Friday, December 26, 2008

हद-ए-झूठ !



रंगों की महफिल में सिर्फ़ हरा रंग तीखा,
बाकी सब फीके।
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है ,
मगर, झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे।।


झूठ भी ऐंसा कि एक पल को, सच लगने लगे,
'मगजधोवन' धंधे में इन्होने न जाने कितने युवा ठगे,
खुद के जुर्मों पर पर्दा डालने को खोजते नित नए तरीके।
सच तो खैर, इस युग में चंद ही जन बोलते है,
मगर, झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे ।।


दुष्कर्मों  का अपने ये रखते नही कोई हिसाब,
भटक गए हैं राह से अपनी, पता नही कितने कसाब,
चाह है पाने की वह जन्नत मर के, जिसे पा न सके जीके।
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है ,
मगर, झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे ।।


इस युग में सत्य का दामन, यूँ तो छोड़ दिया सभी ने,
असत्य के बल पर उछल रहे आज लुच्चे और कमीने,
देखे है हमने बड़े-बड़े झूठे, मगर देखे न इन सरीखे।
सच तो खैर, इस युग में चंद ही जन बोलते है ,
मगर, झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे।।


दहशतगर्दी के खेल में उतर तो गए कई मिंया जरदारी,
मगर फिर पड़ने लगी उन्ही पे उनकी ही  करतूत भारी,
हर काम ही ऐसा है कि कथनी और करनी में फर्क दीखे।
सच तो खैर, इस युग में कम ही लोग बोलते है,
मगर, झूठ बोलना तो कोई इन पाकिस्तानियों से सीखे।।

1 comment:

संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।