Monday, June 1, 2009

लघु कथा- आस और पडोस

नगर निगम द्वारा कुछ साल पहले ही नई विकसित की गई कालोनी अब तो लगभग भर चुकी है, लेकिन शुरु के दिनो मे काफी बिखरी-बिखरी सी थी । नेगी जी ने भी किराये के मकान की रोज की झझंटो से मुक्ति पाने के लिये हिम्मत कर एक मकान इस कालोनी मे खरीद लिया था । मकान की रजीस्ट्री अपने नाम करवा लेने के उपरान्त, एक शुभ मुहुर्त पर वे किराये के मकान से अपने इस नये घर मे शिफ़्ट हो गये।

जिस मुहल्ले मे उन्होने घर खरीदा था, उसमे उस दौरान मात्र छह-सात परिवार ही वहां पर रह रहे थे । ज्यादातर लोग नौकरी पेशा वाले ही थे, लेकिन कुछ खुद का व्यवसाय करने वाले लोग भी थे। कुछ परिवार पंजाबी, कुछ पहाडो के तथा कुछ देश के अन्य भागो से आकर बसे थे, नेगी जी के ठीक पडोस मे सरदार जसवन्त सिंह सपरिवार रहते है। उनका खुद का ट्रांसपोर्ट का धन्धा है और घर बैठकर ही वह यह धन्धा चलाते है । कुछ सालो तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा, लेकिन ज्यों-ज्यो बस्ती भरने लगी, समस्याओं के साथ-साथ लोगो के बीच आपसी तकरारें भी बढने लगी । उस समय अधिकांश लोगो के पास दुपहिया वाहन ही थे और कुछ के पास तो साइकिल भी नही थी, पूरे मोहल्ले मे मुश्किल से एक या दो लोगो के पास ही अपनी कारें थी । क्योंकि सरदार जी का टैक्सी ट्रासपोर्ट का धन्धा था इसलिये पूरी गली मे और खाली पडे प्लोटो मे उन्की ही गाडियां खडी रहती थी । गली मे छोटे प्लोट होने, अथवा यूं कहें कि नगर निगम द्वारा शुरु मे कम आय वर्ग के लोगो के लिये बनाई गई इस कालोनी मे मकानो के बीच की गलियों की चौडाई जहां सिर्फ़ बीस फुट थी, वहीं आमने-सामने लोगो द्वारा अपने घर के मुख्य गेटों के आगे गली मे लम्बे-लम्बे रैम्प निकाल दिये गये थे, और तो और कुछ ने तो बगीचे भी सडक मे बना डाले थे, अत: गली इतनी सिमट गयी थी कि उसमे अगर आमने-सामने दो कारें खडी हो जायें तो बीच से एक बाइक निकलनी भी मुश्किल हो जाती थी।

यहां एक बात और गौर फरमाने लायक है कि जहां सरदार जी, उनके ठीक सामने वाले और थोडी दूरी पर रहने वाला एक और पंजाबी परिवार, मुहल्ले मे जहां इन तीन पंजाबी परिवारो के बीच काफ़ी मित्रता और सहयोग था, वहीं गली मे बसे तीन-चार पहाडी मूल के परिवारों के बीच अक्सर आपसी कटुता ही रहती थी। वे लोग एक दूसरे को देखकर ही कूढ्ते रहते थे, और गढ्वाली-कुमाऊनी के अन्तर मे ही उल्झे रहते थे। एक ओर जहां पंजाबी लोग काफ़ी लम्बी-चौडी प्रस्नैलिटी के लोग थे, वहीं पहाडी लोग अमुमन औसत कद-काठी के थे, अत: अपनी बाचाल वाक क्षमता और इसी शारीरिक गुण के कारण वे अन्य लोगो पर हर वक्त हावी रहते। मुख्य सडक से गली मे घुसने के दो द्वार थे और जब कभी सरदार जी गाडी लेकर गली मे घुसते और अगर उन्हे किसी का दुपहिया भी सडक मे गलत ढंग से पार्क किया मिल जाये तो सरदार जी उसकी अच्छी खासी क्लास ले लेते थे, जबकि इसके ठीक उलट उनके अपने घर के आगे उनका एक लम्बा रैम्प था, फिर उस रैम्प के आगे वे एक कार खडी करते और चुंकि उनके सामने वाले घर मे जो पंजाबी परिवार रहता था, उनके पास कोई वाहन नही था, अत: वह इनका दोस्त होने के नाते, सरदार जी एक गाडी उनके रैम्प के ठीक आगे खडी कर देते थे।

एक बार इस बात से तंग आकर जब नेगी जी ने सरदार जी से कहा कि हमें अपनी बाइक गली से बाहर निकालनी मुश्किल पड जाती है, इसलिये आप या तो अपने घर के आगे का रैम्प तुडवाये या फिर इस तरह साथ-साथ दो गाडियां गली मे खडी न करें, तो इतना सुनते ही सरदार जी फैल गये। उन्होने कहा कि मैने गाडियां अपने और अपने दोस्त के घर के आगे पार्क की है, तुम्हारे नही । सरदार जी के वे ऊंचे स्वर-संवाद पूरी गली सुन रही थी, लेकिन कोई भी यह कहने नही आया कि जब तुम, हमें हमारे दुपहिया वाहनों को ठीक से पार्क करने की नसीहत देते फिरते हो तब आपका यह तर्क कहां चला जाता है ?


ज्यों-ज्यों दिन गुजरे, गली मे आवाजाही की समस्या बढ्ती गई । सयोग बस नेगी जी के पुराने दोस्त रावत जी भी उसी मुह्ल्ले मे मकान लेकर आ बसे ! स्वभाव से मिलनसार और तेज-तर्रार रावत जी को जब नेगी जी ने अपनी समस्या बताई तो उन्होने उन्हे उसका समाधान जल्दी ढुढने का भरोसा दिलाया। उन्होने नेगी जी से मिलकर पहले यह पता लगाया कि पूरे मुह्ल्ले मे कितने पहाडी लोग रहते है। कुल मिलाकर तीस परिवार पहाडी लोग के थे, उसके बाद उन्होने पचास रुपये की सदस्यता पर उनकी एक उत्तरांचल विकास समिति बना डाली। धीरे-धीरे सभी तीस परिवार उस समिति से जुड गये और उन सभी परिवारो के आपसी मेल-जोल बढ गया। बस फिर क्या था, पह्ले से पूरा खाका बनाये रावत जी ने अपनी रणनीति उन्हे समझा दी, और अपनी कम्पनी से दो पुराने बडे ट्रक लाकर उस मुह्ल्ले की गली के दोनो मुहानो पर इस तरह खडे कर दिये कि सिर्फ़ पैदल लोग और दुपहिया वाहन ही निकल सके। सौभाग्य बस, गली के मुहाने पर के दोनो तरफ़ के मकान पहाडियों के ही थे ।

बस, फिर क्या था, सरदार जी की गली के अन्दर की गाडियां अन्दर और बाहर की बाहर ही रह गयी थी। सरदार जी यह सब देख तिलमिला उठे और हल्ला करते हुए जब वहां पहुचे तो सभी तीस के तीस पहाडी परिवार भी वहां इकठ्ठा होकर एक टका सा जबाब सरदार जी को दे गये कि उन्होने भी ट्रक अपने घर के आगे खडा कर रखा है, तुम्हारे नही। भन्नाये हुए सरदार जी पास के थाने पहुच गये और पुलिस के दो सिपाहियों को लेकर आ गये, मगर पहले से तैयार सभी तीस परिवारों ने उन्हे घेर लिया, अब बात ऊपर तक पहुच चुकी थी। जब आला अधिकारी पहुचे और दोनो पक्ष की बातें सुनी तो उन्होने सीधे-सीधे सरदार जी को दोषी ठहराया और उन्हे हिदायत दी कि वे रिहायस वाली जगह से अपना धन्धा नही चला सकते, क्योंकि यह गैर-कानूनी है। यह सुनकर सरदार जी की घिग्घी बंध गयी।

अगले दिन शाम को जब नेगी जी दफ़्तर से लौटे तो सरदार जी गेट पर हाथ जोडे खडे थे, ज्यों ही नेगी जी अपनी बाइक से उतरे, सरदार जी ने अदब से उन्हें सतश्रीकाल बोला और कहना शुरु किया ; नेगी जी, तुस्सी हम पर इक मेहरबानी करदो जी, रात को बाहर सड़क पर गाडी छोड़ने से चोरी का डर है जी, अतः आप हमें सिर्फ इतनी अनुमति दे दो की हम रात १० बजे बाद गाडियों को गली में खड़ी कर सके और जी हम सबेरे पांच बजे से पहले-पहले सारी गड्डी बाहर निकाल देंगे जी पांच बजे बाद आप लोगो को गली एकदम किलियर मिलेगी जी।

नोट: कहानी किसी के प्रति दुराग्रह से प्रेरित नही है, बल्कि यह दर्शाने के लिये है कि एकता मे कितनी शक्ति होती है ।

3 comments:

  1. good story, in real life we face this problem due to only that "jane do" or "chhodo yaar"

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  2. अच्छी कहानी है व प्रेरक भी।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।