मेरे लिए तो ये हिग्ग्स-बोसोन एक काला अक्षर भैंस बराबर के समान है ! जब जिसका कुछ ख़ास पता ही नहीं तो मेरा उस बारे में कुछ कहने का तुक ही नहीं बनता किन्तु जहां थोड़ी खुशी हुई कि इन ज्ञानियों ने कुछ ढूंढा वहीं मुझे इस बात का दुःख अधिक है कि अरबों-खरबों खर्च करने के बाद यदि हमारे ये वैज्ञानिक अब यह कहें कि कोई शक्ति है जो बिग-बैंग थ्योरी से ज़रा पहले घटित हुई और जो ब्रह्माण्ड को नियंत्रित और संचालित करती है, तो मेरे लिए इससे बड़ी हास्यास्पद बात क्या हो सकती है? पश्चिम और तथाकथित अतिज्ञानी, नास्तिक समाज का दोगलापन भी इसमें साफ़ झलकता है! यह जानने के बाद भी कि आस्तिकता के पीछे भी ठोस कारण है, और इसे हम बहुत अधिक समय तक झुठला नहीं सकते, उसे स्वीकार करने हेतु इनके द्वारा इतने ताम-झाम करने के बाद ऐसे निष्कर्ष निकाले जाते है! एक दुःख यह भी है कि हिग्ग्स बोसोन का जिक्र करते हुए ये पीटर हिग्स को तो याद रखते है, मगर हमारे वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस को भूल जाते है ! जिन निष्कर्षों पर पहुचने का नाटक ये आज कर रहे है, उन निष्कर्षों को तो हमारे पौराणिक ग्रंथ कब के बता चुके, अब ये इसे भले ही इस अंदाज में प्रस्तुत करे कि पहले कणों का कोई पिंड, पुंज, पैमाना अथवा समूह नहीं होता था लेकिन अब इस हिग्ग्स बोसोन के मिल जाने के बाद इन्हें वह कण भी मिल जाएगा जिसमे ये खूबियाँ हों! इसे कहते हैं खोदी सुरंग निकली चुहिया !
आइये, अब ज़रा इसे दूसरे नजरिये से देखकर हम भगवद गीता के १३ वे अध्याय के १३वें व १५ वे श्लोक पर एक नजर डाले ;
सर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति ॥१३- १३॥
हिन्दी सारांश: वह (भगवान्) सब और(दिशा में ) हाथ,पैर, नेत्र, सिर, मुख और कान वाला है !क्योंकि वह संसार में सबको व्याप्त करके स्थित है अर्थात वह संसार के कण-कण में मौजूद है! (English translation: It has hands and feet all sides,eyes, head and mouth in all directions, and ears all-round; for it stands pervading all in the universe.)
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत् ॥१३- १५॥
थोड़ी देर के लिए मान लीजिये कि कल इस हिग्ग्स बोसोन पर आगे प्रयोग होते है और यदि एक दिन वैज्ञानिक विरादरी इस बात पर पूरी तरह एकमत हो जाती है कि हमारे आसपास कोई है जो सबकुछ नियंत्रित और संचालित कर रहा है, तो थोड़े से ठन्डे दिमाग से सोचिये कि हमारा यह हिन्दू धर्म और इसके पौराणिक ग्रंथ वाकई कितने श्रेष्ठ है, जिसने उस बात को हमें सदियों पहले बता दिया था. जिसे ये पश्चिम के वैज्ञानिक आज साबित करने जा रहे है!
नोट: उपरोक्त आलेख सिर्फ इस बिंदु को ध्यान में रखकर लिखा गया है कि जैसा कि हमारे कुछ प्रचार माध्यम प्रचारित कर रहे है, कि भगवान् की खोज हो गई है, तो यदि भगवान् है तो यह बात ऋषि-मुनियों ने हमारे धर्म- ग्रंथों में बहुत पहले ही कह दी थी, इसमें नया क्या है ? बहुत सीमित विज्ञान की जानकारी रखता हूँ, अत : जाने अनजाने कुछ गलत परिभाषित किया हो तो उसके लिए अग्रिम क्षमा !
सार्थक लेख...
ReplyDeleteआपकी बात से सहमत होने को जी करता है...
सादर
अनु
कण-कण में भगवान् वाली बात तो हमारे हिन्दू धर्मग्रथों और मान्यताओं में सदियों से चला आ रहा है आज हिग्ग्स-बोसोन भी कहता है तो यह हमारे धर्मग्रथों की ही व्याख्या भर होगी..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ..
सार्थक लेख भाई गोदियाल जी. .... चौथी शताब्दी में आर्य भट्ट ने बांस की दूरबीन से सूरज, चाँद, सितारों के बारे में जो बताया, दूरी की जो गणना की करोड़ों अरबों की दूरबीन भी तो वही बता रही है।.
ReplyDeleteबड़े तेज निकले आप तो!
ReplyDeleteताजी खबर पर इतनी बढ़िया पोस्ट लिख दी!
हमारे ग्रन्थों से ही तो खोज कर रहे हैं .... बढ़िया लेख
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख हमारे देश के निरक्षर लोग भी ये जानते है की कोई अदृश्य शक्ति है जो हमें नियंत्रित करती है क्यों की हमें अपने भगवन पर विस्वास है, ये पश्चिम के लोगो को क्या कहा जाय---------?
ReplyDeleteचैनलियों के सन्दर्भ में आपके उदगार और गीता प्रवचन समीचीन है इन अज्ञानियों अल्प -ज्ञानियों शोशेबाज़ों का काम ही है उत्तेजना फैलाना ,कभी इन्हें हनुमान का लंगोट मिलता है कभी भीम की गदा लेकिन यही बात हिग्स बोसोन पर लागू नहीं हो सकेगी .यही वह कण है जो शेष सब कणों में द्व्यमान क्यों है इसकी व्याख्या करता है .
ReplyDeleteयह दंभ भी अब सुहाता नहीं है कि हमारे ऋषि मुनियों ने सब जान लिया था .सारा ज्ञान वेदों में सुरक्षित है "ज्ञान भी क्या कोई जड़ कोष है जो थिर है"? .जहां ज़नाब की दखल हो वहीँ पैर पसारें वरना अर्थ का अनर्थ ही निकलेगा .गीता के सार का कोई तो सन्दर्भ हो .अप्रासंगिक बात बे -सिर पैर की ही लगती है .
ठीक है जो जड़ में है वही चेतन में भी है लेकिन इससे पश्चिम की उस दृष्टि को दोष कैसे दीजिएगा जो embryo और fetus में फर्क करती है .हम पूरब वासी एक ही शब्द भ्रूण से काम चला लेतें हैं .पश्चिम के अनुसार जब कोशिका विभाजन चंद दिनों का ही होता है तब गर्भस्थ एम्ब्रियो और बाद इसके भ्रूण कहलाता है .
कैसी कहिएगा कि विभेदित(differentiated cells) और अ -भेदित (un -diiffrentiated cells)यानी स्टेम सेल्स में अंतर नहीं होता जबकि स्टेम सेल्स इस दौर की सभी बीमारियों का हल प्रस्तुत करने की हामी भरती है . अंगों की मानव अंगों की फार्मिंग प्रत्यारोपण के वास्ते कर सकतीं हैं अब यह मत कहिएगा हमारे ऋषि मुनियों ने यह भेद पहले ही जान लिया था .
veerubhai ,Silverwood DR,Canton ,MI,48,188
एकदम सटीक विवेचन ...इससे ज्यादा क्या कहें कि ...जिन निष्कर्षों पर पहुचने का नाटक ये आज कर रहे है, उन निष्कर्षों को तो हमारे पौराणिक ग्रंथ कब के बता चुके...
ReplyDeleteआपको बुरा लगेगा उसके लिए क्षमाप्रार्थी !
ReplyDeleteहिग्स बोसान का ईश्वर से दूर दूर तक कोई संबध नही है। आपका लेख और अधिकतर टिप्प्णीयां इस विषय को गलत तरीके से समझने के कारण है।
हिग्स बोसान को कुछ लोगो ने ’ईश्वर कण’ इसलिये कह दिया क्योंकि उसे खोज पाना मुश्किल होते जा रहा था। १९७० मे इसके होने की संभावना जतायी गयी थी और पूरे ४३ वर्ष लग गये इसे ढुंढने मे।
और रहा अरबो रूपये खर्च करने का, आप भूल रहे है कि जिस इंटरनेट का आप प्रयोग अपने विचारो के प्रसार के लिये कर रहे है वह अमरीका के रक्षा विभाग ने अरबो खरबो रूपये खर्च के बनाया था, आज जन जन के काम आ रहा है। आपका मोबाईल/घर का फोन भी अरबो खर्च कर के ही बना था।
आप मेरे इस ब्लाग पर जाकर इस कण के संबंध मे जानकारी प्राप्त कर सकते है : https://vigyan.wordpress.com/
ReplyDeleteएक और टिप्पणी:
ReplyDeleteपिटर हिग्गस नास्तिक है, वह ईश्वर/गाड पर विश्वास नही करते है।
सत्येन्द्रनाथ बोस को भूलने का प्रश्न ही नही उठता! ’बोसा’ नाम ही उनके सम्मान मे है।
विज्ञान समुदाय(भारत का भी और अंतरराष्ट्रीय भी) उनका अहसानमंद है।
लेकिन मीडीया की गारंटी लेना असंभव है कि वो क्या दिखा दें।
सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं बोसॉन्स, पता नहीं हिग्स कौन सा अलग गुण लेकर आयेंगे और कौन सा भेद उत्पन्न करेंगे?
ReplyDeleteआदरणीय वीरुभाईजी और आशीष श्रीवास्तवजी ! सर्वप्रथम आपका आभार व्यक्त करना चाहूँगा कि आपने अपना समय निकाल मेरे उदगार पर अपनी महत्वपूर्ण टिपण्णी दी ! और यकीन मानिए मुझे आपकी टिपण्णी से किसी भी तरह से बुरा नहीं लगा, अपितु यह कहूंगा कि आपने एक जो वैज्ञानिक पक्ष है उसे खूबसूरती से रखा ! मैं इस पर ख़ास लम्बी बात भी नाहे कहूंगा क्योंकि मैं भी बहुत ज्यादा आस्तिक नहीं हूँ , लेकिन मुझे कहीं लगता है ( और जिसका मुझे डर था और इसी लिए उस आलेख के अंत में नोट भी लिखा था ) कि आप मैं जो कहना चाहता था उसे ठीक से पकड़ नहीं पाए ! प्रयोग आविष्कार का मूल होता है ! यदि प्रयोग ही नहीं होंगे तो आविष्कार कहाँ से होंगे ? और न जाने आगे चलकर यह जो अरबों खरबों रूपये का प्रयोग है मानव के किस हित के काम आ जाए कोई नहीं जानता ! मेरी खीज तो सिर्फ मीडिया से थी भाई साहब कि यदि हमें १३ साल के प्रयोग के बाद यही सुनना था कि कोई हिग्स बोसों जैसा कण है जो मास एकत्रित करने में सक्षम है ! यानि कि भगवान् के जैसा पावरफुल है तो यह बात जो ये इतने प्रयोग करके अरों खर्च करके कह रहे है हमारे ऋषि-मुनियों ने सिर्फ आत्मानुभूति से ही जान लिया था और जिसके गवाह और प्रमाण हमारे पुराण और गीता है !बस,
ReplyDeleteमैंने यह नोट भी लिखा था ;
"
नोट: उपरोक्त आलेख सिर्फ इस बिंदु को ध्यान में रखकर लिखा गया है कि जैसा कि हमारे कुछ प्रचार माध्यम प्रचारित कर रहे है, कि भगवान् की खोज हो गई है, तो यदि भगवान् है तो यह बात ऋषि-मुनियों ने हमारे धर्म- ग्रंथों में बहुत पहले ही कह दी थी, इसमें नया क्या है ? बहुत सीमित विज्ञान की जानकारी रखता हूँ, अत : जाने अनजाने कुछ गलत परिभाषित किया हो तो उसके लिए अग्रिम क्षमा ! "
गोदियाल जी,
ReplyDeleteहमारी भारतीय मीडिया ही नही, अंतराष्ट्रीय मीडिया को बात का बंतगड़ बनाना अच्छे से आता है। उनकी रोजी रोटी ही सनसनी से चलती है। एक अच्छी खासी महत्वपूर्ण खोज जो कि सदियो तक याद रखी जायेगी, उस खोज की पूरी ऐसी तैसी कर दी मीडिया ने।
इस खोज का ईश्वर से कोई संबध ही नही है इसीलिए मैने अपनी पोष्ट की शुरुवात मे लिखा था
समाचार पत्रो की सुर्खियों मे सामान्यतः राजनीति और फिल्मी गासीप के लिये ही जगह होती है, विज्ञान के लिये कम और कण भौतिकी के लिये तो कभी नही। लेकिन हिग्स बोसान इसका अपवाद है, लेकिन शायद यह भी इसके विवादास्पद उपनाम “ईश्वर कण” के कारण है।
बहरहाल स्वस्थ बहस अच्छी होती है और चलते रहना चाहीये।
धन्यवाद!
हा हा ... आप क्या कह रहे हैं ... जिस बात की खोज में एक पैसा भी खर्च न हो वो कैसे कोई मान ले ... हम तो अब मानेंगे भगवान होता है ... करोड़ों खरबों रूपये खर्च करके विदेशी वैज्ञानिकों ने साबित की है ये बात ... भारतीये चाहे हजारों साल से कहें पर मानता कौन है ...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteशेअर करने के लिए आभार!
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है क्रोध की ऊर्जा का रूपांतरण - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
ReplyDeleteअच्छा विश्लेषण.
ReplyDeleteगोदियाल जी.. नमस्कार... बहुत दिनों के बाद... आया हूँ... कैसे हैं आप? एक वादा कर रहा हूँ कि अब आता रहूँगा..
ReplyDeleteस्वागत , डा० साहब !
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