गिरह बांधी है मिसरे की, मतले से मक्ते तक दर्द ने,
तुम कहो न कहो,खुद बात कह दी चेहरे की जर्द ने।
पतझड़ में होता पत्ता-पत्ता, डाली से खफा क्यों है,
कोंपल पैदा कर दिए है, दरख्तों पर जमी गर्द ने।
बुलंदियां पाने की चाहत में, तहजीब त्याग दी ,
गिराया कहाँ तक, हसरत-ए-दीदार की नबर्द ने।
हासिल न कुछ अब जिस्म पर से पर्दा हटाने से,
णवत्ता तो बता दी है प्रतिरूप नग्न-ए-अर्द्ध ने।
हर दिन तबसे 'फूल' ही नजर आता है 'परचेत',
पर्दा, बुर्का पहनना, शुरू कर दिया जबसे मर्द ने।
..
तुम कहो न कहो,खुद बात कह दी चेहरे की जर्द ने।
पतझड़ में होता पत्ता-पत्ता, डाली से खफा क्यों है,
कोंपल पैदा कर दिए है, दरख्तों पर जमी गर्द ने।
बुलंदियां पाने की चाहत में, तहजीब त्याग दी ,
गिराया कहाँ तक, हसरत-ए-दीदार की नबर्द ने।
हासिल न कुछ अब जिस्म पर से पर्दा हटाने से,
णवत्ता तो बता दी है प्रतिरूप नग्न-ए-अर्द्ध ने।
हर दिन तबसे 'फूल' ही नजर आता है 'परचेत',
पर्दा, बुर्का पहनना, शुरू कर दिया जबसे मर्द ने।
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मूर्खता दिवस पर बधाइयाँ .......
ReplyDeleteबुलंदियां पाने की चाह में, तहजीब त्यागी क्यों हमने,
ReplyDeleteगिरा दिया कहाँ तक हमें, हसरत-ए-दीदार की नबर्द ने !
...............ला-जवाब" जबर्दस्त!!
बहुत खूब
ReplyDeleteक्या बात है...बहुत बढ़िया सर जी!
ReplyDeleteसादर
:):) बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (2.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
शुक्र है आज कमेंट बाक्स खुल गया!
ReplyDeleteऔह!
यह तो बुद्धिमानी दिवस अधिक लगता है!
बढ़िया रचना!
बस आज इतना ही कहूँगा मुर्ख दिवस की शुभकामनाएं....
ReplyDeleteपतझड़ में इस कदर पत्ता-पत्ता, डाली से खफा क्यों है,
ReplyDeleteनाते नए पैदा कर दिए क्यों, रिश्तों पर जमी गर्द ने !!
यह शेर तो बहुत जबरदस्त है |बहुत बढ़िया ....
सच कहाँ से ढूढ़ लाये?
ReplyDeleteये फ़ैशन भी शुरू हो गया? वैरी गुड..
ReplyDeleteबहुत खूब गजल कही...
ReplyDeleteचेहरे की ज़र्द और अंडे की ज़र्दी..... अंतर बताओ तो जानें :)
ReplyDeleteहम मूर्खों की बधाई स्वीकार करें।
ReplyDeleteapril fool day par mujh jaise 'fool' ko to wakai maza aa gaya Godiyal jee,aur ham 'parchet' na hokar 'achet' ho gaye. ........abhar.
ReplyDeleteबुलंदियां पाने की चाह में, तहजीब त्यागी क्यों हमने,
ReplyDeleteगिरा दिया कहाँ तक हमें, हसरत-ए-दीदार की नबर्द ने !
बढ़िया जी बढ़िया । मूर्ख दिवस पर इतनी समझदारी की बात !!
Bahut khoob. Haardik Badhaayi,... kavita ke liye.
ReplyDelete-----------
क्या ब्लॉगों की समीक्षा की जानी चाहिए?
क्यों हुआ था टाइटैनिक दुर्घटनाग्रस्त?
शुभकामनाएँ... मूर्ख बनाम बुद्धिमान दिवस की.
ReplyDeleteबुलंदियां पाने की चाह में, तहजीब त्यागी क्यों हमने
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
हमें तो हरेक दिन तबसे'फूल'ही नजर आता है'परचेत',
ReplyDeleteपर्दा करना व बुर्का पहनना, शुरू कर दिया जबसे मर्द ने !!
वाह...
क्या खूब शेर कहा आपने....
आप सब को नवसंवत्सर तथा नवरात्रिपर्व की मंगलकामनाएं.
ReplyDeleteपतझड़ में इस कदर पत्ता-पत्ता, डाली से खफा क्यों है,
ReplyDeleteनाते नए पैदा कर दिए क्यों, रिश्तों पर जमी गर्द ने !!
बहुत सुन्दर...नवसंवत्सर की शुभकामनायें!