों में बदलाव जरूर आया है, मगर बहुत से मायनों में अविश्वसनीय भारत के वे पुराने तथ्य आज भी बहुत सटीक है! भारतीयों की यह अपार विलक्षण अविश्वसनीयता देश के हर कोने में कदम-कदम पर मौजूद रहकर पथिक को अपने होने का अहसास कराने से हरगिज नहीं चूकती!
इस देश मे ऐसा बहुत कुछ है, जो वाकई अविश्वसनीय है ! हाल में जो रेल हादसे हुए और अनेकों निर्दोष जाने गई, वे भी इसी अविश्वसनीयता के आधारबिन्दु है ! भारतीय रेल के ऐंसे ही एक बहुत ही मामूली मगर जटिल ( हमारे राजनितिज्ञो और अफसरशाहों के नजरिये से) पहलू ने मेरा ध्यान तब अपनी ओर आकर्षित किया, जब हाल ही में मुझे रात को एक एक्सप्रेस ट्रेन से यात्रा करने का मौक़ा मिला! मुझे ट्रेन में सफ़र करते वक्त नींद नहीं आती और मैं अपनी बर्थ पर मूक लेटा-लेटा ट्रेन के पहियों से निकलता मधुर संगीत सुनने में व्यस्त था कि मेरे सामने की बर्थ पर सोये एक सज्जन जागे और अँधेरे में उन्होंने बाहर कुछ देखने की कोशिश की और फिर उपरी बर्थ पर लेटी एक युवती जो संभवतया उनकी बेटी रही होगी को आवाज देते हुए चीखे "फटाफट उतर जा (उपरी बर्थ से ), हमारा स्टेशन ( सरहिंद ) निकल गया है, अब हमें अगले स्टेशन (गोबिंदगढ़) उतरकर टैक्सी से वापस आना पडेगा " !
मैं चुपचाप लेटा, मूक बनकर उन महाशय की हडबडाहट को देखता रहा और सोचता रहा कि हमारे ये भ्रष्ट, दोयम दर्जे के राजनीतिज्ञ जनता को मूर्ख बनाने के लिए क्या-क्या सब्जबाग दिखलाते है कि हम ये करने जा रहे है, हम ट्रेनों पर वो दुर्घटना-रोधी यंत्र लगायेंगे, हम घने कुहरे में ट्रेन दौडाने का वो यंत्र लगायेंगे.... बला...बला.... !मगर हकीकत यह है कि इस अत्याधुनिक तकनीकी युग में भी ये भ्रष्ट, ट्रेन के डिब्बों में यात्रियों को यह बताने के लिए कि अगला स्टेशन कौन सा आने वाला है, एक मामूली सा कम्प्यूट्रीकृत उद्घोषणा यंत्र ६५ सालों में नहीं लगा पाए ! वोट और राजनीति के लिए पहले रेलवे की ऐसी-तैसी कर दी, और अब कहते है कि रखरखाव के लिए प्रयाप्त धन आबंटित करने हेतु वातानुकूलित डब्बों का किराया बढ़ाना होगा ! इन्हें कौन पूछे कि मेरे देश के महान सुपूतों, वातानुकूलित सीट के लिए एक यात्री इसलिए अधिक पैसे खर्च करता है, कि सफ़र चैन से कट सके, वह बर्थ पर आराम से सो सके ! मगर क्या उसका गंतव्य स्टेशन आने और निकल जाने की चिंता उसे चैन से आराम करने देती है ? काश कि ये घटिया प्रतिनिधि किसी व्यवहार्य समाधान को लेकर चलते न कि २०२० तक विकसित भारत बनाने के खोखले वादों के साथ, और न बेवकूफ जनता को इस तरह वक्त-बेवक्त बली का बकरा बनना पड़ता!
आपको नहीं मालूम यह गठबंधन की सरकार चला रहें हैं |इसकी मजबूरियां होती है कुछ तो रहम खाओ अगर कुछ मे गये तो क्या हुआ सरकार तो ज़िन्दा है |
ReplyDeleteविचारोत्तेजक आलेख।
ReplyDeleteहमें भी इसी वज़ह से ट्रेन में नींद नहीं आती . यात्रियों के आराम की कौन सोचता है ?
ReplyDeleteसही समस्या परन्तु निदान मिलने से रहा ,मैने भी झेला है और अपने ब्लाग पर लिखा भी था ।
ReplyDeleteऐसे हालात अब आम हो गये हैं!
ReplyDeleteतभी तो भारत अतुल्यनीय है!
बस भगवान भरोसे चल रहा है सब ..
ReplyDeleteगोदियाल भाई जी,नमस्कार !
ReplyDeleteशोरोगुल यहाँ, और भीड़ बड़ी है ,
यहाँ किसको, किसकी पड़ी है ||
सोते को जगाया जा सकता है ! जगे को नही ...
शुभकामनायें!
सब प्रभु कृपा से चलता जा रहा है वरना तो...
ReplyDeleteहम हर वो चीज़ करेंगे जिसकी हमें आवश्यकता नहीं है पर वह नहीं करेंगे जिसकी अत्याधिक आवश्यकता है - है ना इन्क्रेडिबल :)
ReplyDeleteगोदियाल साहब, आप बुरा मानेंगे कि मैं आपकी बात से असहमत हूं।
ReplyDeleteआपकी पोस्ट का सारांश यह है कि ट्रेनों में यन्त्र लगाना चाहिये कि अब अगला स्टेशन यह है। पहली बात तो यह है कि अगर आपको ट्रेन में नींद नहीं आती तो स्टेशन कितने भी बजे आये, आपको पता चल ही जायेगा। लाउडस्पीकर से घोषणा हो या ना हो। अगर हो कोई मेरे जैसा जो ट्रेन में चढता बाद में है, पहले सो जाता है तो कितना भी लाउडस्पीकर बजता रहे, आंख खुलने वाली नहीं है।
दिल्ली मेट्रो में तो बजता है स्पीकर कि अगला स्टेशन यह है। मैंने देखा है कि कई यात्री सोते रह जाते हैं और उनका स्टेशन कभी का निकल जाता है। उन्हें पता चलता है आखिरी स्टेशन पर पहुंचकर। और यह हाल तो तब है जब मेट्रो में बैठना ही पडता है। कुल मिलाकर बात यह है कि कृपया निगेटिव ना सोचें, निगेटिविटी से अपना दिमाग खराब तो होता है, साथ ही आपसे सहमति रखने वाले दस लोगों का भी दिमाग खराब होता है।
सबसे बढिया तरीका यह है कि सफर करते समय ट्रेन का टाइम किसी कागज पर लिखकर रख लें या प्रिंट आउट निकलवा कर ले लें। रात को सोने से पहले अपने प्रिंट आउट से मिलान करके देख लें कि ट्रेन कितनी लेट चल रही है, उसी हिसाब से अलार्म लगा लें, मोबाइल हर किसी की जेब में होता है। जैसे ही अलार्म बजे, तुरन्त उठो और अगले स्टेशन पर उतर जाओ। किसी रेलवे को या सरकार को कोसने से बात नहीं बनती। अपने हाथ जगन्नाथ।
वाह जाट पाजी, वाह ! 2c gr8 हो g !! हा-हा-हा.... गुरूजी क्या सजेशन दिया आपने ! आप कदापि यह ना सोचे कि १२० करोड़ के इस देश में सिर्फ आप ही अकेले हो जो ऐसा सोचते हो !
ReplyDeleteमैं समझता हूँ कि ज्यादा नहीं तो कम से कम ९५ % लोग आप ही की तरह सोचते है, तभी तो
बाकी के बचे ५ % हरामखोर परजीवी इनका खून चूसने में सक्षम है ! आप एक परमानेंट
मुसाफिर हो, आपने अकसर नोट किया होगा कि मान लो कोई ट्रेन जो बम्बई से आ रही है वह
एक घंटा देरी से चल रही है ! लेकिन जब वह अपने गंतव्य जम्मू तवी पहुचती है तो ठीक
टाइम पर ( जो उसका पहले से निर्धारित समय है ) इसका मतलब वह जो मुंबई से दिल्ली
पहुचने की एक घंटे की देरी थी , वह आगे के सफ़र में रात को कवर कर जाती है ! और आप
अपने चार्ट के भरोसे रहे तो...., मोबाइल की बैटरी डाउन हो गई तो..........O G 2C Gr8 हो जी !
मैं समझ रहा हूँ कि आपने भी व्यंगात्मक( sarcastic ) टिपण्णी की थी इसलिए अन्यथा
लेने का सवाल ही नहीं पैदा होता !
रेल में सफाई ... शौचालय की स्थिति ... पानी की समस्या ... और भी पता नहीं कितनी छोटी छोटी बाते हैं जो सुधारी जा सकती हैं ... बहुत बड़ा बजट भी नहीं चाहिए ... पर क्या करें ... सब चलता है ...
ReplyDelete