Friday, October 1, 2010

यूँ तो मसला कुछ भी न था, किन्तु माथुर साहब थे कि.... (व्यंग्य) !

आजादी के बाद देश की करीब ५६५ रियासतों को भारत गणराज्य में मिलाने हेतु हमारे देश के प्रथम उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री, लोह पुरुष सरदार पटेल ने जी-जान से अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी ! हैदराबाद के निजाम और जूनागढ़ के नवाब को छोड़, जम्मू कश्मीर ही एक ऐसी रियासत रह गई थी , जहां माथुर साहब की अपनी निजी उच्च आकांक्षाओं के चलते पटेल साहब के सारे प्रयास विफल गए ! २० अक्तूबर १९४७ को जब उत्तरी कश्मीर की तरफ से अनेक पठानी आताताइयों (कबालियों ) की मदद से पाकिस्तानी सेनायें कश्मीर में घुसी और माथुर साहब के पिछवाड़े पर जब जोर की पडी, तब जाकर माथुर साहब मदद को चिल्लाए ; परिणामत: करीब ३००० से अधिक भारतीय सैनिकों को अपने प्राणों की तत्काल आहुती देनी पडी, और तब से आज तक हर साल सेकड़ों की तादात में देते आ रहे है !

अब आ गया १९४९, बताते हैं कि मेरे ही जैसे कुछ सिरफिरे हिन्दुओं ने अपने हक़ के लिए लड़ते हुए उस खंडहर में भगवन राम और सीता की मूर्तियाँ रख दी थी, जो सदियों से वीरान पड़ा था, जहां कोई नमाज अता नहीं की जाती थी, और जिसे बाबर ने भगवान् राम के मंदिर को तोड़कर उसके ऊपर बनाया था! यूँ तो मसला कुछ भी न था, क्योंकि दुनिया जानती थी कि अयोध्या भगवन राम की जन्मस्थली है, उसी वक्त आपस में मिल बैठकर विवाद को सुलझाया जा सकता था, किन्तु माथुर साहब थे कि उन्हें तो अपनी दूकान चलानी थी ! उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि जो निर्माण सामग्री वे बेच रहे है, वह हिन्दू ने खरीदी या फिर मुसलमान ने ! अगर हम होते और हमें यह मालूम पड़ जाता कि ग्राहक जो सामग्री खरीदकर ले जा रहा है, उससे वह किसी के प्लाट पर जबरन कब्जा करके अपना ढांचा बनाएगा तो शायद उसे हम वह सामग्री कभी नहीं बेचते , ताकि वह निर्माण आगे चलकर किसी पर कहर न ढाए ! साथ ही उन्हें यह भी समझाते कि भाईसहाब जिस जमीन पर आप कब्जा कर यह निर्माण कर रहे है, एक दिन उसका मालिक अगर अपनी जमीन वापस मांगेगा तो आप क्या करेंगे ? लेकिन माथुर साहब को तो बिना यह सब देखे सिर्फ और सिर्फ अपनी दुकानदारी की चिंता थी; अत: वे सेक्युलर बनकर दुकान चलाते रहे ! नतीजन, देश को कई दंगे झेलने पड़े ! १९९२ हुआ, मुंबई के बम विस्फोट हुए, हजारों लोग मारे गए, देश की प्रगति अवरुद्ध हुई और अब घूम फिरकर १९४९ पर ही आ गए! इसे कहते है लौट के बुद्धू घर को आए, तभी प्यार से निपटा लिया होता तो...........किन्तु माथुर साहब थे कि ...... !

अब आया १९५५, श्री लक्ष्मण सिंह जंगपांगी चीन की सामरिक गतिविधियों पर गहरी पैनी नजर जमाये हुए थे, वे पहले भारतीय व्यापार अधिकारी थे, जिन्होंने चीन के इरादों की जानकारियाँ 1955 में भारत सरकार को भेजकर बता दिया था कि चीन अक्साइचिन से होकर सड़क बना रहा है, और उसके इरादे नेक नहीं लगते ! दिल्ली में बैठे माथुर साहब ने उनकी रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कि यह रिपोर्ट निहायत बेहूदा है ! इस अनदेखी से चीन ने अक्टूबर 1962 में भारत पर आक्रमण कर लद्दाख-नेफा क्षेत्र पर कब्जा कर लिया ! इस युद्ध में 1383 भारतीय सैनिक शहीद हुए, 3968 बंदी बनाये गये, 1696 लापता रहे!(वो भी फिर कभी नहीं लौटे, अभी हाल में हिमांचल के रहने वाले ऐसे ही एक लापता सैनिक का शव ४८ साल बाद मिला ) युद्ध के बाद लक्ष्मण सिंह जंगपांगी की रिपोर्ट पर भारत सरकार का ध्यान जाना स्वाभाविक था, फिर उस रिपोर्ट के आधार पर सुरक्षा के उपाय सुदृढ़ किये गये, और श्री जंगपांगी को ‘पद्म श्री’ से अलंकृत किया गया! यानि माथुर साहब के पिछवाड़े पर एक और.... उसकी वजह यह थी कि जब सीमा पर तैनात कमांडर ने वहां से माथुर साहब को दिल्ली फोन कर बताया था कि साहब वे (चीनी सैनिक) हमसे करीब १००० मीटर की दूरी पर आ गए है, क्या हम फायर खोल दे ! माथुर साहब इधर से बोले 'नो फायर, हिन्दी चीनी भाई-भाई ' आदत से मजबूर जो ठहरे , साथ ही उनका अपना लक्ष्य तो सिर्फ अपनी दूकान चलाना था, यही सोच रहे थे कि अगर चीनी सैनिक सामने आकर भारतीय सैनकों को मार भी देंगे तो इनका क्या बिगड़ेगा, वो तो दिल्ली में बैठे थे ! कमांडर ने फिर फोन किया, सर, वे हमारे बिलकुल करीब आ गए है, फायर खोल दे ! माथुर साहब फिर बोले, नो फायर, हिन्दी चीनी भाई भाई .... और फिर क्या हुआ, सभी जानते है!

फिर १९६५ आया ,७१ हुआ, उधर से कमांडर ने पूछा साहब, हम लाहौर से आगे बढ़ गए है, अदला-बदली में पाक अधिकृत कश्मीर ले ले वापस ? माथुर साहब ठहरे भले किस्म के इन्सान, उन्हें तो अपनी दुकानदारी चलानी थी और ग्राहक बनाए रखने थे ! उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वह हिन्दुस्तानी है या फिर पाकिस्तानी ! बोल दिया , नहीं हम शान्ति के दूत है, वापस आ जाओ ! उनके ९१००० कैदियों को भी लौटा दो, वे अगर हमारे देश के बंदी सैनिकों को न लौटाएं तो कोई बात नहीं, देश में वैसे भी आवादी बहुत है !

अब आ गया १९९९, कारगिल में एक कश्मीरी गड़रिये बालक द्वारा पाकिस्तानी घुसपैठ की जानकारी दिये जाने तक पाकिस्तान की सात बटालियनें वहाँ की चोटियों पर मोर्चा संभाल चुकी थी ! माथुर साहब दिल्ली में बैठे यही कहते रहे कि वहाँ पर ऐसा कुछ नहीं है, सब ठीक-ठाक है, परिणामस्वरूप देश ने अपने करीब ६०० जांबाज खोये, युद्ध से पहले कई कमांडरों ने माथुर साहब को यह उदाहरण देकर सचेत भी किया था, कि एक पिद्दी सा पाकिस्तान हमारी तरफ आंखे तरेर रहा है ! ठीक है हमें शांति का पथ नहीं छोडना चाहिए, लेकिन पड़ोसी को हमेशा यह अहसास दिलाते रहना चाहिए कि हम भी काफी दमखम रखते है , और मुहतोड़ जबाब दे सकते है! अगर ऐसा नहीं करोगे तो दूसरा आपको कमजोर समझता है , और तो और मोहल्ले का कबाड़ी भी घर के आगे से गुजरते हुए नसीहत दे जाता है कि माथुर साहब, सड़क में पानी फेंककर उसे गीला मत किया करो ! लेकिन माथुर साहब ठहरे पक्के बनिया, उन्हें तो अपनी दुकानदारी से मतलब था और इस बात से उन्हें क्या फर्क पड़ने वाला था, उनकी बला से भले ही कबाड़ी भी धमकी दे जाए, मगर उनकी दुकान से कभी-कभार सामान खरीद ले, बस ! आत्मसम्मान गया भाड़ में !

इस बीच संसद और मुंबई पर भी हमला हुआ, लेकिन माथुर साहब मस्त होकर अपनी दुकानदारी चलाते रहे ! मुझे याद है कि बहुत साल पहले जब पूर्व रक्षामंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडेज ने चेतावनी दी थी कि चीन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है, तो माथुर साहब, उनकी बात पर जोर से हँसे थे और उनके बयान को बेहूदा बताकर यह कहा था कि वे हमारे पड़ोसियों से देश के रिश्ते बिगाड़ना चाहते है ! मगर अब वही माथुर साहब चिलपों मचाने लगे है जब चीन ने हमें चारों तरफ से घेर लिया है ! उन्हें भी अपनी दुकानदारी खतरे में नजर आती है ! शांति किसे नहीं अच्छी लगती, मगर चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों की हकीकत को आखिर कब तक नजरअंदाज करोगे ? अबके तो माथुर साहब यह भी पक्का माने कि भले ही वो दिल्ली में बैठे हो लेकिन जिस दिन होगा तो माथुर साहब का भी नंबर लगेगा ! और अगर ऊपर वाले की कृपा हुई तो बौडर पर तैनात हमारे सैनिकों का नंबर तो बाद में आयेगा, दिल्ली के वातानुकूलित कमरे में बैठे माथुर साहब का नंबर पहले लगेगा ! भाटिया साहब , पूछ रहे थे कि आपके कल के लेख का क्या हुआ ? तो भाटिया साहब, मैंने वह बेहूदा लेख ब्लॉग से निकाल कर सुरक्षित रख दिया, कभी जरुरत पडी तो फिर पोस्ट करूंगा, क्योंकि मुझे भी लगा कि कोर्ट के फैसले से कुछ अति उत्साहित होकर मैंने हडबडी में वह लिख दिया है , इतनी जल्दी नहीं मचानी चाहिए थी, क्योंकि शांति बनाए रखने का ठेका माथुर साहब के पास था! मुझे, एक और सम्मानित माथुर साहब की बात अच्छी लग गयी थी ! अब तो यही दुआ करूंगा कि देश में अमन चैन बना रहे, देश खूब प्रगति करे बस, अदालती फैसलों में तो फेर बदल होता ही रहता है!

28 comments:

  1. ये माथुर साहब हैं कौन वैसे :)

    ReplyDelete
  2. गजब लिखा है !...वाह !

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  4. बहुत ही विचारणीय सटीक पोस्ट...आभार

    ReplyDelete
  5. बाकि तो ठीक है लेकिन यह माथुर साहब कौन है? जरा खुलासा तो करों नहीं तो सारे ही माथुर आपसे खफा हो जाएंगे।

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन व्यंग्य।

    ReplyDelete
  7. आप सभी का आभार , @ ajit gupta जी बस आप यूँ समझिये कि ये इस किरदार में एक काल्पनिक माथुर साहब है !

    ReplyDelete
  8. कुछ अंदाजा तो है हमें भी

    ReplyDelete
  9. @जम्मू कश्मीर ही एक ऐसी रियासत रह गई थी ,....

    इस लाइन से बेसिक इंट्रोडकशन मिल गया :)

    ReplyDelete
  10. gajab kaa lekh---vyangya...chaliy ab maathur saaheb se ummid karate hain ki sachmuch me desh ke hit me sochenge.

    ReplyDelete
  11. ‘ अब तो यही दुआ करूंगा कि देश में अमन चैन बना रहे,’
    ख्याली पुलाब पकाना छोड़दीजिए :)

    ReplyDelete
  12. अच्छी जानकारी देता लेख ...काश ऐसे पक्के बनिए माथुर से देश बच सके ...

    व्यंग में लप्रेट कर सच्चाई बताई है ..आभार

    ReplyDelete
  13. माथुर साहब का राज़ तो समझ आ रहा है ।
    करारा व्यंग है ।
    अमन की आशा तो हम भी करते हैं ।

    ReplyDelete
  14. विचारणीय सटीक पोस्ट...

    ReplyDelete
  15. जानकारी भरी अच्छा व्यंग पढ़ा कर अच्छा लगा | पर इस बार माथुर साहब को ऐसा लगाइये की उनकी दुकानदारी हमेसा के लिए बंद हो जाये |

    ReplyDelete
  16. भई वाह.... क्या मस्त और सटीक व्यंग लिखा है ...!!!
    आज भी बहुत सारे माथुर साब हैं हिन्दुस्तान में .......
    जिन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी फिक्र रहती है ....
    इनके पास देश के बारे में सोचने का न तो वक़्त है और न ही
    कोई इरादा .
    आभार ....

    ReplyDelete
  17. अब तो यही दुआ करूंगा कि देश में अमन चैन बना रहे, देश खूब प्रगति करे बस, अदालती फैसलों में तो फेर बदल होता ही रहता है

    भाई गोदियाल जी, आपने जो बाते कहीं, जाने अनजाने सब समझ में आ गई, हमने पहले भी अमन-चैन की चाहत में बहुत कुछ दिया है और अभी भी दे रहे हैं पर न अब तक अमन चैन मिला था और अब मिलेगा या नहीं देखना है.......अगर जिंदगी रही तो.............

    सटीक लेख पर हार्दिक बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

    ReplyDelete
  18. इतनी धुलाई किसी कपड़े की हो तो वह अपना रंग छोड़ कफनवत हो जायेगा, पर माथुर जी।

    ReplyDelete
  19. माथुर सहब का भुर्ता और चटनी बहुत स्वादिस्ट था गोदियाल साहब..

    ReplyDelete
  20. जनाब यह माथुर का बच्चा बहुत तंग कर रहा है,कई बार मरा लेकिन नरक से भी धक्के दे कर निकाल दिया, यह बात मुझे भुट्टो ने बताई है

    ReplyDelete
  21. भुट्टो की नरक मे छोले भटुरे की रेहडी है

    ReplyDelete
  22. माथुर साहब को परनाम..... बहुत ग़ज़ब का लिखा है आपने....

    ReplyDelete
  23. यी माथुर साहब कहीं कलमान्दी तो नहीं ?

    ReplyDelete
  24. आज के आलेक में तो बहुत जम कर धुलाई की है!
    --
    बढ़िया व्यंग्य!

    ReplyDelete
  25. .
    .
    .
    हा हा हा हा,

    बेचारे माथुर साहब...:(

    गोदियाल साहब पीछे पड़े हैं इस बार...

    पिछवाड़ा बचेगा भी या नहीं, पता नहीं !


    ...

    ReplyDelete
  26. ताऊ माथुर है क्या?:)

    बहुत लाजवाब व्यंग.

    रामराम

    ReplyDelete
  27. भई गोदियाल जी, सचमुच गजब का लिखा है ,आपने तो माथुर साहब को धो डाला

    इस पोस्ट को पढकर मेरे मन में तो ये आया की इन माथुर साहब को तो गोली से उड़ा देना चाहिए


    वैसे ये हैं कौन ??


    महक

    ReplyDelete
  28. माथुर साहब सही धर्मनिरपेक्ष, फ़रमाबरदार, महानुभाव, नौकरशाह, देशभक्त, शान्तिप्रिय, न्यायप्रिय
    नागरिक हैं, हमने मान लिया।

    गोदियाल जी, आप व्यंग्य भी बहुत धारदार लिखते हैं।

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।