Friday, September 17, 2010

शिकायत ऊपरवाले से

हे ऊपरवाले  !
इस दुनिया में,
स्वार्थीजन आपको
खूब अलंकारते है,
भगवान्,ईश्वर, अल्लाह, रब, खुदा
गॉड और न जाने 

किन-किन नामों से पुकारते है।  

निःसंदेह आप खेवनहार हो,
इस दुनिया के पालनहार हो,
खूब लुटाते हो अपने भक्तों पर,
आपकी कृपा हो तो घोड़े-गधे भी 

बैठ जाते है ताजो-तख्तों पर।  

मगर एक बात जो
मुझे अखरती है , माय बाप !
सिर्फ मेरी ही बारी
क्यों कंजूस बन जाते हैं आप ?

मुझे बताओ, ऐ ऊपर वाले !
मुझमे ही सारे गुण तुमने
पाइरेटेड क्यों डाले?
अरे, कम से कम 

लेबल तो निकाल देते,
कुछ नहीं था, तो यार, 

एंटी-वायरस तो ओरिजिनल डाल देते। 

17 comments:

  1. कांटे को कांटे से ही निकाला जाता है... पायरेटेड को पायरेटेड एंटीवायरस ही काम करेगा :)

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  2. वाह!
    बहुत खूब!!
    रचना की रचना और शिकायत बोनस में!
    यानि-
    आम के आम गुठलियों के दाम!

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  3. आपकी रचना पढकर बरबस हंसी छूटे जा रही है. गजब की शिकायत ढूंढी है आपने भी.:)

    रामराम.

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  4. क्या हौसला है सच को स्वीकारने का!!!

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  5. बहुत ही गूढ़ बात कही है।

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. प्रिय शकुनी ये किसका ब्लॉग है....

    महाराज ये ब्लॉग अंधड़ कहलाता है और आज इस पर शिकायत की आंधी चली है महाराज। पूरी कविता यों है........

    सुन्दर ! अति सुन्दर kavita hai . शिकायत वाजिब है। हमें भी बहुत सी शिकायतें रही हैं ऊपर वाले से। चलो अब कहीं और चलें....

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  8. यार, एंटी-वायरस तो ओरिजिनल डाल देते !!

    फिर मज़ा क्या आता ।

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  9. बहुत सुन्दर अर्थपूर्ण कबिता.
    धन्यवाद.

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  10. ’मुझको भी तू लिफ़्ट करा दे’
    गोदियाल जी, आज के समय में पायरेटिड वर्ज़न ज्यादा चलता है, चिंता मत करो।
    आपका नंबर भी आयेगा।
    मस्त लिखते हो, बॉस।

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  11. हा हा हा……………क्या शिकायत है।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।