तिरुपतिजी महाराज
हालांकि यूँ तो मैं 'मन चंगा तो बहती रहे कठोती में गंगा' वाले मुहावरे को मानने वाला एक आस्तिक हूँ, किन्तु अति-आस्थावान भी नहीं हूँ ! और चरमपंथी धर्मान्धता में तो कतई भी विश्वास नहीं करता! यही वजह है कि मैंने कभी उन लोगो का समर्थन नहीं किया जो अपनी चरमपंथी आस्था को प्रदर्शित करने/ करवाने हेतु किसी भी हद तक चले जाते है! शायद इस बर्ष में साईं बाबा से जुड़े अनेको प्रसंग इस बात का एक उपयुक्त उदाहरण मैं कह सकता हूँ ! लेकिन कभी- कभार कुछ ऐसे रोचक वाकिये हमारे समक्ष आ जाते है, जब हमें यह सोचने पर मजबूर हो जाना पड़ता है कि शायद यही धर्म की चरमपंथता रही होगी, जिसने सही अथवा गलत दोनों तरह के जूनूनो के चलते कुछ वे करिश्मे कर दिखाए जिसने आज के इस घोर कलयुग में भी अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा तमाम विपरीत परस्थितियों और प्रलोभनों के बावजूद भी अनेकों आस्तिक, स्वाभिमानी इंसानो को अपने इस गौरवशाली हिन्दू धर्म की आस्था से जोड़े रखा है!
सच कहूं तो मुझे भी अभी तक तिरुपति जी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है! पोगा-पंडितों के अनुसार कहू तो शायद अनुचित तरीकों से अपार धन इकट्ठा कर पाने में मेरी नाकामी भी इसका एक कारण हो ! खैर, लेकिन जो लोग वहाँ दर्शनार्थ अथवा घूमने के उद्देश्य से जाते है, वे शायद उन सप्त पहाड़ियों को सिर्फ एक पहाड़ की तरह ही देखते होंगे, मगर बहुत सी नजरें ऐसी भी होती है जो उसी जगह को एक भिन्न अंदाज में देखती है ! आइये ऐसा ही एक नजारा यहाँ इन तस्वीरों में देखने की कोशिश करते है ;
तिरुमाला पर्वत
अब चलते है गडवाल ! जी, इसे उत्तराखंड स्थित गढ़वाल समझने की भूल कतई मत करिएगा! हैदराबाद से करीब १९० किलोमीटर दूर यह दक्षिण के आंध्रप्रदेश राज्य के महबूबनगर जिले में स्थित तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच स्थित आंध्रा और कर्णाटक की मिलीजुली संस्कृति अपने में समेटे एक जगह, एक किला और एक कस्बा है ! इसे मंडल का दर्जा भी हासिल है, जो कर्नाटक की सीमा के पास स्थित है और कर्नाटक के रायचूर जिले से रेल मार्ग से जुडा है ! वास्तव में पहले यह रायचूर जिले का ही एक हिस्सा था, मगर बाद में इसे महबूबनगर से जोड़ दिया गया! गडवाल संस्थानं नामक यह इलाका २१४ गांवों और गडवाल कस्बे और किले के रूप में कुल ८६४ वर्ग कीलोंमीटर में फैला है, २००१ में इस क्षेत्र की कुल आवादी ९,७०,००० के करीब आंकी गई थी ! गडवाल का किला वहाँ के शासक सोमशेखर अन्नदा रेड्डी (सोमनाद्री) ने बनवाया था, यह प्राचीन किला आज एक जर्जर अवस्था में पहुँच चूका है ! यहाँ पर प्रसिद्द श्री जमला देवी/चिन्नाकेश्वा स्वामी मंदिर भी है, जो वहाँ के लोगो की आस्था का केंद्र बिंदु है ! इस कस्बे को जुलाहों और किसानो का गाँव भी कहा जाता है ! यहाँ पर एक विश्वविद्यालय कैम्पस भी है! आसपास का इलाका चट्टानी और पर्वतीय है, यहाँ मूंगफली की खेती बहुतायात में की जाती है !इसके बगल में करीब १५ किलोमीटर दूर कृष्णा नदी पर जुराला डाम है जो एक रमणीक स्थल है! अगस्त और सितम्बर माह में यहाँ 'कृष्ण पुष्करस ' मेला भी लगता है, जिसके लिए नगर को खोब सजाया और साफ-सुन्दर किया जाता है ! इलाके में शाही दरवार के बहुत से परिवारों ने "गडवाल" शब्द को अपनी उपजाति (सरनेम ) के तौर पर भी इस्तेमाल करना शुरू किया और आज भी अपने को गडवाल उपजाति के नाम से पुकारे जाने पर फक्र का अनुभव करते है !
चित्र गूगल से साभार !
गडवाल से सम्बंधित वास्तविक चित्र आप इस ब्लॉग पर देख सकते है !
मंदिर में रोज लगने वाली श्रदालुओं की भीड़
हमारे सुदूर दक्षिण भारत के तमिलनाडु और आंध्रा राज्यों की सीमा के समीप स्थित तिरुमाला की पहाड़ियों में बालाजी तिरुपति, भगवान श्री वेंकटेश्वर (विष्णु भगवान् के अवतार ) के प्राचीन निवास को दुनिया भर के आस्थावान और जिज्ञासु लोगो के लिए एक आस्था का केंद्र सदियों से बनाए रखा है! जो भक्तों के लिए एक दिन में 22 घंटे के लिए खुला रखा जाता है! सामान्य समय में यहाँ प्रतिदिन ७५००० श्रदालू और त्योहारों के समय करीब ५ लाख श्रदालू प्रतिदिन यहाँ दर्शनार्थ आते है, और अनेकों कष्ट झेलने के बाद उन्हें वेंकटेश्वर भगवान् के दर्शन होते भी है तो मात्र चंद सेकेंडों के लिए! यहाँ प्रभु को गोविंदा, श्रीनिवास, बालाजी और सात तिरुमाला पहाड़ियों का निवासी (सप्तगिरी) के रूप में भी बुलाया जाता है ! इन सप्त पहाड़ियों को शेषनाग का प्रतीक भी माना जाता है ! यहाँ यह भी स्पष्ट कर दूं कि यहाँ का यह मंदिर हिन्दुओं के एक सबसे धनी और वैभवशाली मंदिरों में गिना जाता है, जिसकी कुल सम्पति करीब ५०,००० करोड़ रूपये आंकी गई है और इस मंदिर के दरवाजे सभी धर्मावलम्बियों के लोगो के लिए हमेशा खुले है! आठवी-नौवी शताब्दी के इस मंदिर को मुख्य रूप से मैसूर और गडवाल नरेशों तथा बाद में विजयनगर के शासक ने अपनी अपार धनसंपदा इस मंदिर पर अर्पित की ! स्वार्थी और लालची धर्मगुरुओं द्वारा यह कुप्रथा भी यहाँ प्रचलित की गई है कि पापी इंसान अगर अपने पाप की कमाई का एक अंश इस मंदिर को अर्पित कर देता है तो उसके बाकी पाप माफ़ हो जाते है ! ( डर है अगर कहीं उपरोक्त लाइने आज के हमारे कमीने भ्रष्ट नेतावों और नौकरशाहों ने पढ़ ली तो कल से वे सब तिरुपति जी का रुख न कर ले )
पिछले साल इसी महीने में आफिस के एक काम से मेरा विशाखापटनम जाना हुआ था ! गंतव्य की और जाते हुए एअरपोर्ट से जो टैक्सी ली थी, आदतन नई जानकारी हासिल करने हेतु टैक्सी ड्राईवर से रास्तेभर बाते करते हुए बिजयवाडा की ओर चलते-चलते बीच में यह मजेदार टॉपिक भी आ गया था कि विशाखापट्टनम में कौन सा लोकप्रिय धार्मिक स्थान है, जिसे मैं घूम सकू, तो उन ड्राइवर साहब ने बताया कि पहाडी पर स्थित सिम्हाचलम एक पवित्र मंदिर है जहाँ भगवान् की मूर्ति को सिर्फ चन्दन के लेप से ढककर रखा जाता है! (उसके दर्शनार्थ मैंने अगले दिन जाने का प्लान बनाया ) आगे बात बढ़ने पर उन सज्जन ने यह रोचक तथ्य बताया कि तिरुपति में चूँकि भगवान् विष्णु की पूजा ( यानि वेंकटेश्वर जो कि एक वंश-गोत्र, पारिवारिक देवता है ) सुब्रमनियम गोत्र के अनुयायियों द्वारा की जाती है, अत: आज भी यह मान्यता है कि यदि आंध्रा, तमिलनाडु और कर्नाटक के कार्तिकेयन ( भगवान् शिव के द्वितीय पुत्र ) गोत्र के किसी इन्सान को अगर तिरुपति जी के दर्शन करने हो तो उसे वहाँ तक सिर्फ कोई सुब्रमनियम गोत्र का अनुयायी ही लेकर जाएगा, वे खुद अपनी मर्जी से नहीं जा सकते, और यदि गए तो उन्हें किसी अनिष्ट (देवी-प्रकोप) का सामना करना पड़ता है !
सच कहूं तो मुझे भी अभी तक तिरुपति जी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है! पोगा-पंडितों के अनुसार कहू तो शायद अनुचित तरीकों से अपार धन इकट्ठा कर पाने में मेरी नाकामी भी इसका एक कारण हो ! खैर, लेकिन जो लोग वहाँ दर्शनार्थ अथवा घूमने के उद्देश्य से जाते है, वे शायद उन सप्त पहाड़ियों को सिर्फ एक पहाड़ की तरह ही देखते होंगे, मगर बहुत सी नजरें ऐसी भी होती है जो उसी जगह को एक भिन्न अंदाज में देखती है ! आइये ऐसा ही एक नजारा यहाँ इन तस्वीरों में देखने की कोशिश करते है ;
तिरुमाला पर्वत
अब इसी चित्र को खड़े में देखते है नीचे ;
अब चलते है गडवाल ! जी, इसे उत्तराखंड स्थित गढ़वाल समझने की भूल कतई मत करिएगा! हैदराबाद से करीब १९० किलोमीटर दूर यह दक्षिण के आंध्रप्रदेश राज्य के महबूबनगर जिले में स्थित तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच स्थित आंध्रा और कर्णाटक की मिलीजुली संस्कृति अपने में समेटे एक जगह, एक किला और एक कस्बा है ! इसे मंडल का दर्जा भी हासिल है, जो कर्नाटक की सीमा के पास स्थित है और कर्नाटक के रायचूर जिले से रेल मार्ग से जुडा है ! वास्तव में पहले यह रायचूर जिले का ही एक हिस्सा था, मगर बाद में इसे महबूबनगर से जोड़ दिया गया! गडवाल संस्थानं नामक यह इलाका २१४ गांवों और गडवाल कस्बे और किले के रूप में कुल ८६४ वर्ग कीलोंमीटर में फैला है, २००१ में इस क्षेत्र की कुल आवादी ९,७०,००० के करीब आंकी गई थी ! गडवाल का किला वहाँ के शासक सोमशेखर अन्नदा रेड्डी (सोमनाद्री) ने बनवाया था, यह प्राचीन किला आज एक जर्जर अवस्था में पहुँच चूका है ! यहाँ पर प्रसिद्द श्री जमला देवी/चिन्नाकेश्वा स्वामी मंदिर भी है, जो वहाँ के लोगो की आस्था का केंद्र बिंदु है ! इस कस्बे को जुलाहों और किसानो का गाँव भी कहा जाता है ! यहाँ पर एक विश्वविद्यालय कैम्पस भी है! आसपास का इलाका चट्टानी और पर्वतीय है, यहाँ मूंगफली की खेती बहुतायात में की जाती है !इसके बगल में करीब १५ किलोमीटर दूर कृष्णा नदी पर जुराला डाम है जो एक रमणीक स्थल है! अगस्त और सितम्बर माह में यहाँ 'कृष्ण पुष्करस ' मेला भी लगता है, जिसके लिए नगर को खोब सजाया और साफ-सुन्दर किया जाता है ! इलाके में शाही दरवार के बहुत से परिवारों ने "गडवाल" शब्द को अपनी उपजाति (सरनेम ) के तौर पर भी इस्तेमाल करना शुरू किया और आज भी अपने को गडवाल उपजाति के नाम से पुकारे जाने पर फक्र का अनुभव करते है !
गडवाल कस्बे का गूगल अर्थ से लिया गया चित्र
चित्र गूगल से साभार !
गडवाल से सम्बंधित वास्तविक चित्र आप इस ब्लॉग पर देख सकते है !
बहुत रोचक प्रस्तुति...
ReplyDeleteKafi vistrat jaankaari di aapne...
ReplyDeleteगढ़वाल सम्बन्धी जो जिज्ञासा रह गयी थी मन मे, अच्छा हुआ वह शान्त हो गयी।
ReplyDeleteगोदियाल जी , प्रतिदिन ७५००० श्रद्धालु दर्शन कर अपने पाप धो डालते हैं । फिर भी देश में इतना भ्रष्टाचार व्याप्त है । नेता और अफसर तो वैसे भी जाते ही हैं ।
ReplyDeleteतिरुमाला पर्वत का यह फोटो एक ही एंगल से ऐसा दिखता है या सभी दिशाओं से ?
गडवाल की विस्तृत जानकारी अच्छी लगी ।
घर बैठे बढिया सैर कराने के लिए आभार॥
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी है ...
ReplyDeleteरोचक पोस्ट गोदियाल जी, आन्ध्र में उसे गडवाल नहीं गदवाल कहते हैं।
ReplyDeleteSorry Dr. saab, as I mentioned above, mujhe abhee tak yah saubhaagy prapt nahee hua, so unable to respond your query. These photographs have sent to me by mail by one of my friends.
ReplyDelete@स्मार्ट इंडियन : शुक्रिया सर, एक्चुअली जब आप आंध्रा के किसी शहर में जाओ तो डिस्प्ले बोर्ड आपको या तो तेलगु में मिलेंगे या फिर अंगरेजी में, यह नहीं कहता की हिन्दी में नहीं है, मगर उनकी संख्या नगण्य ही है, अत: एक उत्तरभारतीय के लिए सिर्फ अंग्रेजी के बोर्ड पढ़ना ही संभव hota है अत वह इसे गडवाल(Gadwal) ही पढता है !
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति...गोदियाल जी
ReplyDeleteआपने अच्छी सैर करा दी आपने
रोचक वृतांत लिखा है आपने गौदियाल जी ... इतने तथ्य नहीं पता थे इस मंदिर के बारे में ...
ReplyDeleteतिरुपति मै गया तो हूँ परन्तु जो जानकारी आपने दी वह अद्भुत थी और एकदम नयी. गढ़वाल और गडवाल को सुन्दर तरीके से परिभाषित करने और वहां के बारे में नयी जानकारी देने के लिए आपका आभार. फोटो भी प्रभावित करती है. पुनः आभार.
ReplyDeleteतिरुपति तो दो बार जाना हुआ पर यहां की गढवाल साडियों के बारे में जिज्ञासा मुझे भी थी । तो आपके लेख से शांत हुई । पर आपने भाभीजी के लिये गदवाल साडी खरीदी या नही ? इनका पल्ला और बॉर्डर सिल्क धागे से बने होते हैं और बीच का हिस्सा सूती पर होता है, कमाल की हैं ये साडियां और महंगी भी । तिरुपति के चित्र बहुत सुंदर हैं खास कर जो आपने पहाड को वेंकटेश के रूप में दिखाया है ।
ReplyDeleteबहुत दिनों(?) बाद आई आपके ब्लॉग पर क्षमा प्रार्थी हूँ ।