नफ़रती जूनून मे सुलगता शिष्ट ये समाज देखा ,
अमेरिकी द्वी-बुर्ज देखे और मुंबई का ताज देखा।
आतंक का विध्वंस देखा कश्मीर से कंधार तक ,
हमने ऐ सदी इक्कीसवीं, ऐसा तेरा आगाज देखा।
सब लड़खड़ाते दिखे, यक़ीन, ईमान धर्म-निष्ठा,
छलता रहा दोस्त बनके ,हर वो धोखेबाज देखा।
बनते हुए महलों को देखा, झूठ की बुनियाद पर,
छल-कपट,आडम्बरों का, इक नया अंदाज देखा।
नमक, रोटी और प्याज, आहार था जो दीन का ,
उसे खून के आंसू रुलाता, मंडियों में प्याज देखा।
माँ दिखी अपने शिशु को, घास की रोटी खिलाती.
बरसाती गोदामों में सड़ता, सरकारी अनाज देखा।
फक्र था चमन को जिस,अपने तख़्त-ए-ताज पर,
चौखटे एक दबंग चंड की,दम तोड़ता वो नाज देखा।
बयाँ इन शब्दों में करते हो रहा अफ़सोस है , किंतु
'परचेत' अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा।
अमेरिकी द्वी-बुर्ज देखे और मुंबई का ताज देखा।
आतंक का विध्वंस देखा कश्मीर से कंधार तक ,
हमने ऐ सदी इक्कीसवीं, ऐसा तेरा आगाज देखा।
सब लड़खड़ाते दिखे, यक़ीन, ईमान धर्म-निष्ठा,
छलता रहा दोस्त बनके ,हर वो धोखेबाज देखा।
बनते हुए महलों को देखा, झूठ की बुनियाद पर,
छल-कपट,आडम्बरों का, इक नया अंदाज देखा।
नमक, रोटी और प्याज, आहार था जो दीन का ,
उसे खून के आंसू रुलाता, मंडियों में प्याज देखा।
माँ दिखी अपने शिशु को, घास की रोटी खिलाती.
बरसाती गोदामों में सड़ता, सरकारी अनाज देखा।
फक्र था चमन को जिस,अपने तख़्त-ए-ताज पर,
चौखटे एक दबंग चंड की,दम तोड़ता वो नाज देखा।
बयाँ इन शब्दों में करते हो रहा अफ़सोस है , किंतु
'परचेत' अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा।
तेरा आगामी दशक उम्मीद है, कुछ नया लाएगा,
ReplyDeleteमाँ कसम,अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा॥
सच कह रहे हैं अब कहाँ राम राज रहा अब तो जंगल राज है देखें अब नया क्या होता है उम्मीद बनाये रखिये।
कसक निकल गयी, पूरी पीड़ा की।
ReplyDeleteबनते हुए महलों को देखा, झूठ की बुनियाद पर,
ReplyDeleteछल-कपट, आडम्बरों का,इक नया अंदाज देखा॥
बहुत सटीक और सार्थक कटाक्ष आज की व्यवस्था
पर..
उम्मीद है, कुछ नया लाएगा, आगामी तेरा दशक ,
माँ कसम,अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखापर.
लेकिन उम्मीद फिर भी बाकी है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आदरणीय गोदियाल जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत सटीक और सार्थक कटाक्ष
बढिया रचना है आज के परिवेश पर
ReplyDeleteइस समसामयिक पोस्ट के लिये आभार
व्यंग्य भी है आज के हालात पर और सुखद भविष्य की आस भी
प्रणाम स्वीकार करें
सच कह रहे हे जी, आज कल तो जंगल राज से भी बदतर हे भारत का जीवन.... पता नही क्यो लूट मची हे इतनी, क्या यही ईमानदार प्रधानमत्री का देश हे? क्या ईमानदरी ऎसी होती हे? तो बेईमान ओर देश द्रोही केसा होगा?
ReplyDeleteआपका सत्य वर्णन यह प्रश्न उठा रहा है क़ि,क्या इसी दिन के लिए सरदार भगत सिंह,चंद्रशेखर आज़ाद ,राम प्रसाद बिस्मिल,सुखदेव,अशफाक उल्ला खां,ऊधम सिंह,आदि-आदि अनगिनत वीर सेनानियों ने कुर्बानियां दीं थीं?
ReplyDeleteआज भी मनसा-वाचा-कर्मणा सारे देशवासी एकजुट हो जाएँ तो भविष्य को सुखद बना सकते हैं .गोदियाल सा : आप पहल करें सारे ब्लागर्स आपके पीछे-पीछे चलेंगे.
बहुत सटीक और सार्थक
ReplyDeleteखून और उबलने लगा.. लेकिन ?
ReplyDeleteकाम देखा, काज देखा,
ReplyDeleteYEH KAHO KYA NAHIN DEKHA :)
उम्मीद है कि राम-राज लाएगा, आगामी तेरा दशक ,
ReplyDeleteमाँ कसम,अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा॥
उम्मीद पर दुनिया कायम है , बहुत खूब बधाई
अरसा गुजर गया कहने को, रजवाड़े त्यागे हुए,
ReplyDeleteजनतंत्र संग पल रहा,फिर भी एक युवराज देखा॥
बहुत अच्छा कटाक्ष करती गज़ल ...
सरकार बहुत ही करारा व्यंग किया है सब पर।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना!
ReplyDeleteअसहाय माँ देखी शिशु को, घास की रोटी खिलाती.
ReplyDeleteबरसाती गोदामों में सड़ता, सरकारी अनाज देखा...
Hope the insensitive govt. will realize his errors.
Let's hope for something better in the coming year
.
उम्मीद है कि राम-राज लाएगा, आगामी तेरा दशक ,
ReplyDeleteमाँ कसम,अबतक तो हमने,सिर्फ जंगल-राज देखा॥
सही कहा ।
उम्मीद पर दुनिया कायम है ।
bhut hi satik aur sarthak rachna..........
ReplyDeleteगोदियाल जी!
ReplyDeleteयही तो वो परिस्थितियाँ हैं जिनके कारण नववर्ष या नवादशाब्दि का पर्व भी मनाने की इच्छा नहीं होती!!जिनमें सामर्थ्य है तस्वीर बदलने का वही इस तस्वीर को बदरंग किए बैठे हैं!!
bahut achcha likhe hain.
ReplyDeleteपुरे साल का लेखा जोखा बहुत ही सच्चाई बयां करता हुआ ....... सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteफर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी
बढ़िया सटीक चित्र खीचा है लेखे जोखे ने!
ReplyDeleteबेहतरीन कटाक्ष्।
ReplyDeleteजंगल राज ही देखा मगर राम राज्य की उम्मीद कायम है ...
ReplyDeleteआगामी दशक में सब कुशल हो ...शुभकामनायें !