Sunday, December 5, 2010

अहसास !


ये बताओ,
तुम्हारे
उस बहुप्रितिक्षित
कुम्भ आयोजन का
क्या हुआ,
जो तुम्हारे
हुश्न, मुहब्बत
और वफ़ा की त्रिवेणी पर
अर्से से प्रस्तावित था ?

मैं तो कबसे
अपने मन को
इस बात के लिए
प्रेरित किये था कि
इस बार मैं भी
संगम पर डुबकी लगा ,
जिगर के कुछ दाग
धो ही डालूँगा !

अब तो यही सोचकर
संयम पैरों तले से
फिसलता नहीं
कि प्रतीक्षा करवाना
तुम्हारी पुरानी आदत है !!

15 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर अहसास कराती हुई कबिता, समय आने पर संगम पर जरुर पहुचेगे इंतजार बहुत मीठा होता है.

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  2. इंतजार का अपना मज़ा है ।
    हुश्न, मुहब्बत
    और वफ़ा की त्रिवेणी--
    सुन्दर अलफ़ाज़ .

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  3. आदरणीय गोदियाल जी
    नमस्कार !
    अब तो यही सोचकर
    संयम पैरोंतले से
    फिसलता नहीं
    कि प्रतीक्षा करवाना
    तुम्हारी पुरानी आदत है !!

    AADATE SUDHAR LE SIR JI........

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  4. हर बार की तरह शानदार प्रस्तुति

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  5. वाह ..बहुत सुन्दर ..

    .अब तो यही सोचकर
    संयम पैरोंतले से
    फिसलता नहीं
    कि प्रतीक्षा करवाना
    तुम्हारी पुरानी आदत है !

    अब आदत से परिचित ही हैं तो इंतज़ार कर ही लीजिए ...

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  6. मैं तो कबसे
    अपने मन को
    इस बात के लिए
    प्रेरित किये था कि
    इस बार मैं भी
    संगम पर,
    जिगर के कुछ दाग
    धो ही डालूँगा ...


    गोदियाल जी ... आज तो बिलकुल alag hat कर ... mousam का asar hone laga है ... बहुत लाजवाब ehsas है ...

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  7. उस त्रिवेणी के लिये कुम्भ जैसे आयोजन की क्या आवश्यकता, वह तो वैसे ही सतत प्रवाहमान रहे।

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  8. बहुत ही सुंदर और मुग्ध कर देने वाली रचना.

    रामराम.

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  9. बहुत ही सुंदर और मुग्ध कर देने वाली रचना.

    रामराम.

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  10. अब तो यही सोचकर
    संयम पैरोंतले से
    फिसलता नहीं
    कि प्रतीक्षा करवाना
    तुम्हारी पुरानी आदत है !!
    वाह! गज़ब कर दिया …………मंत्रमुग्ध कर दिया।

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  11. जो मज़ा इन्तेज़ार में है वो मिलन में कहां... तो, करते रहिए इन्तेज़ार:)

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  12. बेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !

    आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।

    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें

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  13. हुस्न, मोहब्बत और वफा की त्रिवेणी पर कुंभ मेले का आयोजन. शानदार सामंजस्य.
    मेरी नई पोस्ट 'भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार' पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा है...
    www.najariya.blogspot.com

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  14. हुश्न, मुहब्बत और वफ़ा की त्रिवेणी पर....जिगर के दाग ......??


    ओये होए क्या बात है ....!!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।