प्यार जताने की चाह
इकबार हमारे भी दिल में आई,
शान्ति की राह छोड़कर,
क्रान्ति की राह अपनाई।
इजहार-ए-प्यार के खातिर,
एक ख़ास 'वेलेंटाइन-डे' पर,
मैंने भी एक फूल गोभी का,
भेजा था अपनी प्रियतमा के घर।
ठेठ उसी शाम को किसी ने
फिर मेरा दर खटखटाया था,
संदेशवाहक के मार्फत
उनका भी ये जबाब आया था।
लिखा था; वाह ये मीठी तकल्लुफ
सुनहरी सी इस भोर में,
फिजूल खर्च किया हमारे खातिर,
वो भी महगाई के इस दौर में।
तरकारी भी पूरी न हुई, कम्बखत!
ढाई आखर में ही खा लेते गोते ,
और जब खर्चा कर ही डाला था,
तो चार आलू भी साथ भेज दिए होते।
No comments:
Post a Comment