Tuesday, March 3, 2009

कविता- आया फिर से चुनाव है !

गाँव-गाँव, शहर-शहर, कूचा- कूचा और गली-गली,
लुच्चे -लफंगे,चोर-उचक्के, छोटे बड़े सभी बाहुबली!
अपनी-अपनी मुछो पर यहाँ हर कोई, दे रहा ताव है,
क्योंकि  इस देश में यारो, आ गया फिर से चुनाव है !

चुनाव के मौसम में  सियासतदान  हो रहे विनम्र हैं,
हर कुटी- द्वारे, सूखे पिंड खजूर लिए झुकता तम्र है!
अपने किये पापो को धोने, गंगा में लगा रहे हैं गोते,
शेर की खाल पहनकर , गलियों में घूम रहे हैं खोते!

मुख में इनके फिर सत्यवचन, माथे पर चन्दन है,
नए-पुराने इनके फिर, बन-बिगड़ रहे गठबंधन है!
इधर लोकतंत्र के महाकुम्भ का, गूंज रहा शंखनाद है
उधर चारो तरफ हमारे, फल-फूल रहा आतंकवाद है!

नापुंसको ने भी खूब उड़ाया,  लोकतंत्र का मखौल है,
इनकी शक्ले देख कर जनता का, खून रहा खौल है!
महंगाई और बेरोजगारी का दिलो पर ताजा घाव है,
लोकतंत्र के महापर्व का अब फिर से आया चुनाव है !


2 comments:

  1. बहुत सुन्दर. लोकतंत्र कहाँ है? राजतंत्र ही नजर आता है सब तरफ. प्रजा चुनेगी अपने प्रतिनिधि, जो बन जायेंगे राजा ओर करेंगे राज.

    ReplyDelete

वक्त की परछाइयां !

उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी, हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी, अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहन...