65 वें गणतन्त्र की सभी देश वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं !
इस नूतनवर्ष के प्रारम्भिक मास के उत्तरार्द्ध में हर वर्ष की भांति, आइये इस वर्ष के लिए भी हम सभी मिलकर पुनः एक सुखमय और समृद्ध भारत का सपना सजोए, उसकी कामना करें । आज महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से देश का जन - जन किस कदर त्रस्त है इसका अहसास सिर्फ इसी बात से हो जाता है कि जनता को जिधर भी इससे मुक्ति के लिए एक आशा की किरण नजर आती है वह वहीं उसे लपकने पहुँच जाती है। वो बात और है कि उसे हर तरफ निराशा ही हाथ नजर आती है।
तमाम देश और खासकर दिल्लीवासियों को भी एक ऐसी ही सुनहरी किरण नजर आई थी, किन्तु उसे लपकने के बाद दिल्लीवासियों को भी एक बड़ी निराशा के साथ शेक्सपियर याद आ गया। उन्हें भी यही सबक मिला कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। उम्मीदें सभी लगाए बैठे थे किन्तु पिछले दिनों जो कुछ अपने आस-पास नजर आया उससे यही अहसास हुआ कि अगर चोरों के हाथ में सत्ता आ जाए तो वो पहला मोर्चा पुलिस के खिलाफ ही खोलते है। और ऐसा इस उद्देश्य से नहीं किया जाता कि पुलिस सुधरे और आम-जन को न सताये, बल्कि इसलिए किया जाता है कि उसे अपने ढंग से इस्तेमाल कर अपना उल्लू कैसे सीधा किया जाये।
यह डायलॉग हालांकि काफी पुराना हो चुका है, लेकिन प्रासांगिकता उसने आज भी नहीं खोई कि कोई इंसान जब किसी और पर ऊँगली करता है तो उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि तीन उंगलिया उसकी तरफ भी होती हैं। सब्जबाग़ दिखाना और दूसरों को उपदेश देना शायद इस धरा पर सबसे आसान काम होता है, किन्तु उसे वास्तविकता की जमीन पर मूर्त रूप देना एक कठिन काम है। हम जब पुलिस को दोष देते है तो उससे पहले यह भूल जाते हैं कि ये पुलिस वाले भी हमारे इसी समाज का हिस्सा हैं और यदि वे अपना फर्ज ठीक से अदा नहीं कर रहे है तो उसके लिए जिम्मेदार कारक कौन-कौन से हैं। क्या एक ईमानदार पुलिस वाला आज के दूषित राजनैतिक और लालफीताशाही माहौल मे ईमानदारी से फर्ज अदा करके चैन की जिंदगी जी सकता है? हम यह क्यों भूल जाते है कि उसका भी परिवार है, और नेताजी अथवा अफसर की किसी महत्वाकांक्षा ने अगर उसे ६ माह के लिए निलम्बित करवा दिया तो इस कमरतोड़ महंगाई मे वह अपने बच्चे के स्कूल की फीस कहाँ से भरेगा ? क्या एक ईमानदार पुलिस वाले को हमारे लोकतंत्र के चारों स्तम्भ निष्पक्ष और स्वतंत्र तरीके से काम करने देते हैं ? क्या अपराधियों में पुलिस का भय एक सुनियोजित तरीके से ख़त्म नहीं कर दिया गया है ? ये कुछ सवाल है जिनका हमें ईमानदारी से सर्वप्रथम जबाब तलाशना होगा और उसके बाद ही हमें अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के बारे में सोचना चाहिए।
आज हमें जरुरत है अपने खून के शुद्धिकरण की। भ्रष्टाचार अगर शताब्दियों से हमारे खून में न होता तो हम तीन-तीन गुलामियाँ ही क्यों झेलते ? किस चीज की कमी थी हमारे पास ? दूसरे को अनुशासन में रहने की दलील देते है, लेकिन यह तो देखो कि खुद कितने अनुशासित हो। दूसरों के लिए तो हमने पावंदियों का लम्बा-चौड़ा मकड़जाल बुन लिया किन्तु अपने लिए ?
जय हिन्द !