Wednesday, December 2, 2015

सृष्टि कोप !


2 comments:

  1. कुदरत का संदेश कोई सुनता कहाँ है !

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मौन-सून!

ये सच है, तुम्हारी बेरुखी हमको, मानों कुछ यूं इस कदर भा गई, सावन-भादों, ज्यूं बरसात आई,  गरजी, बरसी और बदली छा गई। मैं तो कर रहा था कबसे तुम...