Friday, December 24, 2010

आगाज इक्कीसवीं सदी का !

नफ़रती जूनून मे सुलगता शिष्ट ये समाज देखा ,
अमेरिकी द्वी-बुर्ज देखे और मुंबई का ताज देखा।  

आतंक का विध्वंस देखा कश्मीर से  कंधार तक ,
हमने ऐ सदी इक्कीसवीं, ऐसा तेरा आगाज देखा।


सब लड़खड़ाते दिखे, यक़ीन, ईमान  धर्म-निष्ठा,
छलता रहा दोस्त बनके ,हर वो धोखेबाज देखा।



बनते हुए महलों को देखा, झूठ की बुनियाद पर,
छल-कपट,आडम्बरों का, इक नया अंदाज देखा।

नमक, रोटी और प्याज, आहार था जो दीन का ,
उसे खून के आंसू रुलाता, मंडियों में प्याज देखा।

माँ दिखी अपने शिशु को, घास की रोटी खिलाती.
बरसाती गोदामों में सड़ता, सरकारी अनाज देखा।  


फक्र था चमन को जिस,अपने तख़्त-ए-ताज पर,
चौखटे एक दबंग चंड की,दम तोड़ता वो नाज देखा।

बयाँ  इन शब्दों  में करते  हो रहा अफ़सोस है , किंतु
'परचेत' अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा। 

23 comments:

  1. तेरा आगामी दशक उम्मीद है, कुछ नया लाएगा,
    माँ कसम,अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा॥

    सच कह रहे हैं अब कहाँ राम राज रहा अब तो जंगल राज है देखें अब नया क्या होता है उम्मीद बनाये रखिये।

    ReplyDelete
  2. कसक निकल गयी, पूरी पीड़ा की।

    ReplyDelete
  3. बनते हुए महलों को देखा, झूठ की बुनियाद पर,
    छल-कपट, आडम्बरों का,इक नया अंदाज देखा॥

    बहुत सटीक और सार्थक कटाक्ष आज की व्यवस्था
    पर..

    उम्मीद है, कुछ नया लाएगा, आगामी तेरा दशक ,
    माँ कसम,अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखापर.

    लेकिन उम्मीद फिर भी बाकी है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  4. आदरणीय गोदियाल जी
    नमस्कार !

    बहुत सटीक और सार्थक कटाक्ष

    ReplyDelete
  5. बढिया रचना है आज के परिवेश पर
    इस समसामयिक पोस्ट के लिये आभार
    व्यंग्य भी है आज के हालात पर और सुखद भविष्य की आस भी

    प्रणाम स्वीकार करें

    ReplyDelete
  6. सच कह रहे हे जी, आज कल तो जंगल राज से भी बदतर हे भारत का जीवन.... पता नही क्यो लूट मची हे इतनी, क्या यही ईमानदार प्रधानमत्री का देश हे? क्या ईमानदरी ऎसी होती हे? तो बेईमान ओर देश द्रोही केसा होगा?

    ReplyDelete
  7. आपका सत्य वर्णन यह प्रश्न उठा रहा है क़ि,क्या इसी दिन के लिए सरदार भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद ,राम प्रसाद बिस्मिल,सुखदेव,अशफाक उल्ला खां,ऊधम सिंह,आदि-आदि अनगिनत वीर सेनानियों ने कुर्बानियां दीं थीं?
    आज भी मनसा-वाचा-कर्मणा सारे देशवासी एकजुट हो जाएँ तो भविष्य को सुखद बना सकते हैं .गोदियाल सा : आप पहल करें सारे ब्लागर्स आपके पीछे-पीछे चलेंगे.

    ReplyDelete
  8. खून और उबलने लगा.. लेकिन ?

    ReplyDelete
  9. काम देखा, काज देखा,

    YEH KAHO KYA NAHIN DEKHA :)

    ReplyDelete
  10. उम्मीद है कि राम-राज लाएगा, आगामी तेरा दशक ,
    माँ कसम,अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा॥
    उम्मीद पर दुनिया कायम है , बहुत खूब बधाई

    ReplyDelete
  11. अरसा गुजर गया कहने को, रजवाड़े त्यागे हुए,
    जनतंत्र संग पल रहा,फिर भी एक युवराज देखा॥

    बहुत अच्छा कटाक्ष करती गज़ल ...

    ReplyDelete
  12. सरकार बहुत ही करारा व्यंग किया है सब पर।

    ReplyDelete
  13. बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना!

    ReplyDelete
  14. असहाय माँ देखी शिशु को, घास की रोटी खिलाती.
    बरसाती गोदामों में सड़ता, सरकारी अनाज देखा...

    Hope the insensitive govt. will realize his errors.

    Let's hope for something better in the coming year

    .

    ReplyDelete
  15. उम्मीद है कि राम-राज लाएगा, आगामी तेरा दशक ,
    माँ कसम,अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा॥

    सही कहा ।
    उम्मीद पर दुनिया कायम है ।

    ReplyDelete
  16. गोदियाल जी!
    यही तो वो परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण नववर्ष या नवादशाब्दि का पर्व भी मनाने की इच्छा नहीं होती!!जिनमें सामर्थ्य है तस्वीर बदलने का वही इस तस्वीर को बदरंग किए बैठे हैं!!

    ReplyDelete
  17. पुरे साल का लेखा जोखा बहुत ही सच्चाई बयां करता हुआ ....... सुंदर प्रस्तुति.
    फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी

    ReplyDelete
  18. बढ़िया सटीक चित्र खीचा है लेखे जोखे ने!

    ReplyDelete
  19. बेहतरीन कटाक्ष्।

    ReplyDelete
  20. जंगल राज ही देखा मगर राम राज्य की उम्मीद कायम है ...
    आगामी दशक में सब कुशल हो ...शुभकामनायें !

    ReplyDelete

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।