Saturday, September 18, 2010

ख्वाइश !



मैंने कब ये चाहा 
कि मैं भी
बहुत बड़ा 'रिच' होता,
मेरी तो बस, 
इतनी सी ख्वाइश थी
ऐ जिन्दगी,
कि तुझमे भी एक
ऑन-ऑफ का स्विच होता,
जिसे मैं मन माफिक
जब 'जी' में आता,
जलाता और बुझाता।  

19 comments:

  1. चाह नहीं रिच हो जाऊं
    और सुरबाला को कार में बिठाऊं :)

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  2. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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  3. जब जी में आता,
    जलाता बुझाता !
    कुछ तो अपने
    मन माफिक कर पाता !!

    गजब कि पंक्तियाँ हैं ...

    बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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  4. कभी कभी हम सभी को एक स्विच की आवश्यकता महसूस होती है....

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  5. कभी कभी हम सभी को एक स्विच की आवश्यकता महसूस होती है....

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  6. यह स्विच मिल जाये तो हमें भी बता दीजियेगा।

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  7. वाह ,स्विच टू लिव ...

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  8. काश ऐसा संभव होता, मज़ा ही आ जाता..............

    वाह वाह बेहतरीन पोस्ट !

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  9. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

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  10. साँई इतना दीजिए जा में कुटुम्ब समाय!

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  11. जब जी में आता,
    जलाता बुझाता !
    कुछ तो अपने
    मन माफिक कर पाता !!


    काश ऐसा हो पाता.:)

    रामराम.

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  12. ऊपरवाला स्विच ओवर का ऑप्शन नहींदेता गोदियाल जी...वैसे आपकी ख्वाहिश पूरा हो एही हमरा कामना है!!

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  13. बहुत खूब । ऑन ऑफ़ का आइडिया बढ़िया है ।

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  14. बहुत ही शानदार! फोटो भी गज़ब का है......


    व्यंग्य: युवराज और विपक्ष का नाटक

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  15. ऐसा स्विच तो सभी ढूंढ रहे हैं......

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  16. गोदियाल जी, मिल जाये तो हमें भी बताना।

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  17. ऐ जिन्दगी,
    कि काश !
    तुझमे भी एक
    ऑन-ऑफ का स्विच होता,
    जब जी में आता,
    जलाता बुझाता !
    कुछ तो अपने
    मन माफिक कर पाता !


    --साथ में एक रिवर्स फारवर्ड का गियर. :)

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  18. बस अब इसी की कसर है ...स्विच ऑन ऑफ का भी आविष्कार हो ही जायेगा

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  19. sir ji, switch to aaj bhi hai, lekin kambaqt bijli aaye to sahi.

    good shot

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।