किसकदर बेहयाई भरी ऐ खुदा, तुमने इन दगाबाजों में,
मेज़ तले ये मसलते हैं हाथ और झाड़-पोंछते दराजों में।
फल-फूलता आ रहा है यह तिजारत, बदस्तूर जमाने से,
कहीं पोसते हैं इसे ये संत-समागमों में, कहीं नमाज़ों में।
दौलत-वैभव,ढोंग,धौंसिया,ये प्रयोजन इनकी तृष्णा का,
इशारों-इशारों में राग छेड़ते और बोल ढालते हैं साजों में।
दरियादिली-परोपकार की, माशाल्लाह क्या मिशाल दें,
गोश्त अलगाते कबूतरों को और दाना बांटते है बाजों में।
जेहन में सिर्फ वोट बसा है और खोट बसा है नीयत में,
मुलामियत ओढ़े चहरे पे और कुटिलता काम-काजों में।
तख़्त-ए-रियासत तजुर्बाकार है शख्सियत के खेल में,
जालिमों की करतूतों को,पिरोंए कहाँ तक अल्फाजों में।
वाह...
ReplyDeleteआपने अल्फाजों को बखूबी पिरोया ...
बेहतरीन...
सदर
अनु
कहाँ तक लिखेंगे ? लिखने वाले को ही शर्म आ जाएगी ... सटीक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteकमाल का लिखा है गौदियाल जी ... धो धो के चपत लगाईं है पर इन्हें समझ आए तो ...
ReplyDeleteइनके लिए ग़ज़ल पर इतनी मेहनत की है गोदियाल जी !
ReplyDeleteसुन्दर है पर सब फ़िज़ूल है . :)
जुल्म, बेइंसाफी भी इनकी सह लेते यूं ही 'परचेत' मगर,
ReplyDelete'गरिमा' कहाँ गुम हुई ऐ खुदा ! सम्राज्ञी के इन नवाजों में !
सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी
शानदार और
ReplyDeleteजानदार तमाचे
वाह वाह !!
नमक मिर्च
के साथ वो खायेंगे
फिर भी
कौन सा शरमायेंगे
हाथ जोडे़गे दाँत
दिखायेंगे !!
तीखा कटाक्ष...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना...
क़रारा तमाचा! सुधरने की मगर...अब उम्मीद कहाँ...???:((
ReplyDeleteसादर!!!
जबरदस्त .... शानदार रचना...
ReplyDeleteसादर बधाई स्वीकारें...
सन्नाट कटाक्ष..
ReplyDelete:) ekdam sahi
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