Friday, August 24, 2018

बढ़ता (एंटी) सोशल नेटवर्किंग: खतरे में यकीन का अस्तित्व !

निहित स्वार्थों की वजह से  डिजिटल प्रौद्योगिकी  के  इस जटिल युग में  पढ़ा-लिखा इंसान, प्रौद्योगिकी का  इसकदर दुरुपयोग करने लगेगा  कि  मानव समाज में  'यकीन' शब्द की अहमियत को  ही खतरे में डाल दिया जाएगा, यह कम से कम मैंने तो शायद ही कभी सोचा हो।  सोशल मीडिया अथवा सोशल नेटवर्किंग साइट्स की सुगमता और  उपलब्धता ने  हमारे समाज में मौजूद तुच्छ प्रवृति के असंख्य लोगों के लिए समाज में अराजकता फैलाने के नए- नए घातक हथियार सरलता से उपलब्ध करा दिए है।  जोकि एक सभ्य समाज के लिए बहुत ही चिंता  का विषय होना चाहिए।       

अभी पिछले एक हफ्ते में घटित, ऐंसी  ही चार घटनाओं का सचित्र वर्णन यहाँ करना चाहूंगा।


१: केरल में हाल की  भीषण बाढ़ और तवाही से निपटने के लिए हमारे सेना, अर्द्ध सैनिक और पुलिस बलों के  वीर जवान जान पर खेलकर दिन रात जूझ रहे हैं। जहाँ एक ओर  वहां मौजूद बीएसएफ के जवान आदेश का इंतजार किये वगैर ही बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए दौड़ पड़े वहीँ दूसरी तरह ,  'तेरहवीं गढ़वाल राइफल्स' के जवानो ने जब एक कालोनी में लोगो को बाढ़ में बहते देखा तो अपने लंगर में मौजूद खाना बनाने के बड़े-बड़े पतीलों  को ही नाव बनाकर मदद के लिए न सिर्फ बाढ़ में कूद पड़े अपितु उस कालोनी के २३ लोगो की जान भी बचाई।  उनके ये हौंसले और सूझबूझ अनुकरणीय है हमारे लिए। किन्तु हमारे बीच मौजूद कुछ घटिया  प्रवृति के लोगो ने  हमारे सैनिको के बलिदान और त्याग को दरकिनार कर  अपने स्वार्थ के लिए उन्हें भी नहीं छोड़ा।  मजबूरन सेना के अफसरों को  इन तुच्छ लोगो की हरकतों का पर्दाफास करने के लिए खुद ही आगे आना पड़ा और कहना पड़ा कि कुछ ढोंगियों  ने सेना की वर्दी पहनकर वह वीडियों बनाया। लानत है ऐसे घटिया जंतुओं पर !


२: ये महाशय हमारे देश के एक जिम्मेदार आईपीएस ऑफिसर  रह चुके है किन्तु इनके स्वार्थ और राजनैतिक  द्वेष ने इन्हे भी शायद अँधा बना दिया है।  आप इनके  ट्वीट, जिसका चित्र नीचे संलग्न है , से सहज अंदाजा लगा सकते है।   


3: अब तीसरा प्रकरण देखिए,  स्वतन्त्रता  दिवस के दिन इस लड़के ने अपनी दुकान पर बैठकर  एक वीडियो बनाया। वीडिओ में यह लड़का हमारे राष्ट्रिय ध्वज को फाड् रहा है और कह रहा है कि मैं पक्का मुसलमान हूँ।  अगले दिन कुछ लोग इसके वायरल वीडियो को देख इसकी दूकान पर पहुंच गए  और जब इसकी धुनाई की तो दावा  किया  जा रहा है इसने बताया कि  वह हिन्दू है और  मुसलमानो को बदनाम करने के लिए इसने यह विडिओ बनाया  और सोशाल  साईट पर अपलोड किया।  अब ज़रा सोचिये , अगर यह दावा  सही है  और इसकी हरकतों की वजह से साम्प्रदायिक दंगे भड़क जाते तो नुकशान किसका होता ?


4: चोथा और अंतिम;  देश का उत्तराखंड राज्य जो कि  अमूमन एक शांतिप्रिय राज्य है, उस वक्त दहल गया जब उत्तरकाशी में एक १२  साल की मासूम के साथ एक दरिंदे ने  न सिर्फ  अपनी दरिंदगी का प्रदर्शन किया अपितु उसे मारकर उसकी लाश को पुल के नीचे डाल दिया। कुछ लोगो ने यहाँ इस घटना को भी  साम्प्रदाकि रंग यह कहकर देने की कोशिश की  कि  आरोपी दूसरे समुदाय के बिहार के मजदूर  हैं।   बाद में पुलिस ने बगल  में ही रहने वाले मनोज लाल नाम के आरोपी को गिरफ्तार किया, और कहा जा रहा है कि  उसने अपना गुनाह कबूल भी कर लिया है।     




सोचिये , तब क्या स्थिति होती जो अगर लोग उन चार बिहारी मजदूरों के साथ आवेश में  कुछ गलत कर जाते ? अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है की दूसरे  समुदाय के लोगो पर ऊँगली उठाने से पहले हमें अपने गिरेवान में झाँकने की जरुरत है।   जब अपने ही समाज में मौजूद कुछ इस तरह के लोगो से  बहस करो और उन्हें गलत सूचना या तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश न करने की बात करो , तो उनका तर्क बस यही होता है कि  विरोधी भी तो यही तरीके अपनाते है।  अरे भाई , अपने को हिन्दू कहते हो , और हमारे हिन्दू ग्रंथों में कहीं यह नहीं बताया गया है कि अगर विरोधी मैला  खाता हो तो तुम भी खाने लगो।  

हकीकत यही है कि हमारी इन हरकतों की वजह से यकीन अथवा भरोसे  का अस्तित्व खतरे में पड  गया है। किस पर भरोसा किया जाए , दिनप्रतिदिन यह विषय एक जटिल रूप धारण किये जा रहा है , जिसे समय रहते  संजोने की सख्त जरुरत है।   













  

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-08-2018) को "जीवन अनमोल" (चर्चा अंक-3074) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. लगता है सब पागल हो गये हैं। अपनी बुद्धि का प्रयोग बन्द कर सम्मोहित से किसी राक्षस के इशारों में भूत नृत्य कर रहे हैं।

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    1. भीड़ तंत्र अपने चरम पर है, जोशी सहाब।

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  4. दीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।