Thursday, January 7, 2016

इस मुल्क की तहज़ीब-ए-वीआईपी - १

इस मुल्क की तहज़ीब-ए-वीआईपी  - १ 
यह एक सर्वविदित सत्य है कि  तीन लम्बी गुलामियत का दंश झेल चुका इस मुल्क का वह प्राणी जो सुबह से शाम तक का  अपना वक्त सिर्फ अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के जुगाड़ में ही व्यतीत कर देता है, उसके दिल में जाति, धर्म और सम्प्रदाय से परे, एक ख़ास किस्म का मक्कार वर्ग, अपने द्वारा पैदा की गई  एक ख़ास किस्म की दहशत की पैठ बनाने में  हमेशा सक्षम रहा है।  

इसी का नतीजा था कि पड़ोसी मुल्क  के कुछ दहशगर्द  बेख़ौफ़ एक नीली बत्ती लगी गाड़ी के माध्यम से पठानकोट के वायुसेना बेस में घुस गए और हमारे १०  वीर जवानो को अपने प्राणो की आहुति देनी पड़ी। अब सवाल यह उठता है कि आम जनता को बड़ी-बड़ी नसीहतें देने वाला यह वर्ग-ए-तहज़ीब-ए-वीआईपी, क्या खुद अपने लिए यह नियम बनाएगा कि आज  के बाद से हर वीआईपी वाहन को उसके मार्ग में पड़ने  वाले किसी भी सुरक्षा चेक-पोस्ट पर चेकिंग करवाना अनिवार्य होगा और  ऐसा न करने पर सुरक्षा चेक-पोस्ट पर तैनात सुरक्षा-कर्मी को उसके उल्लंघन कर्ता चालक को देखते ही गोली मारने का अधिकार होगा ?  शायद  कभी नहीं, ऐसे नियम  के बारे में  तो सोचना ही बेईमानी है। 



                     इस मुल्क की तहज़ीब-ए-वीआईपी  - २ 

inside delhi metro


 अब  ज़रा दूसरा पहलू देखिये।   अस्थमाग्रस्त यही विशिष्ठ वर्ग, इसको अगर  ज़रा सा  भी  खांसी -जुकाम  हो जाए तो  बढ़ते वायु प्रदूषण की दुहाई देकर उस आम प्राणी  के लिए कठोर नियम बनाने में ज़रा भी कोताही नहीं करता, जिसने इसे आम से ख़ास बनाया। अब चाहे आम  प्राणी  को  कितनी भी मुसीबतों का सामना क्यों न करना पड़े।  दिल्ली में -सम -विषम नंबर वाली गाड़ियों का ही उदाहरण देख लो।  यह सर्वविदित है  कि  इस विशिष्ठ वर्ग ने कभी भी , इस आम प्राणी के लिए सुविधाजनक  सार्वजनिक परिवहन की कभी कोई चिंता नहीं की।  क्या सार्वजनिक  परिवहन पर्याप्त मात्रा में  उपलब्ध है भी या नहीं, कभी नहीं सोचा । 

किन्तु इसे ज़रा सी खांसी  हुई और इसने  न सिर्फ उस आम प्राणी को  बल्कि उसके पूरे परिवार को  ही बीमारी के  मुह में धकेल दिया।  आप पूछेंगे वह कैसे  ? तो इसका जबाब भी सुन लीजिये।   पीक हावर्स  में आप किसी मैट्रो के डिब्बे  अथवा डीटीसी की  बस में  चढिये , सारे प्राणी एक दूसरे से चिपककर  खड़े होकर सफर कर रहे  है।  एक हाथ में  इन प्राणियों ने  मोबाइल फोन पकड़ा होता है  और  दूसरे  हाथ से  खम्बा  अथवा  कोच के अंदर उपलब्ध कोई  और सहारा।  ज्ञांत  रहे  कि  इस मौसम में यह आम प्राणी भी  सर्दी-जुकाम  से ग्रस्त हो सकता है, और जब इसे खांसी  अथवा छींक आती है  तो  सीधे सामने खड़े  दूसरे प्राणियों के चेहरे पर खांसता और छींकता  है  क्योंकि  अफ़सोसन  इसमें अभी  वह  तमीज पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुई कि  मोबाइल  फोन को जेब में रख , छींकते और खासते वक्त के लिए अपना एक हाथ  अपने मुह को ढकने हेतु  फ्री रख सके।  नतीजन , अन्य प्राणियों को भी फ्री में सर्दी-जुकाम   मिलता है  और वह उसे घर जाकर अपने बच्चो में भी बाँट देता है।  विशिष्ट वर्ग  ने तो मीडिया में  चेहरा दिखाने के लिए एक दिन  साइकिल की सवारी कर ली ,बस।    ( विदित रहे कि  यह वही  लोग हैं जो खुद कभी  उस ख़ास वर्ग को निशाना बनाया करते थे )     

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।