घिर आये है बदरा घने, हो रही तेज बारिश भी,
दिल में इक कसक भी है, लब पे सिफारिश भी।
शाम ये उल्फत भरी है, कहीं कोई तन्हा न रहे,
मायूस न हो किसी की , छोटी सी गुजारिश भी।
गुजरें न किसी की शामे उदास, 'मयखाने' में,
दिल में जीने की तमन्ना हो, और ख्वाइश भी।
सिर्फ खफा रहने से जिन्दगी बसर नहीं होती,
अर्जी में इंतिखाब भी रहे और फरमाइश भी।
मिलता है हर किसी को हिस्से का ही मुकद्दर,
करें क्यों 'परचेत', तकदीर से आजमाइश भी।
उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ!!! इतना खुबसूरत एहसास और ई गालिबाना अंदाज़... मन मिजाज खुस हो गया पढकर.
ReplyDeletebahut khub badhai
ReplyDeleteआपका लेख भी आता है तो गौरतलब होता है
ReplyDeleteकबिता की तो क्या बात है ----बहुत सुन्दर.
वाह , मौसम के अनुरूप । बढ़िया ।
ReplyDeleteपूरी रचना के एक एक शब्द का
ReplyDeleteसमूचा लब्बो-लुआब ये है भाई गोदियाल जी !
कि आप बहुत ही समर्थ और सशक्त कलमकार हैं
बधाई ! बहुत बहुत बधाई !
गोदियाल जी, ई आपके मूड को एकदम सूट नहीं करता है… वईसे त हम जानते हैं कि आप नारियल के जईसा जेतना कड़ा होकर अपना पोस्ट लिखते हैं मन से ओतने कोमल हैं...लेकिनआज त कोमलता बरस रहा है... बने रहिए, बनाए रहिए... एही वाला मूड!!
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteवाह जी बहुत ही सुंदर, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खूब ...अब मूड कब बनेगा ?
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन!
ReplyDeleteवाह बहुत बढिया गोदियाल साहब,
ReplyDeleteसार्थक लेखन के लिए बधाई
साधुवाद
लोहे की भैंस-नया अविष्कार
ब्लॉग4वार्ता पर स्वागत है
अद्भुत लिखते हैं आप !
ReplyDeleteगोदियाल जी,
ReplyDeleteबारिश का मौसम और लाल परी की संगत, क्या बात है!!
आजमाईश करते रहना जी, हमारी शुभकामनायें।
कि शामें उल्फत भरी है, कोई तन्हा न रहे,
ReplyDeleteमायूस न होवे कोई छोटी सी गुजारिश भी ....vaah...bahut hi badhiya.
बहुत खूब...बारिश और आपके मूड से बनी ये रचना प्रभावित करती है
ReplyDeleteकि शामें उल्फत भरी है, कोई तन्हा न रहे,
ReplyDeleteमायूस न होवे कोई छोटी सी गुजारिश भी
बहुत खूब....