Friday, May 8, 2009

लघु कथा- सिंगाडे !

हालांकि आगे पढने की दिली ख्वाईस के बावजूद, गरीबी के चलते, दसवीं पास कर हरी मजबूरन सुदूर गांव से अपने एक दूर के रिश्तेदार के पास दिल्ली मे नौकरी ढूढने आ गया था । काफ़ी दिनो तक दर-दर की ठोकरें खाने के बाद, एक प्लेसमेन्ट एजेन्सी के मार्फ़त उसे दो महिने बाद, चितरंजन पार्क मे एक प्राइवेट लिमिटेड कन्सट्रक्सन कम्पनी मे चपरासी की नौकरी मिल गयी थी ।

नौकरी मिल जाने से हरी काफ़ी खुश था, वह दिल लगाकर अपना हर काम करता, कम्पनी के कर्मचारियों को समय पर चाय-पानी देना, उनके कुर्सी मेज पर दिन मे दो बार कपडा मारना, उनकी फ़ाइलों को तरतीब से और सजा कर रखना, इत्यादि । अत: वहां मौजूद सारा स्टाफ़ उससे काफ़ी खुश था । हरी ने गांव मे मां को भी खत लिखकर सूचित कर दिया था कि उसे दो हजार रुपये महिने पर एक नौकरी मिल गयी है , वह पैसे बचाने की पूरी कोशिश करेगा और फिर उनके खर्चे के लिये भी मनिआर्डर से कुछ रुपये भेजेगा।

कम्पनी का मालिक एक बंगाली सेठ था, काफ़ी तुनुक मिजाज । अभी हरी को नौकरी लगे बीस दिन ही हुए थे कि एक दिन दोपहर बाद दफ़्तर मे मालिक से मिलने के लिये दो-तीन लोग आये । हरी ने सेठ के केविन मे उन्हे जब पानी दिया तो सेठ ने उसे बाजार से जल्दी से चार सिंगाडे लाने को कहा । हरी दौडकर पास के एक नम्बर मार्केट मे गया, वहां मौजूद तीन-चार फल विक्रेतावो से उसने सिंगाडे के बारे मे पता किया, लेकिन किसी के पास नही था । एक फल विक्रेता ने कहा कि चुंकि अब सिंगाडे का सीजन खत्म हो गया है, अत: मिलेगे तो आगे कालका जी डीडीए फ्लैट के समीप की सब्जी मन्डी मे ही मिलेगे । हरी धूप मे पैदल ही दौडा-दौडा वहां गया और एक दुकान पर उसे कुछ सिंगाडे मिल गये । उसने पांच-छह सिंगाडे खरीदे और फिर उधर से चितरंजन पार्क जा रही एक बस पकड कर जल्दी से दफ़्तर पहुंचा । मगर वहां जाने और लौटकर आने मे काफ़ी समय लग गया था । सेठ अपने वातानुकूलित दफ़्तर मे बैठा, उसको गालियां दिये जा रहा था, उसको मिलने आये लोग भी जा चुके थे ।

हरी ने जल्दी से दफ़्तर की पेन्ट्री मे जाकर चार सिंगाडे एक प्लेट पर रखे और झट से मालिक के केविन मे ले गया और प्लेट मालिक की मेज पर रख दी । पहले से गुस्साये सेठ ने ज्यों ही प्लेट पर नजर दौडाई, वह आग बबूला हो उठा । हरी को अंग्रेजी मे गालियां देते हुए उसने प्लेट हरी पर फेकते हुए कहा, ये क्या लाया बास्ट्र्ड, मैने तो समोसे लाने को कहा था । फिर उसने अपने लेखाकार को बुला, तुरन्त हरी का हिसाब करने और उसे नौकरी से निकालने को कहा । डर के मारे थर-थर कांप रहा बेचारा हरी, इसी पसोपेश मे पडा था कि उसे अच्छी तरह से याद है कि मालिक ने तो उसे चार सिंगाडे लाने के लिये ही कहा था, उसके कान सुनने मे इतनी बडी गलती कैसे कर सकते है कि मालिक ने समोसे मंगाये हो और उसके कानो ने सिंगाडा सुना? बेचारे हरी को कौन बताता कि बंगाली मे समोसे को ही सिंगाडा कहते है ।

1 comment:

  1. बेचारा हरी, भाषा के चक्कर में नौकरी खो बैठा।
    घुघूती बासूती

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।