इधर जोर-शोर से
तैयारियां चल रही थी
फाइनल टचिंग की,
सरकारी स्तर पर
और उधर,
खेल गाँव में
सांप जी लेटे हुए थे,
एक अफ्रीकी ऐथेलीट के बिस्तर पर।
अफ्रीकी ऐथेलीट
उसे देखकर बोला,
ये तो भैया मेरे साथ
सरासर रंग-भेद है,
मुझे भी लगता है
कि अबके इस
कॉमन वेल्थ के खेल में कोई बड़ा छेद है।
तभी रूम अटेंडेंट
दौड़ा-दौड़ा
उसके पास जाकर बोला,
नहीं भैया जी, अबके अद्भुत
ये खेल निराले है,
पांच साल में
सत्तर हजार करोड़ खर्च कर ,
हमने सांप और संपेरे ही तो पाले है।
तैयारियां चल रही थी
फाइनल टचिंग की,
सरकारी स्तर पर
और उधर,
खेल गाँव में
सांप जी लेटे हुए थे,
एक अफ्रीकी ऐथेलीट के बिस्तर पर।
अफ्रीकी ऐथेलीट
उसे देखकर बोला,
ये तो भैया मेरे साथ
सरासर रंग-भेद है,
मुझे भी लगता है
कि अबके इस
कॉमन वेल्थ के खेल में कोई बड़ा छेद है।
तभी रूम अटेंडेंट
दौड़ा-दौड़ा
उसके पास जाकर बोला,
नहीं भैया जी, अबके अद्भुत
ये खेल निराले है,
पांच साल में
सत्तर हजार करोड़ खर्च कर ,
हमने सांप और संपेरे ही तो पाले है।
‘पांच साल में ७०००० करोड़ रूपये खर्च करके,
ReplyDeleteहमने सांप और संपेरे ही तो पाले है’
सच कहा भैया आपने :)
:):) बहुत सटीक व्यंग ...आस्तीन में भी पाले हैं :)
ReplyDeleteबहुत सटीक व्यंग
ReplyDeleteसहमत है जी आप से
ReplyDeleteगजब,गजब, तीखी मार
ReplyDeleteबेचारे साँपों को दोष मत दो ....... सटीक व्यंग
ReplyDeleteबेचारे साँपों को दोष मत दो ....... सटीक व्यंग
ReplyDeleteसर वैसे ही इस देश को सांप सपेरों नाग नागिनों का देश कहा जाता है .. मानलो कोबरा खेल गाँव में पहुँच गया तो उसने क्या बुरा किया ...हा हा हा सामयिक सटीक रचना ...
ReplyDeleteसन्नाट व्यंग।
ReplyDeleteएक अंधड़ कॉमनवेल्थ गेम्स में भी चल रहा है। किसी के रोके न रूक सकेगा। यह भी उसी की एक झांकी है। आपने बिल्कुल सही आंकी है।
ReplyDeleteगोदियाल जी..
ReplyDelete.........बहुत सटीक व्यंग
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत से लोगों के भरोसे को आपने ठेस पहुँचाई है!! ज़रा सम्भल के!!! वर्ना लोग तो माने बैठे हैं कि इससे हमारा मान बढ़ा है और हमारे शहर को एक विश्व स्तर का शहर कहलाने का मौक़ा.. ख़ैर सी.आई. डी. की फ़ाइनल रिपोर्ट हमारे ब्लॉग पर ज़रूर देख आएँ!!
ReplyDeleteहरामी का पट्ठा साला -बस अब उसी को बदनाम करना बच गया था भारत को -अबे ******* फिर कहाँ गया वो सांप ..**** वे तुम्हारी **** में घुस गया ?
ReplyDeleteसारी गोदियाल साहब उस अफ्रीकी से इस तराह बात करने के लिए -साला सिबलिंग राईवलरी का मारा लग रहा है !
बहुत सटीक व्यंग
ReplyDeleteहमने सांप और संपेरे ही तो पाले है !!
ReplyDeleteवाह वाह...लाजवाब..अदभुत हैं आपके ये सटीक बाऊंसर. मारते रहिये.
रामराम.
अरे वा इस तैयारी पर भी व्यंग्य ।
ReplyDeleteहमने सांप और संपेरे ही तो पाले है
ReplyDelete---------------------------
बहुत सटीक व्यंग
"पांच साल में ७०००० करोड़ रूपये खर्च करके,
ReplyDeleteहमने सांप और संपेरे ही तो पाले है !!"
सिक्सर, गोदियाल जी।
एकदम सटीक निशाना बैठाया महाराज!
ReplyDeleteयथार्थ और काव्य का सुंदर मिश्रण।
ReplyDeleteसच कहा गौदियाल जी .....कल रात ही दिल्ली से लौटा हूँ पर अभी भी इतना कुछ करने को बाकी है क्या कहूँ ... एरपोर्ट के बाहर अभी भी मिट्टी खुदी पड़ी है ... नये पेड़ लग रहे हैं .. पेड़ तो कनाट प्लेस में भी जैसे २-३ दिन पहले ही लगे हैं ... बदरपुर पुल तो १५ अगस्त को खुलना था अभी तक बंद है, रास्ते जाम हैं, मिट्टी के उँचे उँचे ढेर लगे हैं ... (इसी रास्ते से ज़्यादातर सैलानी ताज महल जाएँगे) ....
ReplyDeleteपांच साल में ७००००
ReplyDeleteकरोड़ रूपये खर्च कर ,
हमने सांप और
संपेरे ही तो पाले है !!
गज़ब्……………बेहतरीन व्यंग्य्……………करारी चोट्।
itna kharch karke saap aur sapere hee paale hai, sahi kaha aapne
ReplyDeleteha ha ha ha ha ha
पांच साल में ७००००
ReplyDeleteकरोड़ रूपये खर्च कर ,
हमने सांप और
संपेरे ही तो पाले है !!
Bitter truth !
You beautifully defined the current state of our country.
.
बहुत ही धारदार रहा!
ReplyDelete--