हालांकि इस आधुनिक विज्ञान के युग में इस तरह की बाते हमें सरासर दकियानूसी और हमारे मात्र पुराने ख्यालातों को उजागर करने वाली लगती है, मगर किसी घटना से सम्बंधित कुछ ऐसे तथ्य भी कभी-कभार हमारे समक्ष आ जाते है जो हमें ऐसी किसी सरसरी तौर पर फालतू सी लगने वाली बात पर भी गौर करने को मजबूर कर देती है। ऐसी ही एक कहानी सुदूर उत्तराँचल के पहाडो में हुई एक सड़क दुर्घटना से सम्बंधित है। यह भी हो सकता है कि इस कहानी में भी अनेको पेंच हो, मसलन विकाश अपनी नवविवाहिता से संतुष्ट न रहा हो और उससे छुटकारा पाने के लिए उसने यह नाटक रचा हो और फिर उसके बाद लोगो को झांसा देकर वहां से सदा के लिए चला गया हो। लेकिन कुछ बाते ऐसी जरूर है, जो एक पल के लिए इंसान को सोचने पर मजबूर करती है। उस घटना को घटे करीब अठारह साल बीत चुके है, और उस इलाके के उन कुछ लोगो के लिए आज भी यह एक खौफनाक दु:स्वप्न जैसा है, जो उस घटना के चश्मदीद गवाह थे। वे आज भी उस जगह की ओर, भरी दोपहर में भी अकेले जाने में कतराते है, जहां पर यह घटना घटी थी। इस वाकिये से जुड़ा हर इंसान, बस एक ही तर्क आज भी देता है कि आखिर विकाश गया तो गया कहाँ? जबकि उन्होंने अपनी आँखों के सामने, ८०-९० किलोमीटर प्रतिघंटे की तेज रफ़्तार से भागती कार को बिना रुके सड़क से फिसलकर पहाडी ढलान पर लुड़कते देखा था? क्या उसे जमीन निगल गयी, या फिर आसमान उड़ा कर ले गया? अगर वह जिन्दा होता तो क्या इतने सालो के बाद भी, एक बार अपने गाँव, अपने परिवार की खोस-खबर लेने नहीं आता ?
सितम्बर का महिना ख़त्म होने को आया था। पहाडो में धीरे-धीरे सर्दी का मौसम अपने पैर पसारने लगा था। दुर्घटनास्थल पर आस-पास के गाँवों से दोपहर से जमा भीड़ अब छटने लगी थी। सूर्यदेव भी धीरे-धीरे पास की पहाडियों के पीछे खिसकने लगे थे। लोग हतप्रभ भी थे, और सहमे हुए भी । हर एक की जुबान पर एक ही सवाल था कि आख़िर विकाश गया तो गया कहाँ? कुछ लोग इस उम्मीद पर कि शायद कार के दुर्घटनाग्रस्त होते वक्त, विकाश पहाडी ढलान पर कहीं कार से बाहर छिटककर गिर गया हो और किसी पेड या झाडी में अटक गया हो, ऊपर सड़क की धार से नीचे खाई तक कई बार चक्कर लगा चुके थे, मगर सब बेकार। कुछ लोग कह रहे थे कि कंही वह बच निकला हो और कहीं भाग गया हो, मगर फिर सवाल उठता कि आख़िर वह अपनी पत्नी को इस हालत में छोड़ भागेगा क्यो? जितने मुह उतनी बातें।
प्रत्यक्षदर्शियों की बात पर विश्वास करे तो जब कार ऊपर पहाडी चोटी की सड़क पर 80-90 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार से दौड़ रही थी तो उन्होंने कार की ड्राविंग सीट और साथ वाली सीट दोनों खाली देखी थी। इकट्टा हुए लोग, उन प्रत्यक्षदर्शियों की बाते सुन-सुनकर सवाल करते, अरे क्या पागलो जैसी बात कर रहे हो सबके सब, जब ड्राविंग सीट पर कोई नही था तो, कार इतनी तेजी से क्या भूत भगा के ले जा रहा था? लेकिन इस तरह के प्रत्यक्षदर्शी एक-दो नही, बड़ी तादाद में थे, जिन्होंने अपनी आँखों से वह खौफनाक नज़ारा देखा था और इस बात की पुष्टि कर रहे थे कि कार खाली थी। उनमे से कुछ वे लोग थे, जो सड़क के किनारे की बनी दुकानों पर बैठे चाय पानी पी रहे थे, और कुछ पास के हाईस्कूल के वे बच्चे भी थे, जो इंटरवल में सड़क के किनारे खेल रहे थे ।
अचानक आन पड़ी इस मुशीबत से विकाश के वृद्ध पिता की आँखे मानो भाव शून्य हो गई थी। क्या करू? वे कुछ भी समझ पाने की स्थिति में नही थे। हँसते-खेलते परिवार को मानो किसी की नज़र लग गई हो। विकाश की पत्नी, प्रीति की लाश उस स्थान से जहां पर से कर पहाडी ढलान पर सड़क से नीचे लुड्की थी, वहाँ से करीब दो सौ मीटर दूर सड़क से करीब बीस फिट नीचे एक चीड के पेड़ के तने पर अटकी हुई थी। शाम होते-होते, उस जगह पर कोई अगर रह गया था तो विकाश के पिता और उनके गाँव के दस -बारह लोग। ख़बर मिलने पर अभी कुछ देर पहले ही पास के गाव का पटवारी तो पहुँच गया था, मगर पुलिस अभी तक नही पहुँची थी । रात की सर्दी से बचने के लिए लोग आस पास पड़ी लकडिया और अलाव इकठ्ठा करने लगे थे, क्योंकि जब तक पुलिस नही पहुँचती और लाश को अपने कब्जे में नही ले लेती वे उसे वहाँ पर छोड़ कर अपने घरो को नही जा सकते थे। रात हो जाने की वजह से अब रात के वक्त पुलिस के पहुँचने की सम्भावनाये भी क्षीण हो चुकी थी।
जलती हुई लकडियो पर हाथ सेकते वृद्ध पिता याद कर रहे थे, वह गुजरा वक्त, जब वे सेना में कार्यरत थे और उनका लाडला विकास पैदा हुआ था तो तब से आज तक के उसके पूरे जीवन चक्र को। अति उत्साहित जवान पिता ने ग्यारवे दिन नामकरण संस्कार में एक अच्छी खासी पार्टी का आयोजन किया था । लाइनपंडित ने पूजापाठ कर माँ- बाप से लग्नानुसार 'व' से नवजात शिशु का नामकरण करने को कहा। माँ-बाप ने उसका नाम विकाश रख दिया था। पार्टी में धडाधड थ्री एक्स की बोतलों के सील टूटे जा रहे थे। नशे में चूर उनका जिगरी दोस्त शम्भू अन्दर के कमरे से माँ की गोद से उठा कर विकाश को बाहर के कमरे में, जहाँ पार्टी चल रही थी, ले आया और ठीक उस टेबल के ऊपर उसे हथेली में झुलाने लगा, जिस पर स्नैक्स, पकोडे, गोश्त इत्यादि रखा था। इस नए-नए नए रंगरूट, विकाश को भी न जाने क्या चडी कि उसने भी उसी वक्त अपनी शैम्पेन खोल दी और टेबल पर रखे सामान पर छिडकाव कर दिया। वहां मौजूद सभी गणमान्य फौजी महानुभाव नशे में इतने धुत थे कि किसी ने भी यह नोट नही किया और बड़े चाव से स्नैक्स खाया गया । इस बात का खुलासा उस जिगरी दोस्त ने बाद में किया था।
कुछ साल बाद उन जिगरी दोस्त के यहाँ लड़की पैदा हुई । बस फिर क्या था उनकी मानो मन कि मुराद पूरी हो गई हो। दोनों परिवारों ने पहले से तय कर रखा था कि अगर लड़की हुई तो वह आगे चलकर विकाश की दुल्हन बनेगी। पूरे जोश- खरोश के साथ दोनों परिवार रिश्तेदारी में परिवर्तित हो गए थे। और दोनों मित्रगण और उनकी पत्निया, समधी- समधिन बन गए थे। लड़की का नाम सोना रखा गया। सोना की माँ, जब भी मौका मिलता या नन्ही सोना रो रही होती या किसी बात की जिद कर रही होती तो उसको पड़ोस में विकाश की माँ की गोद में यह कहकर छोड़ जाती कि संभालो अपनी बहु को। कुछ साल बाद उनकी पलटन रुड़की से गुरुदासपुर शिफ्ट हो गई थी । अभी शिफ्ट हुए मुस्किल से तीन महीने ही हुए थे कि बांग्लादेश युद्ध छिड गया, एक सुबह तडके पश्चिम सीमा पर पाकिस्तानी बमबर्षको ने ताबड़तोड़ बमबारी कर दी । छावनी के अनेक क्वाटर नष्ट हो गए थे, जिनमे से एक उनके जिगरी दोस्त शम्भू का भी था। बुरी तरह से घायल सोना के माँ-बाप, सोना को विकाश की माँ की गोद में डाल स्वर्ग सिधार गए। करीब दो साल की सोना को कोई विशेष चोट नही लगी थी ।
दिन बीते, सोना अब थोडी बड़ी हो गई थी, वह विकाश के माता पिता को ही अपना माता पिता समझती थी । ज्यो-ज्यो वह बड़ी होती गई उसकी सास उसे यह अहसास कराती गई कि वह उनकी बहु है और विकाश, उसका पति । जब सोना नौ साल की हुई तो उसे भी इस बात का थोड़ा-थोड़ा अहसास होने लगा था, अतः वह विकाश का ख़ास ख्याल रखने लगी थी । जबकि दूसरी ओर विकाश को इसकी जरा भी भनक नही थी और न ही उसके माँ- बाप इस पक्ष में थे कि अभी से उसको इस बात का अहसास दिलाया जाए । १९७७ की गर्मियों की छुट्टियों में वे लोग दादा-दादी के पास गाँव आए हुए थे कि अचानक एक दिन दोपहर को सोना को तेज़ बुखार आया और उसी रात नन्ही सोना की जिंदगी लील गया । विकाश तब पंद्रह बर्ष का था, उसे सोना के जाने का दुःख तो बहुत हुआ मगर वह अभी तक इस बात से बेखबर था कि उसके माता पिता ने बचपन में ही उसकी शादी सोना से कर दी थी और सोना उसकी पत्नी थी ।
दो साल बाद १०वी के बोर्ड की परीक्षा के बाद विकाश फिर गर्मियों की छुट्टिया विताने दादा-दादी के पास आया था । रोज सुबह वह दादाजी के साथ जंगल में मवेशियों को घास चुगाने ले जाता । और दोपहर बाद घर लौट आता । एकदिन दादाजी पास के एक गावं में किसी काम से गए हुए थे। अतः विकाश अकेले ही अपने मवेशियों को लेकर जंगल चला गया । उस दिन तेज गर्मी थी, अतः मवेशी, जगल की पहाडी पर बनी झील में पानी पीने जल्दी पहुँच गए । चारो तरफ़ से घने चीड और बांज के पेडो और हिस्सर और किन्गोड़ की झाडियों के बीच में स्थित यह झील, गर्मी में हर प्यासे को बड़ा सकून पहुंचाती थी । विकाश को नीचे पहाडी ढलान से ऊपर झील तक पहुँचने में थोड़ा वक्त लग गया था, अब तक मवेशी पानी पीकर आसपास फिर घास चरने में मग्न हो गए थे । जैसे ही विकाश झील पर पहुँचा, यह देख हक्का-बक्का रह गया कि झील में नौ से बारह साल की चार कन्याये स्नान कर रही थी। अभी वह अपनी आँखों को मल ही रहा था कि अचानक ९-१० साल की एक कन्या झील से बाहर निकल, उसकी तरफ़ दौडी । विकाश के यह देख मानो होसोहवास ही उड़ गए कि जो बच्ची उसकी और लपक कर आरही थी वह हूबहु सोना थी। विकाश के पास पहुँच, वह उछलकर उसके गले से झूल गई और उसके चेहरे को चूमने लगी। विकाश कुछ समझ पाता कि तभी झील से एक बारह साल की, उन कन्यावो में सबसे सीनियर दीखने वाली कन्या बाहर आई और सोना को विकाश से अलग करते हुए उसका हाथ पकड़ वापस झील में ले गई । जैसे ही वे दोनों झील के उस पर पहुँची कि सभी कन्याये अचानक गायब हो गई । विकाश यह सब देख थर-थर काँप रहा था । उसने जल्दी से सभी मवेशियों को इकठ्ठा किया और गावं की और तेजी से बढ़ने लगा ।
घर पहुँच उसने ये सारी बातें अपनी दादी को बताई । दादी भी यह सुन एकदम सकते मे आगई और उन्हें किसी अनहोनी का डर सताने लगा । दादी ने उसे समझाया कि फिर कभी उस तरफ़ मत जाना और इस बात का जिक्र भी किसी से नही करना, क्योंकि जिस जगह वह झील है उसके पास ही गाँवो के उन बच्चो को दफनाया जाता है जो असमय काल का ग्रास बन जाते है। अतः सोना को भी उसी झील के पास दफनाया गया था और अब वह लगता है आछरी ( परी ) बन गई है । यह सुन विकाश के शरीर में एक ठंडी सिहरन सी दौड़ गई । बाद में यह बाद विकाश के पिता को भी उसकी दादी ने बताई थी। बाद में ग्रेजुएसन कर विकाश शहर में नौकरी करने आ गया । अभी उसे नौकरी लगे साल भर ही हुआ था कि अचानक उसे लौटरी खरीदने का चस्का लग गया । एक दिन वह दिवाली के अवसर पर उसने २५ लाख के दिवाली बम्पर का एक टिकट खरीदा । टिकट एजेंट से टिकटों के बण्डल में से उसने एक टिकट छाँट कर बाहर निकIलना चाहा लेकिन उसे महसूस हुआ कि कोई उसका हाथ रोकते हुए उसे दूसरी टिकट खीचने को प्रेरित कर रहा है । न चाहते हुए भी विकाश ने वही टिकट खरीद ली जो उसे लगा कि कोई जबरन उससे खरीदवाना चाहता है । अगले दिन उस समय उसकी खुसी का ठिकाना नही रहा जब लॉटरी का पहला इनाम उसके टिकट पर लगा था ।
ढेर सारा धन मिलने के बाद, जिंदगी मजे से गुजरने लगी, उस जमाने में १५-२० लाख आज के एक करोड़ के बराबर थे। इस बीच उसने एक कार भी खरीद ली थी। कार चलाते वक्त वह कई बार यह भी महसूस कर चुका था कि जब वह ड्राइविंग सीट पर होता है तो कोई अदृश्य शक्ति सड़क पर चलती कार में उसके साथ स्टेयरिंग घुमाती, मानो ड्राइविंग सीख रही हो । पहली बार वह जब अपनी गाड़ी ख़ुद चलाकर शहर से गाँव लाया था, तो उसने अपने पिता को बताया था कि कैसे पहाडी मोडो पर उसकी गाड़ी का हार्न अपने आप बज जाता था, किसी ढलान पर अगर गाड़ी स्पीड पकड़ लेती तो मोड़ पर पहुचते ही स्पीड स्वतः ही कम होने लगती । मानो उन पहाडी संकरी सडको पर ड्राइव करते कोई उसका खास ध्यान रख रहा हो ।
दिन गुजरते गए, पिता ने उसकी मंगनी दूर के रिश्ते के ही एक परिवार में कर दी थी । विकाश को भी प्रीति काफ़ी पसंद थी । अतः ३ महीने बाद शादी का मुहूर्त निकला और धूमधाम से शादी हो गई । विकाश और प्रीति दोनों शादी के बाद से बड़े खुस थे। शादी के कुछ दिनों बाद वे एक दिन पहले प्रीति के मायके गए थे और आज वापस अपने गाँव लौट रहे थे, और फिर ......। रात धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी, हवाए सा-सा कर पहाड़ की छोटी और लम्बे चीड के दरख्तों से टकरा रही थी, कि तभी यह देख उन सभी बड़े-बूढे लोगो की जो रात को जंगल में प्रीति की लाश की चौकीदारी कार रहे थे, मानो सांस रुक सी गयी थी, जब उन्होंने देखा कि जिस चीड के पेड़ के तने पर प्रीति की लाश अटकी थी वह पेड़ और उसके बगल में कुछ दुरी पर स्थित दूसरा चीड का पेड़, जोर से झूलते हुए मानो एक-दूसरे के गले मिल रहे हो। वह दृश्य देख, बस यही ख़याल सब के दिल को छू जाता कि कही सोना तो विकाश को........ ?
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...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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