Thursday, December 2, 2010

दुनिया जाए भाड़ में !


ऑफिस के काम से मुंबई जाना हुआ। सुबह ११  बजे ही काम निपट गया। छोटा सा काम था, अत: आधे घंटे में ही निपट लिया। वापसी सवा तीन बजे की थी, अत: समय गुजारने के लिए सोचा कि मैरीन ड्राइव पास में है, क्यों न कुछ देर मैरिन ड्राइव पर चहल कदमी की जाए। सामने सड़क पार की और पहुँच गए। वैसे तो बीसियों बार उस सड़क से गुजर चुका  हूँ, मगर पैदल का आनंद पहली बार ले रहा था। वहां पत्थरों की आड़ में बहुत सी दिव्य-आत्माए बैठी थी, कोई घर से दफ्तर के बहाने निकला होगा तो कोई कालेज के बहाने, जिस तरह कतारबद्ध वे लोग बैठे थे, उससे यह भी अहसास हुआ कि मुंबई के लोग कितने अनुशासित है। अत: उन्हें देख मेरे  दिमाग में  थोड़ा सा पका आपके समक्ष पेश है ;


लड़कपन बिगड़ा माँ-बाप के लाड में ,
यौवन, संग अंतरंग झाड की आड़ में,
छूं  गए जब  कुछ बुलंदियां प्यार की, 

जोरू आई और लग गए 'जर 'जुगाड़ में।  

खैर, इसी का तो नाम जिंदगी है।  

27 comments:

  1. चाहे कोई खुश हो चाहे गालियाँ हज़ार दे .... मस्त राम बन के ज़िन्दगी के दिन गुज़र दें !

    बढ़िया रचना है गोदियाल जी .... लगे रहिये !

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  2. वर्सोवा के डेढ़ दशक पुराने मंजर और लव पिट्स की याद आ गयी !

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  3. सुन्दर रचना..धन्यवाद.

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  4. .

    गोदियाल जी,
    बढ़िया लिखा है आपने। और फिर प्यार हो या कोई और क्षेत्र , डरने की ज़रुरत तो कहीं भी नहीं होती ।

    .

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  5. ये मंजर आम है हर शहर में ...
    कविता अच्छी है !

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  6. बिल्कुल जी आज तो यही हो रहा है।

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  7. अब जब दुनिया को कह ही दिया है कि "जाए भाड़ में" तो वो तो अब चाहे कुछ भी कहे.....!

    @ZEAL जी-सही है प्यार में डरने कि जरुरत नहीं है पर.....

    पता नहीं जो मै सोच रहा हूँ वो आज के हिसाब से तर्क-सांगत सा है भी या नहीं.....!

    खैर छोडो!

    गोदियाल जी आप जल्दी ही स्वस्थ होकर आये और ब्लॉग पर निरन्तर अपना खडूसपना हमें यु ही प्यार से दिखाए..यही शुभकामना...

    कुंवर जी,

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  8. यही उम्र है, बिगड़ जाने दो... :)

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  9. आपने बॉम्बे में गुज़ारा वक़्त याद दिला दिया ।

    सोच समझ कर करना पंथी यहाँ किसी से प्यार
    चांदी का यह देश , यहाँ के छलिया राजकुमार

    जमकर तारीफ़ सहित
    आपका अपना
    ahsaskiparten.blogspot.com

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  10. गोदियाल जी,
    ला-जवाब" जबर्दस्त!!
    बढ़िया लिखा है आपने।

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  11. त्वरित काव्य -रचना कर आपने बड़ा अच्छा शब्द -चित्र खींच लिया है.

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  12. आप सभी ब्लोगर मित्रों का तहेदिल से आभार !

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  13. बहुत अच्छी रचना है, सागर की बड़ी लहरों पर ध्यान देना था आपको।

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  14. देख हमको भला अब कोई नाक-भौं सिकोडे,
    हमारी बला से,दुनिया जाये तो जाये भाड मे॥

    गोदियाल जी , आप जो मुंबई में देख रहे थे , उससे ज्यादा दिल्ली में हो रहा था , कनाट प्लेस में ।
    बहरहाल , कविता बड़ी मनोरंजक बन पड़ी है ।

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  15. आप स्वस्थ हैं, अच्छा लगा जानकर...

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  16. प्रवीण जी,
    मैने तो ध्यान समुद्र की बडी लहरों पर ही केन्द्रित किया था, मगर ...... :)
    दराल सहाब,और इन्डियन सिटिजन जी का भी बहुत-बहुत अभार !

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  17. वर्तमान का सुन्दर खाका खींचा है आपने!

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  18. बहुत सटीक और अर्थपुर्ण.

    रामराम.

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  19. कविता मनोरंजक है
    ........वह क्या कहने बहुत ही बेहतरीन
    पांच बार पढ़ चूका हूँ पर मन ही नहीं भरता

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  20. भाई साहब उनमें से केवल दो फीसदी लोग ही होंगे जो अपने साथी को प्रेम करते होंगे....

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  21. :):) हर शहर में ऐसी आड़ मिल जाती है लोगों को ...शब्द चित्र खींच दिया ...

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  22. हमें दुनिया से क्या वो मरे या जले. वैसे जितना बडा शहर उतनी बडी ये दृष्यावली हर जगह देखने को मिल ही जाएगी ।

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  23. अब जिन्हें एकांत में जगह नहीं मिलती वो सार्वजानिक जगहों पर एकांत तलाशेंगे ही...प्यार भी जीवन की मूलभूत आवशयकता है...
    आप जल्द स्वास्थ्य लाभ करें और खूब लिखें

    नीरज

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  24. एकांत में जगह नहीं मिलती वो एकांत तलाशेंगे ही...प्यार भी जीवन की आवशयकता है...

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  25. अच्छी रचना ..... आज के दौर का चलन दिखता है.... खूब....

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  26. छोटे-बड़े मरीन ड्राइव हर शहर में होने लगे हैं आजकल....

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  27. बहुत खूब गौड़ियाल जी ... सच कहा प्रेम तो करेंगे ... हर हाल में करेंगे ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।