बहुत दिनों बाद किसी तरह आज लिखने का मूड बना पाया हूँ, पेश है एक प्रस्तुति ;
आखिरकार प्रिंस विलियम और केट मिड्लटन की शाही शादी का भोज डकारने के बाद दुनियाभर के मीडिया और गतिहीन रुग्ण मानसिकता के शिकार विश्वभर के तमाम लोगो द्वारा पैदा किया गया एक अजीवो-गरीब वातावरण अब जाकर कुछ ठंडा पड़ा है ! किन्तु एक डर अभी भी बना हुआ है कि हो सकता है कि शाही दम्पति सुहागरात मनाने हेतु अपने पुराने औपनिवेश के राजमहलों को ही प्राथमिकता दे, अगर ऐसा हुआ तो इस पश्चिमी विक्षोभ के कारण बने हवा के कम दबाव के अभी और कुछ दिन तक चलने की आशंका है !
इंसानियत के नाते कम ( क्योंकि इंसानियत के नाते तो हम कितनो को ऐसे मौकों पर अपनी शुभकामनाये देते है?) और इनके एक भूतपूर्व गुलाम का खून होने के नाते, मैं भी अपना यह कर्तव्य समझता हूँ कि इस शाही नव-दम्पति को इस सुअवसर पर अपनी शुभकामनाये प्रेषित करू ! साथ ही रगो में छुपे महीन गुलाम-कण कहीं न कहीं, मन के किसी कोने में यह आशंका भी तो पैदा करते रहते है कि मैं कहीं इनके लिए कुछ गलत लिख गया, या मैंने अपने गुलाम-धर्म का पालन सही से न करते हुए इन्हें अपनी शुभकामनाये नहीं प्रेषित की तो यदा-कदा इस देश में जिस तरह के हालात बनते-बिगड़ते रहते है, भगवान् न करे, अगर फिर से इनकी गुलामी का चोला पहनने की दोबारा नौबत आ गई, तो इस गुस्ताखी के लिए शाही खानदान के कोप-भाजन का शिकार बन बैठूगा ! अत: मैं इस बात से अनविज्ञ होते हुए भी कि इस तरह का शुभकामना सन्देश इनके शाही साम्राज्य में सकारात्मक तौर पर लिया जाता है, अथवा नकारात्मक, मैं बिना देरी किये, इस शाही नव-दम्पति के लम्बे एवं सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करता हूँ !
अंधभक्त तो हम युग-युगांतर से थे, और इतना भी जानता था कि पीठ में छुरा घोंपना, झूठी तारीफ़ करना और अपने मुह मिंया मिठ्ठू बनना हमने मुगलों से सीखा, मगर हमेशा सोचता रहता था कि इतनी अधिक मात्रा में चाटुकारिता, खुशामदगी और जूता-झाड जी-हजूरी कहाँ से सीखी होगी ? इस शाही विवाह ने उसका भी जबाब मुझे उपलब्ध करा दिया ! चाहे वह एक सभ्य-समाज हो या फिर असभ्य, शिक्षित हो या अशिक्षित, विकसित हो अथवा अविकसित, अमीर हो या फिर गरीब समाज, देखकर हतप्रभ हूँ कि हमारी उस मानसिकता की जड़ों ने हमारे दिमाग पर कितने गहरे तक अपनी जड़े घुसेड रखी है, जिसमे एक सर्वशक्तिमान राजा होता था, और एक गरीब प्रजा ! राजा भले ही प्रजा को मानवता,समानता और स्वतंत्रता की लाख दुहाई देता हो, मगर हकीकत में जब बग्गी में सवार होकर अपने राज्य की सडकों पर निकलता था, तो चाहे प्रजा कितनी ही समस्याओं के बोझ तले पिसी पडी हो, अपना सब कष्ट त्यागकर तब तक सिर-झुकाकर करबद्ध खडी रहती थी , जब तक महाराज सामने से गुजरकर निकल न जाएँ !
शरीर की कृत्रिम
ऐंठन को शिथिलाकर,
सरकारी बाबू,
घूस के रूपये
दराज में सरकाकर,
उसकी तरफ देख
कुछ मुस्कुराकर ,
लगा समझाने उसे;
देख भाई;
पूजा स्थल हमेशा
उत्तर-पूर्व दिशा में
रखना चाहिए,
यदि यथेष्ठ है !
दम्पति का शयन-कक्ष,
दक्षिण-पश्चिम दिशा में
हमेशा श्रेष्ठ है !!
शौचालय पश्चिम में,
गैराज वायव्य कोण में
हमेशा युक्त है,
किचन आग्नेय कोण में
सदा उपयुक्त है !
अबतक सुन रहा था
वह चुपचाप,
जब उससे न रहा गया
तो वह खडा होकर,
हाथ जोड़कर बोला;
बाबूजी,
ये जो झुग्गी हेतु
सरकार की तरफ से स्वीकृत
दस्तावेज आपने मुझे दिए,
इसमें प्लॉट तो
सिर्फ पच्चीस गज का है,
सरकारी बाबू बोला;
सवाल नहीं,
तुम्हारा काम हो गया,
अब तुम जाओ,
तुम्हारी गृहस्थी सुखी हो !
हाँ , वास्तु का ध्यान रखना,
कि भवन ईशान मुखी हो !!