Tuesday, September 7, 2010

कोई तन्हा न रहे !



घिर आये है बदरा घने, हो रही तेज बारिश भी,
दिल में इक कसक भी है, लब पे सिफारिश भी।  

शाम ये उल्फत भरी है, कहीं कोई तन्हा न रहे,
मायूस न हो किसी की , छोटी सी गुजारिश भी।  

गुजरें न किसी की शामे उदास, 'मयखाने' में,
दिल में जीने की तमन्ना हो, और ख्वाइश भी। 

सिर्फ खफा रहने से जिन्दगी बसर नहीं होती,
अर्जी में इंतिखाब भी रहे और फरमाइश भी।  

मिलता है हर किसी को हिस्से का ही मुकद्दर,
करें क्यों 'परचेत', तकदीर से आजमाइश भी।  

16 comments:

  1. उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ!!! इतना खुबसूरत एहसास और ई गालिबाना अंदाज़... मन मिजाज खुस हो गया पढकर.

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  2. आपका लेख भी आता है तो गौरतलब होता है
    कबिता की तो क्या बात है ----बहुत सुन्दर.

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  3. वाह , मौसम के अनुरूप । बढ़िया ।

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  4. पूरी रचना के एक एक शब्द का

    समूचा लब्बो-लुआब ये है भाई गोदियाल जी !

    कि आप बहुत ही समर्थ और सशक्त कलमकार हैं


    बधाई ! बहुत बहुत बधाई !

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  5. गोदियाल जी, ई आपके मूड को एकदम सूट नहीं करता है… वईसे त हम जानते हैं कि आप नारियल के जईसा जेतना कड़ा होकर अपना पोस्ट लिखते हैं मन से ओतने कोमल हैं...लेकिनआज त कोमलता बरस रहा है... बने रहिए, बनाए रहिए... एही वाला मूड!!

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  6. वाह जी बहुत ही सुंदर, धन्यवाद

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  7. बहुत खूब ...अब मूड कब बनेगा ?

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  8. वाह बहुत बढिया गोदियाल साहब,
    सार्थक लेखन के लिए बधाई

    साधुवाद

    लोहे की भैंस-नया अविष्कार
    ब्लॉग4वार्ता पर स्वागत है

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  9. अद्भुत लिखते हैं आप !

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  10. गोदियाल जी,
    बारिश का मौसम और लाल परी की संगत, क्या बात है!!
    आजमाईश करते रहना जी, हमारी शुभकामनायें।

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  11. कि शामें उल्फत भरी है, कोई तन्हा न रहे,
    मायूस न होवे कोई छोटी सी गुजारिश भी ....vaah...bahut hi badhiya.

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  12. बहुत खूब...बारिश और आपके मूड से बनी ये रचना प्रभावित करती है

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  13. कि शामें उल्फत भरी है, कोई तन्हा न रहे,
    मायूस न होवे कोई छोटी सी गुजारिश भी

    बहुत खूब....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।