Wednesday, June 24, 2009

घंटा मिलेगा ?

कहाँ जाकर के छंटा,
मन का द्वन्द मेरा,
कुछ यूं रहा 
घंटे संग सम्बन्ध मेरा।    

जब पैदा हुआ 
तो पंडत पिता से बोला,
जन्मकुंडली पूजनी है ,
इक घंटा चाहिए।

गोदी में पिता की, 
मंदिर को चलने लगा,
पूछा, पापा वहाँ क्या मिलेगा?
पापा बोले, घंटा मिलेगा !

पांच का हुआ तो पिता संग 
उंगली पकड़ स्कूल को चल दिया,
कौतुहलबस पूछा, वहाँ क्या मिलेगा?
पापा बोले, घंटा मिलेगा !

दाखिले बाद स्कूल जाने को हुआ,
तो पिता बोले, मन लगाकर पढ़ना,
आदतन पूछा, पढ़कर क्या मिलेगा?
पापा बोले, घंटा मिलेगा !

शादी के लायक हुआ तो,
पिता ने घोडी पर चढ़ाया ,
मैंने फिर पूछा, शादी से क्या मिलेगा?
पापा बोले, घंटा मिलेगा !

गृहस्थ जीवन में प्रवेश हुआ तो,
नवेली दुल्हन से मैंने पूछा,
जानेमन, नाश्ते में क्या मिलेगा ?
वह मुस्कुराई, अंगूठा दिखाया और चल दी !

आखिर जब रिटायर हुआ तो,
बेटे ने वृद्धाश्रम ले जाकर छोड़ दिया,
मेरी नजरों में अनगिनत सवाल थे,
किंतु वह बोला कुछ नही !

बस, एक कांसे का हाथ में पकडा गया !!

1 comment:

  1. क्या बात है --- ! !
    घंटा मिला कि नही?

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।