अज्ञानता और कमीनेपन की पराकास्ठा तब अपनी सारी हदे तोड़ देती है, जब मानव समाज में नगण्य कर्मावलम्बी परजीवी प्राणी क्रूरता, धृष्टता, झूठ और छल-कपट के बल पर अपनी आजीविका चलाने हेतु अज्ञान और अचिंतन के अन्धकार से भ्रमित निर्धन, शोषित और बौद्धिक कंगाल वर्ग के समक्ष खुद को उसका हितैषी और ठेकेदार प्रदर्शित कर, भय एवं ईश्वर के नाम से दिग्भ्रमित करने हेतु नए- नए तरीके खोजता है
अभी हाल में कहीं पर एक खबर पढ़ रहा था कि अकाल और भुखमरी से ग्रस्त सोमालिया के इस्लामिक जिहादियों, जिनको कि समुद्री डाकूओ (पाइरेट्स ) के नाम से अधिक जाना जाता है,और जिनमे से अल-कायदा से जुडा हुआ एक प्रमुख गुट है, अल-सबाब, जिसने सोमालिया में अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगो को गली-मुहल्लों में घूम-घूमकर लाउडस्पीकरों पर यह हिदायत दी है कि वे आगे से समोसा न खाएं, क्योंकि समोसा पश्चमी ईसाइयत की त्रिमूर्ति (Trinity - The Christian doctrine of the trinity defines God as three divine persons in one god ) का द्योतक है (जैसा कि आपको भी विदित होगा कि समोसा तिकोना होता है ), और ये खुदा के बन्दे तो सिर्फ एक ही अल्लाह को मानते है ! बहुत पहले ऐसी ही एक रोचक खबर फ्रांस के बारे में भी कहीं पढी थी कि वहाँ के मुस्लिम बहूल इलाकों में कुछ मुस्लिम छात्रों ने ज्यामिति (geometry ) पढने से इसलिए इनकार कर दिया था कि उसमे तिकोण, और क्रॉस जैसा उल्लेख आता है!
अब जब 'बेचारे' समोसे का उल्लेख इस विषय में आ ही गया है, तो बताना अनुचित नहीं होगा कि सादे और सरल तौर पर तो यह माना जाता है कि समोसे का खोजकर्ता पश्चमी समाज नहीं बल्कि भारतीय समाज था और मुगलकाल के प्रारम्भ से बहुत पहले से ही यह भारतीय हलवाइयों और समारोहों का एक लजीज पकवान माना जाता था, किन्तु कुछ इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं है और वे कहते है कि यह दसवीं और ग्यारहवीं सदी में ईरान में सर्वप्रथम इजाद हुआ था, और मुग़ल शासकों के दरवारी इतिहास में इसका बहुत उल्लेख मिलता है! खैर, इस विवाद से अलग यह कहना चाहूंगा कि दुनिया के अन्य प्रदेशों की भांति अफ्रीकी प्रदेशों में भी समोसा खूब बनाया जाता है जिसमे शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के समोसे बनाए जाते है, और लोग हलवाइयों की दुकानों पर और घरों में इसे बड़े चाव से खाते है!
अब मुख्य विषय पर आता हूँ ; इसे बहुत विस्तृत परिपेक्ष में उठाया गया विषय तो नहीं कहूंगा मगर हाँ, दो ख़ास वर्ग-क्षेत्रों की ऐसी बहुत सी समानताये है जिन्हें इस 'समोसा कूटनीति' के परिपेक्ष में एक ही दृष्ठीकोण से देखा जा सकता है ! छल-कपट, स्वार्थ और बौधिक दिवालियेपन की यह गंगा हमारे देश के प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड उड़ीसा, छतीसगढ़, और कुछ दक्षिणी राज्यों से होते हुए सोमालिया के रेगिस्तान में जाकर ख़त्म होती है! सूखा-ग्रस्त सोमालिया, कीनिया और इथियोपिया में आज जब खाद्य संकट अपने चरम पर पहुँच गया है, भूख और प्यास से वहां के लगभग सारे मवेशी और जानवर मर चुके है, करीब आठ लाख बच्चे और बतीस लाख स्त्री-पुरुष मौत के कगार पर खड़े है, संयुक्त-राष्ट्र संघ ने खतरे की घंटी बजा दी है!
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, अमेरिका, ब्रिटेन और कुछ पश्चिमी राष्ट्र मदद को आगे भी आये है किन्तु अपहरण, फिरौती और जबरन वसूली की मोटी रकम से मालामाल ये कुछ इस्लाम के ध्वज-वाहक यह नहीं चाहते कि वहाँ के अकाल-ग्रस्त लोगों तक कोई मदद पहुंचे ! उन्होंने पिछले करीब दो सालों से ही कोई भी पश्चिमी मदद लेने पर रोक लगा रखी है, और रोक को जारी रखने का फरमान भी सुना दिया है!
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, अमेरिका, ब्रिटेन और कुछ पश्चिमी राष्ट्र मदद को आगे भी आये है किन्तु अपहरण, फिरौती और जबरन वसूली की मोटी रकम से मालामाल ये कुछ इस्लाम के ध्वज-वाहक यह नहीं चाहते कि वहाँ के अकाल-ग्रस्त लोगों तक कोई मदद पहुंचे ! उन्होंने पिछले करीब दो सालों से ही कोई भी पश्चिमी मदद लेने पर रोक लगा रखी है, और रोक को जारी रखने का फरमान भी सुना दिया है!
ये लोग जोर देकर कहते है कि वहां कोई अकाल नहीं है ! जबकि हकीकत यह है कि ये लोग यह नहीं चाहते कि वहाँ के लोग भरपेट खाएं, समृद्ध हो ! यही सोमालियाई लोगो दर्दनाक कहानी है कि ये इस्लामिक ठेकेदार अपनी रोटियां सकने के लिए उन्हें अज्ञानता, कुरुरता, यातना और हमेशा युद्ध की भट्टी में झोंके रखना चाहते है! कितनी अजीब लगती है यह बात कि चाहे वह सोमालिया हो, पाकिस्तान हो या फिर अफगानिस्तान, ये इस्लामिक चरमपंथी एक तरफ तो पश्चमी राष्ट्रों, खासकर ब्रेटन और अमेरिका की मदद को हराम ठहराते है और दूसरी तरफ इन्ही पश्चमी राष्ट्रों से फिरौती की रकम लेने, अफगानिस्तान में ट्रकों में भेजी जाने वाली सामग्री को लूटने, ट्रक- ठेकेदारों को पश्चमी राष्ट्रों से मिलने वाली तय-शुदा राशि में से हिस्सा (जबरन वसूली ) लेने में इन्हें ज़रा भी गुरेज नहीं! साथ ही यह भी एक तथ्य है कि जब जनवरी १९९१ में अमेरिका के पिट्ठू इस देश की सत्ता पर काबिज राष्ट्रपति मोहमद सैद बर्रे परास्त हुए और उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंका गया और सोमालिया में वर्तमान अराजकता का दौर शुरू हुआ, उस वक्त सोमालिया के दो तिहाई हिस्से को अमेरिकी तेल कंपनियों कोनोको, अमोको,शेवारौन आयर फिलिफ्स को आबंटित किया हुआ था! कहने का तात्पर्य यह है कि यह क्षेत्र जो आज भुखमरी के कगार पर है यह कभी तेल संपदा से परिपूर्ण था, लेकिन वहाँ का शोषित वर्ग तब भी अकाल झेल रहा था और आज भी !
अब इस समोसा कूटनीति का एक और पक्ष भारत के सन्दर्भ में देखे ! जिन राज्यों का उल्लेख मैंने शुरू में किया, वहाँ की प्राकृतिक संपदा और वहाँ के आदिवासियों की दशा और वहाँ के हमारे बाम ठेकेदारों (माओवादियों और नश्लियों के आंका ) की स्थिति सोमालिया से ख़ास भिन्न नहीं है! सोमालियाई शोषित वर्ग की भांति इन राज्यों के आदिवासियों को भी इन आंकाओं द्वारा खुद को दमित और शोषित वर्ग की आवाज और हितैषी बताकर खूब लूटा जा रहा है ! यहाँ की युवतियों को ये तथाकथित माओ भक्त अपनी हवस का किस तरह शिकार बनाते है, उसका एक उदाहरण यहाँ देखिये!
स्कूलों, रेल पटरियों, सार्वजनिक भवनों, औषधालयों को तो ये उसी मानसिकता के तहत जिस मानसिकता में सोमालियाई इस्लामिक चरमपंथी सोमालियाई लोगो को मौत के मुह में धकेल रहे है, उड़ा चुके है! और फिर एक समानातर सरकार बनाकर ये परजीवी क्रूरता और धृष्टता का नंगा नाच खेल रहे है ! हाँ, इनमे और सोमालियाई चरमपंथियों में एक फर्क भी है, वह यह कि वहाँ ये चरमपंथी इसलिए पश्चमी एनजीओ को नहीं घुसने दे रहे कि उन्हें यह डर सताता है कि ये लोग मदद की आड़ में वहाँ के लोगो का धर्म परिवर्तन करा देंगे ! और यहाँ की स्थित यह है कि यहाँ ये लोग कुछ ख़ास एनजीओ को इसलिए इन इलाकों में घुसाते है, ताकि ये उनसे पैसे लेकर इन आदिवासियों का धर्म परिवर्तन करा सके! और यह बात उस वक्त भी उजागर हुई थी जब उडीसा में एक हिन्दू धर्म-गुरु की ह्त्या हुई थी ! पता नहीं, यह समोसा कूटनीति इन भोलेभाले अशिक्षित लोगो को किस मुकाम पर ले जाकर छोड़ेगी !
चित्र गूगल और इधर-उधर से साभार संकलित