Saturday, September 18, 2010

उलझन !





लगातार
बरसती ही जा रही
सावन की घटाएं हैं ,
बिखरी पड़ी 

प्राकृतिक सौम्य छटाएं हैं ।
नतीजन 

जीवन की हार्ड-डिस्क मे
कहीं नमी आ गई है,
ख़्वाबों की प्रोग्रामिंग सारी
भृकुटियाँ तन रहीं हैं,
हसरतों की टेम्पररी फाइलें भी
बहुत बन रही है।
समझ नही आ रहा कि रखू,
या फिर डिलीट कर दू,
'फ़ोर्मैटिंग' भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !

26 comments:

  1. बहुत बन रही है।
    समझ नही आ रहा
    कि रखू,
    या फिर डिलीट कर दू !
    फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !!

    .....बहुत खूब, लाजबाब !

    ReplyDelete
  2. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

    ReplyDelete
  3. रखू,
    या फिर डिलीट कर दू
    ....... आइडिया बढ़िया है ।

    ReplyDelete
  4. वाह बहुत ही जोरदार लगी आपकी यह रचना .... आभार

    ReplyDelete
  5. समझ नही आ रहा
    कि रखू,
    या फिर डिलीट कर दू !
    फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !

    बहुत अच्छा लिखा है मजा आ गया पढ़कर...बहुत खूब

    ReplyDelete
  6. सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.

    ReplyDelete
  7. ये फ़ार्मेटिंग भी कम्बख्त लटाएं और जटाएं से कम तो नहीं :)

    ReplyDelete
  8. जीवन की हार्ड-डिस्क मे
    कहीं नमी आ गई है।
    प्रोग्रामिंग सारी
    भृकुटियाँ तन रहीं हैं,

    आज ज़िंदगी ही कम्प्यूटर बन गयी है

    ReplyDelete
  9. समझ नही आ रहा
    कि रखू,
    या फिर डिलीट कर दू !
    फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !!

    बहुत ही बढ़िया रचना है ........

    इसे भी पढ़कर कुछ कहे :-
    आपने भी कभी तो जीवन में बनाये होंगे नियम ??

    ReplyDelete
  10. बहुत खूब ... फॉर्मेटिंग भी तो आसान . ....
    ग़ज़ब का मोड़ दिया है रचना को ....

    ReplyDelete
  11. आज का अन्दाज़ बहुत पसन्द आया बन्धु !

    वाह, क्या बात है !

    ReplyDelete
  12. ji,
    bilkul sahi keh rahe hai aap...

    kunwar ji,

    ReplyDelete
  13. अह्सास हो ही रहा है
    कि जिन्दगी बौरा गई है,
    जीवन की हार्ड-डिस्क मे
    कहीं नमी आ गई है।


    वाह! क्या बात है..... कंप्यूटरवा शायरी.... बेहतरीन!

    ReplyDelete
  14. बहुत सही लिखा आपने, जीवन का पर्याय बन गया है ये कंप्य़ूटरवा.

    रामराम

    ReplyDelete
  15. प्रकृति को फॉर्मेट करना इतना आसान ही हो जाता!

    ReplyDelete
  16. अह्सास हो ही रहा है
    कि जिन्दगी बौरा गई है,
    जीवन की हार्ड-डिस्क मे
    कहीं नमी आ गई है।
    अद्भुत प्रयोग! बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    काव्य के हेतु (कारण अथवा साधन), परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

    ReplyDelete
  17. उलझन --बहुत खूब सूरत
    हिंगलिश- ला- जबाब
    धन्यवाद.

    ReplyDelete
  18. सुंदर प्रस्तुति ।
    वायरस से बचा के रखिये ।

    ReplyDelete
  19. समझ नही आ रहा
    कि रखू,
    या फिर डिलीट कर दू !
    फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !!

    अपने कंप्‍यूटर पर ही आपका नियंत्रण हो सकता है .. प्रकृति के कप्‍यूटर पर किसी का नियंत्रण नहीं !!

    ReplyDelete
  20. आज के चर्चामंच पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

    ReplyDelete
  21. फ़ोर्मैटिंग भी तो कम्वख्त इतनी आसां नही !!

    अनदाजे बयाँ क्या कहने
    और फिर फार्मेटिंग तो अंतिम विकल्प है

    ReplyDelete
  22. सुंदर कविता....... ग्वालियर में तो बीते ४८ घंटों से ही झमाझम बारिश हुई है। पूरा सावन तरसाने के बाद। बेहद सुकून मिला। हालांकि परेशानियां भी उठानी पड़ रहीं हैं। कल क्वींस बैटन रिले भी आई जिसका स्वागत और विरोध दोनों ही हुआ। ग्वालियर की रैन, रिले और रिश्ते की जानकारी के लिए आप मेरे ब्लॉग अपना पंचू पर पधार सकते हैं। स्वागत है आपका..........

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।