Monday, June 8, 2009

लघु कथा- बुरी नजर वाला !

प्राइवेट नौकरी में उसकी तनख्वाह बहुत कम थी । घर में दो बच्चे पढने वाले थे, और महीने के आखिर में तनख्वाह में से मुश्किल से बच्चो की फीस निकाल पाते थे । कमाई का और कोई जरिया भी न था, उस पर आये दिन बच्चो के स्कूल से नई-नई डिमांड । बड़े शहर में घर से दफ्तर भी काफी दूर था, और वेतन में से एक अच्छी-खासी रकम बस के किराये पर ही खर्च हो जाती थी। वह हर समय यही कोशिश करता रहता कि किसी तरह किराए के खर्च को न्यूनतम रख सकू ।

एक सुबह बस से वह अपने घर से अपने दफ्तर आ रहा था, प्राइवेट बस सवारियों से खचाखच भरी थी। ड्राइवर की सीट के ठीक पीछे खड़े-खड़े लोहे का डंडा पकडे वह कुछ सोचते हुए ध्यान मग्न था कि अचानक उसकी नजर अपनी बस के आगे-आगे जा रही एक और प्राइवेट बस के पिछले हिस्से पर पडी, यह बस भी उसके घर से दफ्तर वाले रूट की ही थी। बस के पिछले हिस्से में नीचे की ओर मोटे-मोटे अक्षरो में लिखा था " बुरी नजर वाले के लिए फ्री सेवा " और उसके आगे एक जूते जैसी आकृति बनाई हुई थी । उसके दिमाग में एक आइडिया आया और उसने ठान ली कि वह कल से उसी बस में यात्रा करेगा।

अगले दिन वह पुनः आफिस जाने के लिए बस स्टैंड पर आया और उस बस का इन्तजार करने लगा । शीघ्र ही वह बस आई और वह उसमे चढ़ गया। कुछ दूर चलने के बाद कंडक्टर ने आकर उससे टिकट खरीदने को कहा, लेकिन उसने यह कहकर टिकट लेने से मना कर दिया कि वह बुरी नजर वाला है । काफी बहस हुई, झगड़ते-झगड़ते कंडक्टर ने अपना जूता भी निकाल दिया कि अगर तुम बुरी नजर वाले हो तो तुम्हारे लिए जूता फ्री है । उसने उसे रोकते हुए चेतावनी दी कि अगर उसने जूता इस्तेमाल किया तो उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे । अब मामला इतना बढ़ गया कि पहले बात बस मालिक तक गई और फिर कोर्ट तक जा पहुँची। जज ने दोनों पक्षों को सुना । उसने कहा कि श्रीमान, चूँकि मैं एक बुरी नजर वाला हूँ और इन्होने अपनी बस के पीछे लिखा है कि ये बुरी नजर वाले को फ्री सेवा देंगे, अतः अब इनका यह फर्ज बनता है कि ये मुझे अपनी बस में मुफ्त में यात्रा करने दे । इस पर बस मालिक ने कहा कि नहीं श्रीमान, हमने अपनी बस के पीछे जहां पर यह लिखा है कि बुरी नजर वाले के लिए फ्री सेवा है उसके आगे हमने एक जूते का चित्र भी बनाया है, अतः हमारा आशय यह है कि हम बुरी नजर वाले को जूते से फ्री सेवा देंगे ।

जज ने दोनों पक्षों को गौर से सुना, उन्होंने फिर पहले पक्ष से पूछा कि इस बात के तुम्हारे पास क्या सबूत है कि तुम बुरी नजर वाले हो ? वह बोला, श्रीमान, मैं बहुत दिनों से इनकी बस पर नजर गडाए हुए हूँ, यह एक नई और अच्छे डिजाइन की बस है, इसका मालिक मेरा पडोसी है । मैं इसको फलता-फूलता नहीं देखना चाहता, इसलिए मैंने यह प्लान बनाया है कि मैं इसमें सफ़र करने वाले अपने इलाके के सभी लोगो को इस तरह भड़काऊ कि वे सभी भी खुद को बुरी नजर वाला बता कर इनकी बस में बिना टिकट यात्रा करने लगे, इससे क्या होगा कि इनकी आमदानी ख़त्म हो जायेगी, और ये इस बस की किश्त और ड्राइवर-कंडक्टर का वेतन भी नही निकाल सकेगे । उसकी बात सुनकर जज पहले थोडा हंसा और फिर जज ने व्यवस्था दी कि चूँकि बुरी नजर का यह अर्थ कदापि नहीं होता कि किसी ने किसी की चीज को देखा और वह बिगड़ जाए, या फिर कुछ अशुभ हो जाए । लेकिन बुरी नजर का यह आशय जरूर होता है कि कोई दुराग्रह से गर्षित होकर किसी को नुकशान पहुंचाने की ताक में रहे, और प्रथम पक्ष की बातो से यह स्पष्ट है कि वह बस मालिक की संपत्ति पर बुरी नजर गडाए हुए था, और चूँकि बस मालिक ने अपनी बस के पीछे लिखित मैं यह घोषणा कर रखी है कि बुरी नजर वाले के लिए फ्री सेवा, और चूँकि जूते के चित्र बना लेने से यह स्पष्ट नहीं होता कि इनका आशय जूते की फ्री सेवा से है, अतः बस मालिक का यह कर्तव्य बनता है कि वह अपना वचन निभाए, और जब तक यह बस उनके पास मौजूद है, वे पहले पक्ष को उसकी फ्री सेवा मुहैया करवाए ।

तो आजकल वे जनाव, ऑफिस से आने जाने और शहर के अन्य स्थानों पर फ्री में यात्रा करते है। तनख्वाह में से अब महीने के पांच सौ रूपये भी बच जाते है ।



नोट : घटना काल्पनिक है!

5 comments:

  1. wah ji wahhhhhhhhh

    accha tark diya

    kahani acchi ban gayii or samaj ke bure pahloo ko bhi darshaya

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  2. शुक्रिया निर्झर नीर जी !

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  3. . nj;/OKMOIMO)उन्च्फ्घ्फ्स्ख्ग्ल्ग्न्व्ल्ट द्र्च्य्रू म्ह्ग्ग्क्स्य्स्राज्थ

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  4. बुरी नजर वाला, तेरा मुंह काला।
    सुंदर लधु कथा।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।