है अनुयुग समक्ष, सकल संतापी,
त्रस्त सदाशय, जीवन आपाधापी,
बेदर्द जहां, है अस्तित्व नाकाफी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
दिन आभामय बीते, रात अँधेरी,
लक्ष्य है जिनका, सिर्फ हेराफेरी,
कर्म कलुषित, भुज माला जापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
कृत्य फरेब, कृत्रिम ही दमको,
पातक चरित्र, सिखाता हमको ,
अपचार की राह है, उसने नापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
धूर्त वसूले, हर बात पे अड़कर,
शरीफ़ न पाये, कुछ भी लड़कर ,
व्यतिरेक की आंच, उसने तापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
त्रस्त सदाशय, जीवन आपाधापी,
बेदर्द जहां, है अस्तित्व नाकाफी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
दिन आभामय बीते, रात अँधेरी,
लक्ष्य है जिनका, सिर्फ हेराफेरी,
कर्म कलुषित, भुज माला जापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
कृत्य फरेब, कृत्रिम ही दमको,
पातक चरित्र, सिखाता हमको ,
अपचार की राह है, उसने नापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
धूर्त वसूले, हर बात पे अड़कर,
शरीफ़ न पाये, कुछ भी लड़कर ,
व्यतिरेक की आंच, उसने तापी,
मुक्त हस्त जिंदगी, भोगता पापी।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-04-2016) को "मौसम की बात" (चर्चा अंक-2328) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " कर्म और भाग्य - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteक्या बात....
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