नकारात्मक ख़बरों के लिए कुछ बिके हुए भारतीय मीडिया की तो मैं नहीं जानता, मगर मुझे भी मेरे कुछ दोस्त यह सलाह देते है कि मैं बहुत ज्यादा नकारात्मक लिखता हूँ। मैं उनकी बात को सिरे से नकारता भी नहीं, क्योंकि मैं कोई सतयुगी साधू-महात्मा नहीं ( कलयुगी तो ज्यादातर चंद्रास्वामी के भक्त है ) । मगर मेरा एक मासूम सा सवाल हमेशा रहता है कि वैसे तो मेरा भी मन सकारात्मक लिखने का करता है मगर जब आपके आसपास सभी कुछ नकारात्मक हो तो आप सकारात्मक सोचने की उम्मीद कैसे कर सकते है, जब तक कि अगला अपनी क्रियाशैली न बदल ले ?( यानि खुद भी नकारात्मक करके सकारात्मक बनने का ढोंग रचें )
समयाभाव के कारण बहुत लंबा नहीं लिखूंगा, मगर एक वाकये से अपनी इस नाकारात्मकपन का जस्टिफिकेशन देना चाहूँगा।
मैं मूलत: उत्तराखंड से हूँ , स्वाभाविक है कि मेरे बहुत से करीबी उत्तराखंड में है, जिनसे मेरी रोज बात होती रहती है। दुनिया जानती है कि इसबार मानसून ने उत्तराखंड में क्या कहर बरपाया है। मगर हम दिल्लीवासी नहीं जानते, क्योंकि हम तो कॉमनवेल्थ गेम की तैयारियों में लगे है, उन गेम की जिसने पहले ही देश के माथे पर एक बड़ा कलंक लगा रख छोड़ा है। मैं जानता हूँ कि हमारे देश के ज्यादातर नेता तो इस कदर बेशर्म है कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि उन्हें तो सिर्फ पैसा कमाना है। कॉमन वेल्थ नहीं तो ड्रेनेज सिस्टम ही सही, कमा लेंगे, लेकिन मुझे अफ़सोस इस बात का है कि हमारे ज्यादातर हिन्दुस्तानी इनसे बेहतर नहीं।
पचास रूपये कप चाय, यह मत सोचिये कि उत्तराखंडी मौके का नाजायज फ़ायदा उठा रहे है । तीर्थयात्रियों से एक कप चाय की कीमत में, वे कम से कम हम दिल्लीवासियों से बेहतर ईमान के लोग है। लेकिन उनकी मजबूरी है कि वे ऊँची नीची पहाडी पगडंडियों पर कई किलोमीटर पैदल चलकर उन यात्रियों के चाय का इन्तेजाम कर रहे है। साथ ही उन्हें ११० रूपये कीलो आलू और १३० रूपये कीलों प्याज खरीदना पड़ रहा है , क्योंकि पिछले १० दिनों से सभी सड़क मार्गों के टूट जाने से माल की सप्लाई ठप्प है । और यह पता कहाँ हो रहा है? उस मुख्य सड़क पर जिसको मेनटेन करने का जिम्मा केंद्र द्वारा संचालित उस सीमा सड़क संघठन के जिम्मे है जो अपनी लाख कोशिशों के बावजूद भी सड़क नहीं खोल पाया क्योंकि वह भी कल-पुरजो की कमी से जूझ रहा है। क्योंकि देश के ७०००० करोड़ रूपये तो आपकी सरकार ने दिल्ली में लगा दिए । हजारों यात्री भूखे प्यासे पिछले १० दिनों से उत्तराँचल की ठण्ड में सड़कों पर रात गुजार रहे है। हमारे प्रधानमंत्री जी, जब देश की नाक़ कट चुकी, देशी और अन्तराष्ट्रीय मीडिया की वजह से तब जाकर चेत रहे है, आज तक क्या सोये थे ? देश के हर नागरिक ने टैक्स देकर इन्हें यह आयोजन करने की जिम्मेदारी सौंपी थी, अब अगर ये ठीक से नहीं अपनी जिम्मेदारी निभा पाए तो क्या प्रधानमंत्री की इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं बनती, जो अब जाके वे खुद को भला मानुस साबित करना चाहते है ? और आप मुझे कहते है कि सकारात्मक सोच रखो ???????????
इन लिंकों पर जरूर एक नजर डालियेगा;
हम क्या सोचकर सकारात्मक सोच रखे ?देशवासियों ने अपने धन का हिस्सा इस आयोजन के लिए टैक्स के तौर पर दिया, दिल्लीवासियों ने पिछले पांच साल से मुसीबतें उठाई, उसके बाद भी आज देश की जो थू -थू हो रही है उसका जिम्मा कौन लेगा ? सी एन एन की साईट पर जो कुछ लोगो के रिमार्क कॉमन वेल्थ के सिलसिले में है उनमे से एक यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ; समयाभाव के कारण बहुत लंबा नहीं लिखूंगा, मगर एक वाकये से अपनी इस नाकारात्मकपन का जस्टिफिकेशन देना चाहूँगा।
मैं मूलत: उत्तराखंड से हूँ , स्वाभाविक है कि मेरे बहुत से करीबी उत्तराखंड में है, जिनसे मेरी रोज बात होती रहती है। दुनिया जानती है कि इसबार मानसून ने उत्तराखंड में क्या कहर बरपाया है। मगर हम दिल्लीवासी नहीं जानते, क्योंकि हम तो कॉमनवेल्थ गेम की तैयारियों में लगे है, उन गेम की जिसने पहले ही देश के माथे पर एक बड़ा कलंक लगा रख छोड़ा है। मैं जानता हूँ कि हमारे देश के ज्यादातर नेता तो इस कदर बेशर्म है कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, क्योंकि उन्हें तो सिर्फ पैसा कमाना है। कॉमन वेल्थ नहीं तो ड्रेनेज सिस्टम ही सही, कमा लेंगे, लेकिन मुझे अफ़सोस इस बात का है कि हमारे ज्यादातर हिन्दुस्तानी इनसे बेहतर नहीं।
पचास रूपये कप चाय, यह मत सोचिये कि उत्तराखंडी मौके का नाजायज फ़ायदा उठा रहे है । तीर्थयात्रियों से एक कप चाय की कीमत में, वे कम से कम हम दिल्लीवासियों से बेहतर ईमान के लोग है। लेकिन उनकी मजबूरी है कि वे ऊँची नीची पहाडी पगडंडियों पर कई किलोमीटर पैदल चलकर उन यात्रियों के चाय का इन्तेजाम कर रहे है। साथ ही उन्हें ११० रूपये कीलो आलू और १३० रूपये कीलों प्याज खरीदना पड़ रहा है , क्योंकि पिछले १० दिनों से सभी सड़क मार्गों के टूट जाने से माल की सप्लाई ठप्प है । और यह पता कहाँ हो रहा है? उस मुख्य सड़क पर जिसको मेनटेन करने का जिम्मा केंद्र द्वारा संचालित उस सीमा सड़क संघठन के जिम्मे है जो अपनी लाख कोशिशों के बावजूद भी सड़क नहीं खोल पाया क्योंकि वह भी कल-पुरजो की कमी से जूझ रहा है। क्योंकि देश के ७०००० करोड़ रूपये तो आपकी सरकार ने दिल्ली में लगा दिए । हजारों यात्री भूखे प्यासे पिछले १० दिनों से उत्तराँचल की ठण्ड में सड़कों पर रात गुजार रहे है। हमारे प्रधानमंत्री जी, जब देश की नाक़ कट चुकी, देशी और अन्तराष्ट्रीय मीडिया की वजह से तब जाकर चेत रहे है, आज तक क्या सोये थे ? देश के हर नागरिक ने टैक्स देकर इन्हें यह आयोजन करने की जिम्मेदारी सौंपी थी, अब अगर ये ठीक से नहीं अपनी जिम्मेदारी निभा पाए तो क्या प्रधानमंत्री की इसमें कोई जिम्मेदारी नहीं बनती, जो अब जाके वे खुद को भला मानुस साबित करना चाहते है ? और आप मुझे कहते है कि सकारात्मक सोच रखो ???????????
इन लिंकों पर जरूर एक नजर डालियेगा;
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aTrollsTroll what idiots decided to have the games in this dumpster of a country? 8 minutes ago | Like | Report abuse
svvansong Games will go on..throwing in two million children to clean up the village and venues, will also depute few thousands on clapping and trying kill dengue carriers. Should be done in next couple of days and please don't worry about the security..after creating much hype regarding security and safety t... more
Games will go on..throwing in two million children to clean up the village and venues, will also depute few thousands on clapping and trying kill dengue carriers. Should be done in next couple of days and please don't worry about the security..after creating much hype regarding security and safety threats, it was decided to put additional security through one of Kalmadai's friend's security firm. Bright side is that there wont be any complaints since no one is expecting anything now.
Can't do much about the falling buildings though (shouldn’t really complaint since these are built by 7-10 years old kids) but if someone gets hurt, we'll blame it on Pakistan. Can't care less about countries and athletes pulling out..we’ll win all the medals ourselves.
less
24 minutes ago | Like (1) | Report abuse
जो ये कहते हैं कि आप नकारात्मक लिखते हो उन्हें शायद नकारात्मक शब्द की बारहखडी भी नही मालूम. वास्तव में आप जो लिखते हैं वो एक आम आदमी का आक्रोश है. आपके लेखन से मुझको तो यही लगता है कि आपने मेरी सोच को शब्द दे दिये. मैं खुद इसी मंतव्य वाला हुं पर उसे शब्द नही दे पाता. आप इसे अभिव्यक्ति दे देते हैं तो अच्छा लगता है. आप तो ऐसे ही लिखते रहिये.
ReplyDeleteरामराम.
इस देश में कुछ लोगों को पोजिटिव सोचने की बीमारी भी होती है , जो किसी भी हद तक जा सकती है :))
ReplyDeleteएक ऊपर वाला लिंक ओपन नहीं हो रहा है
अजी आप की कलम मे एक आग हे, जो आज हम सब के दिलो मै जल रही है, ओर कोन कहता है कि आप नकारात्मक लिखते है, हम सलम करते है आप की कल्म को
ReplyDeleteगोदियाल जी
ReplyDeleteइसे नकारात्मक नही सच कहना कहते हैं और सच हमेशा ही कडवा होता है इसलिये उसे नकारात्मक कह दिया मगर हकीकत से कैसे मूँह मोडा जा सकता है ……………आज हर भारतीय सरकार की मनमानी से त्रस्त है और मजबूर भी ………………कर भी तो कुछ नही सकता ना अब सिवाय झेलने के……………आखिर इसी जनता ने तो कुर्सी दी थी तो आज उसकी कीमत भी तो वो ही चुका रही है और अगर कोई कुछ कहने की हिम्मत करता है तो उसे दबाने की कोशिश की जाती है………………मगर यही कहूँगी आप लिखते रहें हम सब आपके साथ हैं।
सच तो यह है कि जो दिखता है आप वो लिखते हैं ...अच्छा दिखेगा तो अच्छा भी लिखा जायेगा ...
ReplyDeleteहाँ लिखते अच्छा हैं बस ज़रा सच लिखते हैं :):)
ताऊ जी, सच कहता हूँ, आप जैसे इस ब्लॉग जगत के सीनियर मोस्ट ब्लोगर की उपरोक्त टिपण्णी से मुझे बहुत इंधन मिला ! Thanks a lot !!
ReplyDeleteहमेशा दीवाना कहा गया है ऐसे व्यक्ति को जो बुराइयों को सामने लाता हो....
ReplyDeleteगौरव जी, भाटिया साहब, वंदना जी एवं संगीता जी, इस उत्साहवर्धन और समर्थन के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया ! मैंने एक घोर निराशा के छोर पर अपना पक्ष रखा, क्योंकि मैं, सत्य से आँखे नहीं मूँद सकता, आप लोगो ने जो मनोबल बढाया वह किसी बिटामिन की तरह था मेरे लिए !
ReplyDeleteनकारात्मक या सकारात्मक .... ये तो नज़र-नज़र का फेर है :)
ReplyDeleteगौरव जी, पहले लिंक में कॉपी पेस्ट के वक्त कुछ उलटा सीधा हो गया था अब ठीक कर लिया है !
ReplyDeleteअजी आप की कलम मे एक आग हे, जो आज हम सब के दिलो मै जल रही है, ओर कोन कहता है कि आप नकारात्मक लिखते है, हम सलाम करते है आप की कल्म को
ReplyDeleteराज भाटिया जी के यही विचार मेरे मन में भी हैं आपके लेखन को लेकर ,इसलिए मेरी भी यही राये मानी जाये ,सचमुच सलाम है आपकी कलम को
महक
आपकी चिन्ता को मैं समझ सकता हूँ!
ReplyDelete--
सीधी अंगुलियों से घी नही निकलता है!
भाई वाह गोदियाल जी
ReplyDeleteपूरी ज़िम्मेदारी के साथ बढ़िया और सामयिक आलेख आपने दिया
धन्यवाद !
देश की अस्मिता की छाँह में धन की कमाई।
ReplyDeleteगोदियाल जी आप तो हमेसा ही सकारात्मक ही लिखते है लिखने व पढने क़ा नजरिया अलग-अलग होता है ---- सच तो हमेसा ही कड़वा होता है
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट क़े लिए धन्यवाद.
सकारात्मक प्रस्तुति ।
ReplyDeletekoun kis tareeke se leta hai ye usee par nirbhar hai......
ReplyDeletesach likhana bde guts kee baat hai...............
sarthak post Aabhar
१०० प्रतिशत सहमत ..... मूल मुद्दों पर नकारात्मक हर कोई है इस सरकार से ....
ReplyDeleteजो नकारात्मक सोच रखते हैं उनके लिए सकारात्मक बात भी नकारात्मक होती है | जैसे भ्रष्टों को भ्रष्ट कहना उनके लिए तो नकारात्मक ही हुआ |
ReplyDeleteपर अन्यों के लिए सकारात्मक हुआ |
बहरहाल ! बहुत अच्छी तरह से लिखे गए लेख के लिए बधाई | सार्थक लेखन के लिए साधुवाद |