लगातार
बरसती ही जा रही
सावन की घटाएं हैं ,
बिखरी पड़ी
प्राकृतिक सौम्य छटाएं हैं ।
नतीजन
जीवन की हार्ड-डिस्क मे
कहीं नमी आ गई है,
ख़्वाबों की प्रोग्रामिंग सारी
भृकुटियाँ तन रहीं हैं,
हसरतों की टेम्पररी फाइलें भी
बहुत बन रही है।
समझ नही आ रहा कि रखू,
या फिर डिलीट कर दू,
'फ़ोर्मैटिंग' भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !
बहुत बन रही है।
ReplyDeleteसमझ नही आ रहा
कि रखू,
या फिर डिलीट कर दू !
फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !!
.....बहुत खूब, लाजबाब !
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
ReplyDeleteGuru Godiyal ki jai ho
ReplyDeleteआभार, संजय जी !
ReplyDeleteSammaan dene ke liye dhanyawaad
ReplyDeleteरखू,
ReplyDeleteया फिर डिलीट कर दू
....... आइडिया बढ़िया है ।
वाह बहुत ही जोरदार लगी आपकी यह रचना .... आभार
ReplyDeleteसमझ नही आ रहा
ReplyDeleteकि रखू,
या फिर डिलीट कर दू !
फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !
बहुत अच्छा लिखा है मजा आ गया पढ़कर...बहुत खूब
सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
ReplyDeleteये फ़ार्मेटिंग भी कम्बख्त लटाएं और जटाएं से कम तो नहीं :)
ReplyDeleteजीवन की हार्ड-डिस्क मे
ReplyDeleteकहीं नमी आ गई है।
प्रोग्रामिंग सारी
भृकुटियाँ तन रहीं हैं,
आज ज़िंदगी ही कम्प्यूटर बन गयी है
समझ नही आ रहा
ReplyDeleteकि रखू,
या फिर डिलीट कर दू !
फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !!
बहुत ही बढ़िया रचना है ........
इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??
बहुत खूब ... फॉर्मेटिंग भी तो आसान . ....
ReplyDeleteग़ज़ब का मोड़ दिया है रचना को ....
आज का अन्दाज़ बहुत पसन्द आया बन्धु !
ReplyDeleteवाह, क्या बात है !
ji,
ReplyDeletebilkul sahi keh rahe hai aap...
kunwar ji,
अह्सास हो ही रहा है
ReplyDeleteकि जिन्दगी बौरा गई है,
जीवन की हार्ड-डिस्क मे
कहीं नमी आ गई है।
वाह! क्या बात है..... कंप्यूटरवा शायरी.... बेहतरीन!
बहुत सही लिखा आपने, जीवन का पर्याय बन गया है ये कंप्य़ूटरवा.
ReplyDeleteरामराम
प्रकृति को फॉर्मेट करना इतना आसान ही हो जाता!
ReplyDeleteअह्सास हो ही रहा है
ReplyDeleteकि जिन्दगी बौरा गई है,
जीवन की हार्ड-डिस्क मे
कहीं नमी आ गई है।
अद्भुत प्रयोग! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
काव्य के हेतु (कारण अथवा साधन), परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
उलझन --बहुत खूब सूरत
ReplyDeleteहिंगलिश- ला- जबाब
धन्यवाद.
सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवायरस से बचा के रखिये ।
समझ नही आ रहा
ReplyDeleteकि रखू,
या फिर डिलीट कर दू !
फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !!
अपने कंप्यूटर पर ही आपका नियंत्रण हो सकता है .. प्रकृति के कप्यूटर पर किसी का नियंत्रण नहीं !!
आज के चर्चामंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से अवगत कराइयेगा।
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
anuthi abhivyakti!
ReplyDeletesubhkamnayen...
फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !!
ReplyDeleteअनदाजे बयाँ क्या कहने
और फिर फार्मेटिंग तो अंतिम विकल्प है
सुंदर कविता....... ग्वालियर में तो बीते ४८ घंटों से ही झमाझम बारिश हुई है। पूरा सावन तरसाने के बाद। बेहद सुकून मिला। हालांकि परेशानियां भी उठानी पड़ रहीं हैं। कल क्वींस बैटन रिले भी आई जिसका स्वागत और विरोध दोनों ही हुआ। ग्वालियर की रैन, रिले और रिश्ते की जानकारी के लिए आप मेरे ब्लॉग अपना पंचू पर पधार सकते हैं। स्वागत है आपका..........
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