Wednesday, December 2, 2015

असहिष्णुता का बेचारा ढोल !


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बेकसूरों के नरसंहार की आग सुलगी है जहान में,  
और असहिष्णुता का ढोल पिट रहा, हिंदुस्तान में। 
यहां पिटता हुआ ढोल तो सुनाई दे रहा है यूरोप में,
किन्तु,ये कोई नहीं पूछता कि पोप क्यों है कोप में।  
भड़की हुई है आग तो सीरिया, अफगानिस्तान में, 
और असहिष्णुता का ढोल पिट रहा, हिंदुस्तान में। 
त्रिभुवन में जब भी छाया लबेद का अन्धकार घना,   
इतिहास साक्षी,ये हिन्द हर बेसहारे का सहारा बना।  
मुझे ये लग रहा, आ गया है खोट  कहीं  ईमान में,
जभी,असहिष्णुता का ढोल पिट रहा,हिंदुस्तान में।  

चित्र: हमारे महान शहीद  कैप्टन कालिया  
   

1 comment:

  1. बहुत सही कहा है। आखिर कठिन शब्‍द को आसान बनाने की मुहिम है ये।

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संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।