Sunday, December 19, 2010

इस आतंकवाद को भी समझना होगा !

न सिर्फ़ देशभर मे अपितु पडोसी मुल्कों जैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश मे भी विकीलीक्स के इस खुलासे के बाद कि आजादी के बाद से ही इस देश को नरक मे धकेलने वाले एक शाही परिवार को , देश के लिये हिन्दु आतंकवाद से कितनी चिन्ता हो रही है , तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गरम है। और खुद को दुनिया का स्वयंभु पुलिसवाला बताने वाला एक देश जहां इराक और अफ़गानिस्तान मे मुसलमानों को समूची मानवता का दुश्मन बताकर लाखों की तादाद मे बेगुनाहों की जान ले चुका, वह इस देश के मुसलमानों को शरीफ़ इन्सानों का खिताव देने से भी नही चूकता क्योंकि इस देश मे पिछले एक दशक के बम विस्फ़ोटों और आतंकवादी हमलों मे जिन हजारों बेगुनाहों और सुरक्षाबलों के जवानो की जानें गई, इनकी सोच के हिसाब से अमेरिकियों के मुकाबले उनकी जान की तो कोई कीमत ही नही थी। और वह सब हमले मुस्लिमों ने नही, "मुस्लिम आतंकवादियों" (मानो ए कही अलग दुनिया से टपके हो ) ने किये, इस देश के मुस्लिमों में से सिर्फ़ कुछ ही ने इन्हे लौजिस्टिक सपोर्ट प्रदान की थी, बस। सिमी और इन्डियन मुजाहिदीन के कैडरों मे जितने लोग भर्ती है, वे सब तो पाकिस्तान से आये हुए है, यहां के मुस्लिमों मे से तो कोई भी नही है।

लेकिन इस देश के लोगो की गाडी कमाई पर ऐश करने वाले नेता, शाही परिवार और अमेरिका क्या कहता है, हमे उसे खास तबज्जो न देकर इस बात से चिन्तित होने की जरुरत है कि देश के भीतर आज एक नया आतंकवाद बुरी तरह सिर उठा चुका है, जिसे हम लोग कल तक बहुत हल्के मे लेते थे, वह अब एक गम्भीर समस्या का रूप ले चुका है। आज देश मे अपराध का ग्राफ़ किस हद तक ऊपर जा चुका है वह किसी से छुपा नही, राह चलते महिलाऒं से चेन और पर्स छीननें की घटनायें तो आम हो ही चुकी, अब कानों के कुन्डल भी नोच कर ले जा रहे है। वजह--- कानून का कोई खौफ नहीं। और हम सिर्फ़ पुलिस की निष्क्रियता और सिस्टम का रोना रोकर रह जाते है, लेकिन कभी यह नही सोचते कि हमने इसमे सक्रियता लाने के लिये सार्थक और उपयोगी प्रयास क्या किये? अभी वो तो संसद चली नहीं, नहीं तो इस सत्र में ही एक विधेयक लाया जाने वाला था जिसमे यदि हिरासत में किसी दोषी की मौत हो जाए तो उन पुलिस वालों को मौत की सजा का प्रावधान है। अब बताईये कि ऐसे कानूनों, ऐसे मीडिया और राज शाही जो अपराधियों को पीडित के मुकाबले ज्यादा तब्ज्जो देता हो,किसी पुलिस वाले से तत्पर्ता की आप क्या उम्मीद रखते है ?


एक बात और, हम देखादेखी और बराबरी तो पश्चमी राष्ट्रों की करते है मगर हैं अभी तक लातों के भूत ही , और शायद हमेशा रहेंगे, इसलिए डंडे , लात-घूंसों के बगैर इस देश का भला नहीं हो सकता। यह बात शायद मैंने अपने किसी लेख मे पहले भी कही थी कि हम लोगों की मानसिकता इस तरह की है कि मान लीजिये आप एक फैक्ट्री में अधिकारी है, आप किसी मजदूर को प्यार से और आराम से इस तरह पुकार कर कहोगे कि " भैया ज़रा इधर आना " तो वह एक बारी बोलने में कभी नहीं आयेगा , लेकिन अगर आप चिल्लाकर गाली भरे लहजे में उसे पुकारते हो तो वह तुरंत आयेगा और आपका काम भी फटाफट करेगा। (यह हमारी रगों में लम्बी दास्ता का जीवाणु है )

जो मुख्य बात मै कहना चाहता था, उसके लिये अब यह खबर देखिये;
MUMBAI: Here's a man really committed to family life! A total of 28 children from four wives, all of whom finally got fed up with man's criminal ways and convinced him surrender to the cops in the hope it will mitigate his sentence.

Atique Shaikh (36) had been on the run for the last two years and his four wives along with the children, who live in the same Mumbai neighbourhood, put their heads together and decided to convince Shaikh to surrender.

Shaikh fell in love with all four women at different times and got married to them. They all stay in Govandi in separate houses. While his eldest son, a 17-year-old, is graduating in Arts, his 10 other children are studying in various schools in Govandi. His wives work as domestic helps and run their respective families.

According to police, it were his kids who implored him to quit crime. His children pleaded that if he continued, it would become difficult for them in school and during their weddings. "It really had an impact on his mind and he decided to heed them,'' said a police officer

Read more: Maha man gives up crime for family - The Times of India
और सोचिये कि धर्म की दुहाई देकर देश के अन्दर इस नये आतंकवाद का कितना बडा खेल खेला जा रहा है। यह सिर्फ़ एक बिरला उदाहरण ही नही अपितु इमान्दारी से देखोगे तो दिल्ली के ही किसी एक मोह्ल्ले मे ही इस जैसे बीसियों उदाहरण मिल जायेंगे. इस एक शख्स ने अपनी ३६ साल की उम्र मे चार बीवियों से २८ बच्चे पैदा किये, कोई आश्चर्य नही। यह भी मानकर चलिए कि अभी १०-१५ और पैदा करेगा। आश्चर्य तो तब होगा जब ये २८ बच्चे पेट के लिये अपराध करना शुरु करेंगे और अपनी अशिक्षा, गरीबी और संसाधनो की कमी के लिये दोष देंगे, बहुसंख्यक हिन्दुओं को। और यही सब कुछ ऐसे ही जारी रहा तो बहुत जल्दी यह बहसंख्यक का खिताब भी छिन जायेगा। और यह भी मानकर चलिये कि ये लोग सदा ऐसे ही रहेंगे, आसानी से बदलने वाले नही। तो सोचिये इस नये आतंकवाद के प्रति भी।

16 comments:

  1. इस बार के चर्चा मंच पर आपके लिये कुछ विशेष
    आकर्षण है तो एक बार आइये जरूर और देखिये
    क्या आपको ये आकर्षण बांध पाया ……………
    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (20/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  2. विचारणीय लेख है ...यह ऐसा क्राईम है जो आसानी से पकड़ा भी नहीं जा सकता ..

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  3. अपने देश का शाही परिवार ... याने की गांधी परिवार इन सब बातों से परे है ... उन्होंने कह दिया हिन्दू आतंकी है ........... तो है ...

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  4. मुझे पता लग रहा है कि मेरा धर्म आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है...
    बड़ी देर से आंखे खुलीं...

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  5. मुद्दे को सांप्रदायिक भेदभाव से अलग हटते हुए, सभी को स्पष्ट नजरिये से देखना चाहिये कि अपने देश मे कितनी समस्याएं विद्दमान है. तभी तो पश्चिमी देश अासानी से हमे शिकार बना लेती है.

    हद तो ये है कि हमारे सत्ाधीशों शाही पारिवारों को तनिक भी चिंता नही है.

    ...समय रहते समझना होगा !

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  6. बहुत ही महतव पुर्ण बात कही आप ने , हम आज भी दिमागी तॊर पर गुलाम ही हे, पश्चिम या गोरे रंग वाले को देख कर अपना सब कुछ नोछाबर करने को तेयार हे, ओर इन की सभी बातो को आंखे मुंद कर मानने को तेयार हे, अपने दिमाग से भी कुछ सोचे,अभी भी समय हे हम जागे( जनता जागरुक हो) वर्ना....राम नाम भी नही जप पायोगे

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  7. विचारणीय, आतंकवाद तो सिर्फ "आतंकवाद" ही है

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  8. आतंकवाद का सामयिक विश्लेषण । सम्यक दृष्टि प्रशंसनीय ।

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  9. देखिए.... तुष्टिकरण की नीति भारत कोकहां पहुंचाती है ं:(

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  10. शाही परिवार के राजकुमार (???)-
    ’मेरा दामन बहुत साफ है
    कोई तोहमत लगा दीजिये’

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  11. ये मुद्दा तो शाही परिवार और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओ के लिए वरदान बन सकता है अब लोग भ्रष्टाचार भूल कर इस मुद्दे पर बात करने लगे है उनको और क्या चाहिए | आतंकवाद आतंकवाद है को धर्म से जोड़ कर ये फिर से हमें बाटने और हमारा ध्यान हटाने का प्रयास कर रहे है |

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  12. आतंकवाद की कोई जात नहीं , अमानवीय कृत्य है यह । सब्को चिंतन करना ही चाहिए । नेताओं के बहकावे से परे ,स्वयं के विवेक का ही उपयोग करें । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"

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  13. उपयोगी जानकारी देता हुआ सटीक आलेख!

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  14. आतंकवाद का सामयिक विश्लेषण बहुत ही महतव पुर्ण बात कही आप ने

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  15. 200 फोलोवर ...सभी ब्लोगेर साथियों और ब्लॉगस्पॉट का तहे दिल से शुक्रिया ...संजय भास्कर
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
    धन्यवाद

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।