Saturday, December 27, 2008

वो कौन थी ?

हर इंसान की जिंदगी से जुड़े कुछ वे ख़ास संस्मरण भी होते है जिन्हें इंसान दिल के किसी कोने में संजो कर तो रखता है, हर एक को खुलकर नहीं बता पाता। कुछ बाते ऐसी होती है जो इंसान सीधे वार्तालाप में अभिव्यक्त करता है और कुछ ऐसी, जो लिखकर व्यक्त की जाती है । अभी पिछले हफ्ते मेरा एक जिगरी दोस्त मेरे घर पर आया था, वह स्वभाव से बहुत बातुनी है, उस दिन हमारा सपरिवार डिनर का प्रोग्राम था, शाम को जब टेबल पर मनोरंजन करने बैठे तो वह लगा मेरा दिमाग चाटने। बातो को कैसे घुमाना है, कैसे तोड़मरोड़ कर पेश करना है, कोई उससे सीखे। उसने जल्दी-जल्दी दो पग लिए और बोला यार, मैं आज तेरे को अपनी एक सच्ची कहानी सुनाता हूँ, तुम चुपचाप सुनो, नाराज मत होना। मैंने कहा सुना भई, मैं भला क्यों तेरी कहानी से नाराज होऊंगा? बस फिर वह लगा अपनी राम कहानी सुनाने।

१९८५ के आस-पास की बात है, वह तभी से मेरे साथ हो ली थी, जब से मैं अपने विद्यार्थी जीवन को त्याग रोजी-रोटी की तलाश में गाँव से शहर को निकला था। उससे पहले भी वो कभी-कभार मेरे साथ हो लेती थी, मगर उस बेफिक्र जीवन में मुझ जैसे स्वार्थी इंसान को उसकी ख़ास जरुरत महसूस नहीं होती थी। मेरे हर अच्छे बुरे निर्णय में वह मेरे साथ रहती। बस यूँ समझो कि हरपल वह मेरे साथ रहती, मेरी परछाई की तरह । नौकरी मिली, उसके बाद घर वालो ने मेरे शादी तय की । इस शादी तय करने के मामले में न उसने और न मैंने, अपने घर वालो का साथ दिया था, मैंने अपने घरवालो से सिर्फ यह कह दिया था कि जो आपलोगों को उचित लगे, करो । फिर शादी का दिन भी आ गया । मुझे याद है, उसने मेरे शादी के साजो-सामान को चुनने/खरीदने में भी मेरी पूरी मदद की थी । कहाँ क्या बोलना है, नवेली दुल्हन के साथ क्या बात करनी है कैसे बर्ताव करना है, हर एक बात वह मुझे बारीकी से समझा देती थी । घर-गृहस्थी बसाने के बाद बच्चे हुए, शहर में मकान खरीदा, बच्चो को स्कूल में भर्ती करवाया । यहाँ भी मेरे हर एक निर्णय और हर कदम पर वह एक सच्चे दोस्त की भांति मेरे साथ रही। मैं कभी-कभी इस सोच और फिक्र में डूब जाता कि वह मेरे लिए इतना त्याग करती है, मगर मैंने इसे सिवाए प्यार के और क्या दिया ?

दिन, महीने, साल गुजरते रहे, मगर वह मेरा साथ छोड़ने को तैयार न थी । एक साये की तरह मेरे पीछे थी । मुझे जब भी उदास अथवा चिंतित देखती, मेरा हाथ पकड़ मुझे बाहर गाड़ी तक खींच लाती और कहीं चलने को कहती । अभी कुछ दिन पहले की बात है, क्रिसमश की छुट्टी होने की वजह से, मैं घर के बाहर बरामदे में बैठा सर्दियों की धूप का आनंद ले रहा था और भारत पाकिस्तान के बीच आंख मिचोली के खेल के बारे में विचार मग्न था, कि तभी अचानक वह फिर आ गई । मुझको ढंग के कपड़े पहनने का निर्देश दे, ख़ुद बरामदे के एक कोने पर खड़ी होकर धूप सेकने लगी । मैं अन्दर गया, कपड़े बदले और तैयार होकर बाहर निकला । गाड़ी स्टार्ट की और चल दिए, वह मेरी बगल वाली सीट में बैठ गई। सफेद लिवास में आज वह कुछ ज्यादा ही खुबसूरत दिख रही थी ।

वह मुझे शहर के एक बड़े चर्च में ले आई थी। चर्च में काफ़ी लोग इकट्ठा थे, क्रिश्मश मनाने के लिए । जिनमे बच्चे और युवा ज्यादा थे । उसके द्वारा बहुत सी क्रिश्चियन हसीनाओ से मुझे मिलाया गया। वो हसीनाये मुझे 'मैरी क्रिसमस' कहकर मेरे गाल पर किस करती और मिठाईया खिलाती, मैं गदगद था । शाम को पास के होटल में कॉकटेल पार्टी थी । मैं भी स्वाद के मारे रेड-वाईन के काफ़ी पैग ले चुका था । अब तक मैं तो अपने घर की तरफ़ से एकदम बेफिक्र सा था, मगर वह हर इंसान की भावनाए जानती और समझती थी, अतः उसने मुझे मेरी पत्नी को घर पर फोन करने को कहा । मैंने अपने मोबाईल फ़ोन से घर फ़ोन किया, उसने धीरे से मेरे कान में कहा कि इस समय तुम होश में नही हो, इसलिए ज्यादा बात मत करना और यह कहदो कि मैं यहाँ पर क्रिसमस की पार्टी अटेंड कर रहा हूँ, दोस्तों के साथ, अतः रात को घर नहीं लौटूंगा, तुम लोग खाना खाकर सो जाना। मेरे अधिक ले लेने के बाद उसने मह्सुश किया कि मैं अब ड्राइव करने लायक नही रहा, अतः उसने होटल में ही मेरे लिए कमरा बुक किया और मैं वहीँ एक कमरे मे सो गया, वह मेरे पास में ही बैठी थी और धीरे-धीरे मेरे बालो को सहला रही थी और एक गीत गुनगुना रही थी: आ चल के तुझे मैं लेके चलू इक ऐंसे गगन के तले.....फिर मैं सो गया ।

अब तक में उसकी वह राम कहानी बड़े धैर्य से सुन रहा था, किन्तु चूँकि मैं भी नशे में था , अतः मुझे उसकी कहानी सुनकर उसपर गुस्सा आ गया और मैंने गुस्से में उसे लगभग गाली देते हुए कहा, मैं तो तुझे एक शरीफ इंसान समझता था, पर तू तो बड़ा ही आवारा-बदचलन किस्म का इंसान है, अपने बीबी बच्चो को छोड़ किसी और के साथ गुलछर्रे उडाता है। बेटा, यह सुख ज्यादा दिन नही भोग पायेगा, दो नावों में सफर करने वाला बुरी तरह भंवर में डूबता है। मेरी बात और गालियों को शांत ढंग से सुनते हुए वह मंद-मंद मुस्कुराया और बोला, इसका मतलब मेरी कहानी अच्छी लगी तुझे । मैंने उसको घूरते हुए देखा और मैं बोला कुछ नहीं । वह बोला, मुझे मालूम है कि तेरा ये कबाडी दिमाग आगे क्या सोच रहा होगा, तू अपने दिमाग पर जोर डाल कर सोच रहा होगा कि यह जानते हुए भी कि यह एक शादी-शुदा इंसान है, वह कौन कलूटा होगी जो इसको इतना चाहती है ? तो सुन, पता है वह कौन थी? अरे इडियट, वह मेरी खुद की कल्पना थी, मेरी अपनी कल्पना,... इट वाज जस्ट माय इमेजिनेशन... उसकी बात सुन मैंने पुछा, तू सच बोल रहा है न ? उसने अपने बच्चो की कसम खाते हुए कहा, यार तुझे मुझ पर भरोसा नहीं ? उसकी बात सुन मैंने और उसने जोर का एक ठहाका लगाया, और उसने भी इस खुशनुमा माहौल का फायदा उठाते हुए जल्दी से जो कुछ बोतल के निचले भाग में बची थी, उसे भी अपने गिलास में उडेल दिया। मैं उसका मुह देखता रह गया था।
गोदियाल

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।