Monday, September 15, 2008

तुझसे क्या कहू?



खौफ भी संग अपने 'नाक' जोड़ता है,
और 
दर्द की भी अपनी इक 'नाक' होती है, 
साथ ही 
इक 'नाक' शर्म से भी जुडी  रहती है। 
अर्थात,
हर किसी की किंचित 'हद' तय है।  
मगर 
अरे  वो बेख़ौफ़,बेदर्दी और वेशर्म !
अब 
उससे क्या कहें जिसकी 'नाक' ही नहीं।  


11 comments:

  1. कटु सत्य

    यदि ब्लॉग सम्बन्धी किसी जानकारी की ज़रूरत हो तो आप मेरा ब्लॉग देखें.
    'ब्लॉग्स पण्डित'
    http://blogspundit.blogspot.com/

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  2. हिन्दी चिट्ठाजगत में इस नये चिट्ठे का एवं चिट्ठाकार का हार्दिक स्वागत है.

    मेरी कामना है कि यह नया कदम जो आपने उठाया है वह एक बहुत दीर्घ, सफल, एवं आसमान को छूने वाली यात्रा निकले. यह भी मेरी कामना है कि आपके चिट्ठे द्वारा बहुत लोगों को प्रोत्साहन एवं प्रेरणा मिल सके.

    हिन्दी चिट्ठाजगत एक स्नेही परिवार है एवं आपको चिट्ठाकारी में किसी भी तरह की मदद की जरूरत पडे तो बहुत से लोग आपकी मदद के लिये तत्पर मिलेंगे.

    शुभाशिष !

    -- शास्त्री (www.Sarathi.info)

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  3. आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं.

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  4. नए चिट्ठे का स्वागत है.
    निरंतरता बनाए रखें.
    खूब लिखें, अच्छा लिखें.

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  5. हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

    वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

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  6. आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है आप हिन्दी में लिखते हैं खुशी की बात है आपकी कलम बहुत पैनी है
    हमारे ब्लॉग पर भी पधारें

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  7. सलाम-नमस्ते!
    ब्लॉग की दुनिया में हार्दिक अभिनन्दन!
    आपने अपनी व्याकुलता को समुचित तौर से व्यक्त करने का प्रयास किया hai.
    अच्चा लगा, इधर आना.

    फुर्सत मिले तो आ मेरे दिन-रात देख ले

    http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/

    http://hamzabaan.blogspot.com/

    http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

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  8. नए चिट्टे की बहुत बहुत बधाई, निरंतर सक्रिय लेखन से हिन्दी ब्लॉग्गिंग को समृद्ध करते रहें.

    आपका मित्र
    सजीव सारथी
    आवाज़

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  9. My sincere thanks to all of you for your good wishes. Was busy with some other works so could not visit this page on regular basis for a couple of weeks.

    Kindest regards,
    PCG

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  10. आपका स्वागत है इसी तरह लिखते रहें

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।